ENGLISH HINDI Tuesday, April 16, 2024
Follow us on
 
कविताएँ

झटके कुदरत के

February 09, 2017 02:04 PM

यूँ झटके दे—दे कर

न डराया कर ऐ 'कुदरत',
ये इँसान है,
समझेगा लेकिन
सुधरेगा नहीं!

तेरे तो ये झटके कुछ क्षणों के हैं
यहां तो लोग
Whatsapp, Twitter, Facebook पर
न जाने घंटो, दिनों, महीनों, साल भर तक
किन —किन बनावटी उलझनों में
उलझे हैं वो
ऐसे झटकों के आदी हो चुके
लेकिन
फिर भी
अंदर से खोखले जो हैं
तेरी एक मसखरी से
अंदर तक हिल जाते हैं
मसखरी ही करनी है तो खुल कर
आर या पार का धर्म युद्ध तो कर
क्यूं डराता है
जो
पहले से डरे हुए हैं।

— रोशन

 
कुछ कहना है? अपनी टिप्पणी पोस्ट करें