चंडीगढ़, फेस2न्यूज ब्यूरो:
सर्दी के इस मौसम में जब हमें घर बैठे भी ठंड लगती है और ऐसे मौसम में किसानों को खुले आसमान के नीचे दिल्ली बॉर्डर पर बैठे दो माह के करीब हो गये। कोहरा, ठंड और बरसात भी उनके हौसले को पस्त नही कर पाये है। देश और विदेश से किसानों को पूर्ण समर्थन मिल रहा है और इसी कड़ी में चंडीगढ़ की समाजसेवी संस्था समस्या समाधान टीम निरंतर किसान आंदोलन में सेवा दे रही है, पहले 10 टन सुखी लकड़ी, 100 तिरपाल, 200 बरसाती और 100 सुरक्षा जैकेट किसान आंदोलन को भेट कर चुके है और अब एक ट्रक राशन किसान आंदोलन में भेजा है जिसमें एक क्विंटल आटा, चावल 700 किलो, चीनी 800 किलो, चाय पत्ती 120 किलो, दाल माह 150 किलो, दाल चना 150 किलो, सफेद चना 150 किलो, देगी मिर्च 20 किलो और नमक 125 किलो शामिल है। समस्या समाधान ने दिल्ली किसान आंदोलन में भेजी एक ट्रक राशन सामग्री
इस मौके पर समस्या समाधान टीम के मनोज शुक्ला ने बताया कि इस सेवा में मुख्य योगदान सरदार बच्चन सिंह और चरण कौर द्वारा किया गया है और इसके इलावा हमारे वरिष्ठ टीम मेंबर ओंकार सैनी और समाजसेवी प्रवीन का भी विशेष योगदान है। हमारी टीम की ओर से ऐसी मदद निरन्तर चलती रहेगी क्योंकि किसान अपने अस्तित्व की ही नही अपितु हमारी लड़ाई लड़ रहे है क्योंकि इन कानूनों से देश में कालाबाजारी, महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ेगा, अमीर और गरीब का अन्तर बढ़ेगा जिससे देश में अस्थिरता पैदा होगी। इस शांतिपूर्ण आंदोलन को ना सिर्फ देश बल्कि विदेशों से भी समर्थन मिल रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के इलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी किसान आंदोलन का समर्थन किया है। इन कानूनों को जनविरोधी मानते हुए देश की सर्वोच्च न्यायालय की बार एसोसिएशन भी किसानों का समर्थन कर चुकी है, इसलिए मोदी सरकार को भी किसानों की मांगे मान लेनी चाहिए और ये तीनों कृषि कानून वापिस ले लेने चाहिए, ये कहना है समस्या समाधान टीम के मनोज शुक्ला का।
इस मौके पर ओंकार सैनी ने कहा कि बरसात और ठंड के कारण अब तक 100 से ज्यादा किसान अपनी मांगों के लिए बलिदान दे चुके है और पता नही कितना नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। प्रजातंत्र लोगों से, लोगों के लिए, लोगों द्वारा होता है इसलिए सरकार को जनता की बात मानते हुए कृषि कानून वापिस ले लेने चाहिए। सरकार को इतना निष्ठुर भी नही होना चाहिए। प्रधानमंत्री इंडोनेशिया में जहाज हादसे में मारे गये लोगों के लिए तो संवेदना व्यक्त करते है परंतु किसान आंदोलन में शहीद होने वाले किसानों के लिए एक शब्द भी नहीं बोलते, ये प्रजातंत्र के लिए ठीक नही है और सरकार को लोगों की बात मानते हुए कानून वापिस ले लेने चाहिए तभी प्रजातंत्र की जीत होगी।