जीरकपुर से सुमिथा कलेर
देश में चल रहे किसान आंदोलन के बीच पंजाब निकाय चुनावों में कांग्रेस पार्टी को प्रचंड जीत हासिल हुई है। वहीं जीरकपुर में हुए नगर परिषद के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 31 में से 23 सीट हासिल कर एकतरफ़ा जीत हासिल की है। ये क्षेत्र में किसान आंदोलन और अकाली दल के बीजेपी से अलग होने के बाद हुए किसी चुनाव के पहले नतीजे हैं।
डेराबस्सी विधानसभा क्षेत्र में 3 नगर परिषदों जीरकपुर, डेराबस्सी व लालड़ू के लिए हुए चुनावों में अब तक आए नतीजों में सभी में कांग्रेस का वर्चस्व है, जो स्पष्ट बहुमत के साथ तीनों नगर परिषदों में अपने बलबूते पर स्पष्ट बहुमत से प्रधान बनाने की स्थिति में है। आलम यह रहा कि 21 साल तक जीरकपुर नगर परिषद पर राज करने वाली पार्टी शिरोमणि अकाली दल का भाजपा से गठबंधन टूटने पर सूपड़ा ही साफ हो गया और अकाली दल का आंकड़ा 8 पर ही सिमट कर रह गया जबकि भाजपा का कोई उमीदवार नहीं जीत पाया लेकिन ज्यादातर सीटों पर अकाली दल के उमीदवारों की जीत को प्रभावित करने का कारण बना। इन चुनावों में सिर्फ़ अकाली दल ही नहीं भाजपा ने भी ख़राब प्रदर्शन किया है।
अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह से नाकाम रही आम आदमी पार्टी
पहली बार निकाय चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह से नाकामयाब रही। किसान क़ानूनों का विरोध कर रही आम आदमी पार्टी को अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी लेकिन वो भाजपा से भी पीछे तीसरे नंबर पर है। अकाली दल दूसरे नंबर पर तो है लेकिन पहले नंबर से बहुत दूर है। यह भाजपा से अलग होने वाले अकाली दल के लिए चिंता का विषय है। शहरी लोगों ने भी उसे वोट नहीं किया है।आप पंजाब की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन टिकटों के आवंटन में हुई चूक व पुराने पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी आप की कैंपेनिंग पर भारी पड़ी जिस वजह से 28 उमीदवारों में से 22 कुल पड़े मतों का 10 फीसदी भी हासिल नहीं कर सके।
एक कारण शहर में वोट प्रतिशत का कम रहना भी रहा क्योंकि सत्ता में कांग्रेस होने की वजह से अकाली विधायक एनके शर्मा ने पूरे विधानसभा क्षेत्र में तीनों निकायों की प्रचार व प्रसार की सारी कमांड खुद संभाली।
भाजपा के सामने कई मुश्किलें थीं
भाजपा के सामने कई मुश्किलें थीं, कई जगहों पर उसके उम्मीदवारों को ही बाहर कर दिया गया था इसके बावजूद भाजपा ने तीन वार्डो वार्ड नंबर 1, 6 व 10 में दोनों प्रमुख पार्टियों को कड़ी टक्कर दी।विशलेषकों मानना है कि किसान आंदोलन का असर भी चुनावों पर हुआ है। कांग्रेस ये कहने में कामयाब रही कि वो किसानों के साथ खड़ी है।
अकालियों ने देर कर दी
अकाली दल ने पहले कृषि विधेयक संसद में पारित होने दिए और जब किसानों के मूड को भांपा तो इसका विरोध किया, लोगों को ये बात समझ आ रही थी। इस चुनाव से ये भी संकेत मिल रहा है कि जीरकपुर परिषद में काबिज बीते 21 साल से राज में रहे अकाली दल और भाजपा के उमीदवारों को नकार दिया गया है
जीत का श्रेय क्षेत्र के लोगों को दिया
कांग्रेस के सीनियर नेता दीपिन्द्र सिंह ढिल्लों ने कहा कि घोषित परिणामों में से जीरकपुर नगर परिषद में कांग्रेस के हाथ 31 में 23 सीटें लगीं हैं और पूर्ण बहुमत से उनकी पार्टी का प्रधान बनेगा और आगामी 6 महीनों में वो काम करवाए जाएंगे जो बीते 21 सालों में भी नहीं हुए। उन्होंने जीत का श्रेय क्षेत्र के लोगों को दिया और कहा, केवल कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ऐसा संभव हुआ है। विपक्षी दलों ने उन्हें बदनाम करने की कोशिशें की थी, लेकिन लोगों ने बता दिया है कि गलत कौन है। वर्ष 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव होने हैं।
नगर परिषद चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करने वाले अकाली दल के विधायक एन के शर्मा ने प्रशासनिक अफसरों को इसका जिम्मेदार बताया है। उनका कहना है कि बूथ कैप्चरिंग, उत्पीड़न और हिंसा के बावजूद अकाली प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। अफसरों ने अकाली की जीत में रोड़ा अटकाया। इतने संघर्ष के बाद मिली जीत यह बताती है कि वर्ष 2022 में अकाली दल की सरकार बनने जा रही है। इसलिए इन कामों में शामिल रहे अफसरों को अपनी उल्टी गिनती शुरू कर लेनी चाहिए।
चुनावों से पहले नगर निकाय चुनावों में जिस तरह कांग्रेस का दबदबा दिखाई दे रहा है, उससे भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है। परिषद चुनाव के नतीजों ने उनकी सरकार की विकास नीतियों और कार्यक्रमों पर पूरी तरह से मोहर लगा दी है। साथ ही जनता ने विपक्षी दलों बीजेपी, अकाली दल और आम आदमी पार्टी के जनविरोधी कामों को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। ऐसे नतीजे कभी भी पहले किसी भी पार्टी को नहीं मिले हैं।
विधायक ने ठहराया प्रशासनिक अधिकारियों को जिम्मेदार
इसी बीच नगर परिषद चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करने वाले अकाली दल के विधायक एन के शर्मा ने प्रशासनिक अफसरों को इसका जिम्मेदार बताया है। उनका कहना है कि बूथ कैप्चरिंग, उत्पीड़न और हिंसा के बावजूद अकाली प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। अफसरों ने अकाली की जीत में रोड़ा अटकाया। इतने संघर्ष के बाद मिली जीत यह बताती है कि वर्ष 2022 में अकाली दल की सरकार बनने जा रही है। इसलिए इन कामों में शामिल रहे अफसरों को अपनी उल्टी गिनती शुरू कर लेनी चाहिए।