चंडीगढ़, फेस2न्यूज:
संत निरंकारी मिशन प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने के साथ-साथ मुक्ति पर्व दिवस भी मनाता है। एक तरफ सदियों की पराधीनता से मुक्त कराने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए उन्हें नमन किया जाता है, तो दूसरी तरफ जन-जन की आत्मा की मुक्ति का मार्गप्रशस्त करने वाली दिव्य विभूतियाँ जैसे शहनशाह बाबा अवतार सिंह, जगतमाता बुद्धवन्ती जी, निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर, पूज्य माता सविंदर हरदेव तथा अनेक ऐसे भक्तों को ‘मुक्तिपर्व’ के रुप में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त की जाती है।
पिछले अनेक वर्षों से मिशन के द्वारा 15 अगस्त के दिन मुक्ति पर्व संत समागमों का आयोजन होता आया है। इस दिन देश की स्वतंत्रता की खुशी के साथ-साथ आत्मिक स्वतंत्रता से प्राप्त होने वाले आनंद को भी सम्मिलित कर मुक्ति पर्व मनाया जाता है।मिशन का मानना है कि जहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता;सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति के लिए अनिवार्य हैं वहीं आत्मिक स्वतंत्रता भी शांति और शाश्वत आनंद के लिए आवश्यक है।
अज्ञानता के कारण मानवता केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में जाति-पाँति, ऊँच-नीच, भाषा-प्रान्त, सभ्यता-संस्कृति, वर्ण-वंश जैसे भेदभावांे की दीवारों में जकड़ी हुई है। इन दीवारों के रहते हुए आत्मिक उन्नति तो दूर, भौतिक विकास में भी बाधायें आ जाती हैं।मिशन का मानना है कि आध्यात्मिक जागरूकता के माध्यम से इन सभी समस्याओं को दूर किया जा सकता है। जब हमारे अंदर आध्यात्मिक जागरूकता का समावेश हो जाता है तब मन के विकारों से मुक्ति का मार्ग मिल जाता है।सभी प्रयत्नशील हो कर एक-दूसरे से प्रेम, नम्रता तथा सद्भाव का व्यवहार करने लग जाते हैं।
आरंभ में यह समागम शहनशाह बाबा अवतार सिंह की धर्मपत्नी जगतमाता बुद्धवन्ती जी को समर्पित तथा, जो 15 अगस्त, 1964 को अपने इस नश्वर शरीर को त्याग कर निरंकार में विलीन हो गई। उन्हीं की याद में इस दिन को ‘जगतमाता दिवस’ के रुप में मनाया जाने लगा। जगतमाता बुद्धवंती जी सेवा की जीवन्त मूर्ति थीं। उन्होंने सदैव ही निःस्वार्थ भाव से मिशन की सेवा की और स्वयं को पूर्ण रूप से जनकल्याण के लिए समर्पित किया।
बाबा गुरबचन सिंह जी की धर्मपत्नी राजमाता कुलवंत कौर जी ने अपने कर्म और विश्वास से इस मिशन के सन्देश का बरसों-बरस प्रचार किया।उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ही मिशन की सेवा में अर्पण कर दिया।17 वर्षों तक बाबा गुरबचन सिंह जी के साथ तथा 34 वर्षों तक बाबा हरदेव सिंह जी के साथ निरंतर अपनी सेवाएं निभाती रहीं। 29 अगस्त, 2014 को राजमाता जी ने अपने इस नश्वर शरीर का त्याग किया और निरंकार में विलिन हो गयीं। उसके बाद से हर वर्ष मुक्ति पर्व दिवस पर उन्हें व उनके योगदान को याद किया जाता है।