चंडीगढ़/बरनाला (अखिलेश बांसल)
संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े पंजाब के 32 किसान संगठन भारत बंद के आह्वान के तहत राज्य भर में जुट गए हैं। किसान संगठनों द्वारा देशव्यापी बंद का आह्वान राज्य के सभी वर्गों द्वारा किया जा रहा है और राज्य में पूर्ण रूप से बंद होने की संभावना है। सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक पूर्ण बंद का आह्वान किया गया है।
सभी दुकानें, मॉल और संस्थान बंद हो जाएंगे, सड़कें और ट्रेनें जाम हो जाएंगी, आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाएं बंद हो जाएंगी। किसान संगठनों का कहना है कि बंद के दौरान बड़ी संख्या में किसानों के धरने में शामिल होने के लिए किसानों, मजदूरों, युवाओं, छात्रों, कर्मचारियों, ट्रांसपोर्टरों, व्यापारियों, कारीगरों, दुकानदारों सहित सभी वर्गों के लोगों को आमंत्रित किया है।भारतीय किसान यूनियन-एकता (डकौंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि हालांकि पंजाब में बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के मोर्चे पर लड़ रहे थे, पंजाब में संघर्ष की गति पहले से कहीं ज्यादा तेज थी। किसान नेताओं ने कहा कि शहरों में बाजारों में दुकानदारों और व्यापारियों से बंद का आह्वान किया गया है। गांवों में सभाओं और मार्च के माध्यम से भी लोग लामबंद हो गए हैं। 68 स्थानों पर 68 किसान संगठनों द्वारा धरने आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें भाजपा नेताओं के घरों के सामने, टोल प्लाजा, रेलवे स्टेशन पार्क और अंबानी अडानी के व्यवसाय परिसर शामिल हैं। बंद के दौरान संगठन लगभग 120 स्थानों पर धरना देंगे।
भारतीय किसान यूनियन-एकता (डकौंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि हालांकि पंजाब में बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के मोर्चे पर लड़ रहे थे, पंजाब में संघर्ष की गति पहले से कहीं ज्यादा तेज थी। किसान नेताओं ने कहा कि शहरों में बाजारों में दुकानदारों और व्यापारियों से बंद का आह्वान किया गया है। गांवों में सभाओं और मार्च के माध्यम से भी लोग लामबंद हो गए हैं। 68 स्थानों पर 68 किसान संगठनों द्वारा धरने आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें भाजपा नेताओं के घरों के सामने, टोल प्लाजा, रेलवे स्टेशन पार्क और अंबानी अडानी के व्यवसाय परिसर शामिल हैं। बंद के दौरान संगठन लगभग 120 स्थानों पर धरना देंगे।
जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि किसान संगठनों के प्रति केंद्र सरकार का रवैया बेहद निंदनीय है, क्योंकि सरकार खुद यह दावा करते हुए बैठकों से भाग रही थी जबकि मुद्दों को बातचीत के जरिए हल किया जा सकता है। किसान संगठनों ने स्पष्ट किया है कि जब तक तीनों कृषि अधिनियम वापिस नहीं लिए जाते और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए एक कानून नहीं बनाया जाता तब तक किसान संगठनों का आंदोलन जारी रहेगा.