आज वो शख्स बहुत याद आए
जाे बन चुके है बीते लम्हाें के साए
सैक्टर 23 की वाे
यादें
एक साथ किए थे कई
वादे
आज वाे लम्हें बहुत याद आए
वक्त भी क्या—क्या गुल खिलाता है
मिटाता भी खुद ही है सब कुछ
और
फिर रह—रह कर
याद भी दिलाता है
ये यादें ब़ेजार करती हैं
हर वक्त उन का इंतजार करती हैं
जानते हुए भी
कि
बीते हुए लम्हें
कभी
वापिस नहीं आते
फिर भी न जाने
क्यों
ये दिल बैठा है आस लगाए।
—रोशन