तकनीक ने उंगलियों को
चलना तो सिखा दिया
लेकिन
अधर सबके अब मूक हो गए
तकनीक को दोष दें भी तो कैसें
वो तो बराबर सब बांटती है सर्वोसर
शायद
अपनाने वाले ही बे—ख़बर हो गए
अपनों को भूल कर
चुन लिया एक पहलू
और
बस! मग्न हो गए!
धरा और आकाश में
अंतर बड़ा है
उसके बीच में समाया
खालीपन घना है
अपनों की दूरियों को पाटने में लाते
यदि
तकनीक
तो
मैं भी छोटा न रहता
और मानता
तुम भी संमुदर की तरह
विशाल हो गए।
और कह दूं
कुछ तो
बुरा तो मानो गे ही
ये विदित है मुझे
पर
तुम विशाल होकर खारे हो गए
और
हम
तालाब रह कर
भी
मीठे जल से
प्यास बुझाने के काबिल हो गए।
जिसे तुम अब तक मेरी
बस!
कमजोरी ही भांपते रहे
दरअसल
है तो हम
अब भी
विशाल ही
लेकिन
अहसास होने लगा है
कि
तालाब होकर प्यास से
तृप्ति देने की
भूल कर ली
तो
ये मत समझो
कि
हम तुम्हारे दास हो गए हैं
हम
कंलदर हैं
अपनी मन मर्जी के
और
रहें गें
मत प्रयास करो
अपने सांचे में
ढालने का
पढना है तो
पढ लो अभी हमें
वर्ना
मत बातें करना कि
हम बिन बताए चले गए।
— रोशन