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अहोई अष्टमी 31 अक्तूबर को:उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक

October 28, 2018 07:41 PM

मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़ 98156-19620

  अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं. जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है. जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो , या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो , उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है. सामान्यतः इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है. ये उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है.

क्या है अहोई अष्टमी ?

करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से एक सप्ताह पूर्व पड़ने वाला यह व्रत, पुत्रवती महिलाएं ,पुत्रों के कल्याण,दीर्घायु, सुख समृद्धि के लिए निर्जल करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर 8 कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं। आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं।पूजा से पूर्व चांदी का पैंडल बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है। व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात शिशु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो , उसे अहोई माता का उजमन अवश्य करना चाहिए। 

व्रत कब रखें ?

पंचांगानुसार बुधवार को प्रातः सप्तमी 11बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी और अष्टमी आरंभ होकर गुरु वार की प्रातः 9 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। इस प्रकार अहोई का व्रत बुधवार ,31अक्तूबर को अधिक सार्थक होगा। इस सायं चंद्र बहुत देर से उदय होगा अतः सूर्यास्त के बाद जब तारे दिखते हैं तभी पूजा आरंभ की जाती है।

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 2018

पूजा समय - सांय 17:45 से 19:02 तक ( 31 अक्तूबर 2018)

तारों के दिखने का समय - 18:12 बजे

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 11:10 बजे ( 31 अक्तूबर 2018)

अष्टमी तिथि समाप्त - 09:10 बजे ( 01 नवंबर 2018)

विधि

एक थाली में सात जगह 4-4 पूरियां रखकर उस पर थेाड़ा थोड़ा हलवा रखें। चंद्र को अर्ध्य दें । एक साड़ी ,एक ब्लाउज,व कुछ राशि इस थाली के चारों ओर घुमा के , सास या समकक्ष पद की किसी महिला को चरण छूकर उन्हें दे दें।

वर्तमान युग में जब पुत्र तथा पुत्री में कोई भेदभाव नहीं रखा जाता , यह व्रत सभी संतानों अर्थात पुत्रियों की दीर्घायु के लिए भी रखा जाता है।

पंजाब ,हरियाणा व हिमाचल में इसे झकरियां भी कहा जाता है।

कैसे रखें इस दिन उपवास  

- प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें 

- अहोई माता की आकृति गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाएं 

- सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें 

- पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफ़ेद धातु की अहोई चांदी की मोती की माला जल से भरा हुआ कलश दूध-भात हलवा और पुष्प दीप आदि रक्खें 

- पहले अहोई माता की रोल पुष्प दीप से पूजा करें उन्हें दूध भात अर्पित करें 

- फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना लेकर अहोई की कथा सुनें 

- कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु माँ को देकर उनका आशीर्वाद लें 

- अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें 

- चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें 

अहोई अष्टमी व्रत के विशेष प्रयोग 

अगर संतान की शिक्षा, करियर, रोजगार में बाधा आ रही हो

- अहोई माता को पूजन के दौरान दूध-भात और लाल फूल अर्पित करें इसके बाद लाल फूल हाथ में लेकर संतान के करियर और शिक्षा की प्रार्थना करे संतान को अपने हाथों से दूध भात खिलाएं फिर लाल फूल अपनी संतान के हाथों में दे दें और फूल को सुरक्षित रखने को कहें

अगर संतान के वैवाहिक या पारिवारिक जीवन में बाधा आ रही हो

अहोई माता को गुड का भोग लगायें और एक चांदी की चेन अर्पित करें 

- माँ पार्वती के मंत्र - "ॐ ह्रीं उमाये नमः" 108 बार जाप करें 

- संतान को गुड खिलाएं और अपने हाथों से उसके गले में चेन पहनाएं उसके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दें 

अगर संतान को संतान नहीं हो पा रही हो अहोई माता और शिव जी को दूध भात का भोग लगायें 

- चांदी की नौ मोतियाँ लेकर लाल धागे में पिरो कर माला बनायें अहोई माता को माला अर्पित करें और संतान को संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें 

- पूजा के उपरान्त अपनी संतान और उसके जीवन साथी को दूध भात खिलाएं

अगर बेटे को संतान नहीं हो रही हो तो बहू को और बेटी को संतान नहीं हो पा रही हो तो बेटी को माला धारण करवाएं

अहोई अष्टमी व्रत कथा

प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी| इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी| दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली| साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी| मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया| स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी|

स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें| सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है| इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं| सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा| पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी|

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है| रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है| इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है| छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है| गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है|

वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है| स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है| अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था|

 
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