संजय कुमार मिश्रा
जब भी हम बैंक में सेविंग्स अकाउंट खोलते हैं, म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करते हैं, प्रॉपर्टी/शेयर खरीदते हैं या फिर जीवन बीमा करवाते हैं, तो हर बार हमें ‘नॉमिनी’ अपॉइंट करना होता है। ज्यादातर लोगों को यही गलतफहमी है कि उसकी मृत्यु के बाद सारी रकम नॉमिनी को मिल जाएगी, जबकि ऐसा है नहीं। नॉमिनी सिर्फ आपके संपत्ति या पैसों का केयरटेकर होता है, न कि मालिक।
सरल शब्दों में कहें तो नॉमिनी वह व्यक्ति है, जो आपकी मृत्यु के बाद बीमा कंपनी, बैंक एफडी और प्रॉपर्टी से मिले पैसों को आपके क़ानूनी वारिसों तक पहुंचाता है। वह कानूनन उस रकम का मालिक नहीं होता, वह सिर्फ एक ट्रस्ट होता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो नॉमिनी एक केयरटेकर की तरह होता है, जो हमारे न रहने पर हमारी जमा-पूंजी को हमारे अपनों तक पहुंचाता है।
क्लास-1 उत्तराधिकारी न हो, तब दावेदारी
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि अगर किसी ने अपनी कमाई बैंक में जमा की हुई है और अकाउंट में किसी को नॉमिनी बना रखा है। मसलन अपने बड़े बेटे को नॉमिनी बनाया लेकिन अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं की है। अगर उस शख्स की मौत हो जाए तो नॉमिनी बैंक से पैसे तो निकाल सकता है लेकिन मृतक के जितने भी क्लास-1 उत्तराधिकारी होंगे, उन सभी का पैसे पर बराबर का दावा होगा। उनका बाकी संपत्ति पर भी बराबर का हक होगा। अगर क्लास-1 उत्तराधिकारियों में से कोई नहीं हो तब क्लास-2 उत्तराधिकारियों में बंटवारा होगा। नियम के तहत नॉमिनी का मालिकाना अधिकार नहीं होता। नॉमिनी सिर्फ बैंक से पैसे निकाल सकता है और उसके लिए उसे अधिकृत किया गया है। नॉमिनी के फेवर में अगर वसीयत है तभी वह अकेला मालिक होगा।कानूनी जानकार मुरारी तिवारी कहते हैं कि जहां तक जीवन बीमा पॉलिसी का सवाल है तो बीमाधारक ने जिन्हें नॉमिनी बनाया है, कोई विवाद न होने पर पैसा उन्हीं को दिया जाता है। लेकिन मृतक (बीमाधारक) के दूसरे कानूनी उत्तराधिकारी हों तो वे अदालत के जरिए दावेदारी पेश कर सकते हैं। अगर पॉलिसी धारक ने पत्नी को नॉमिनी बनाया है और बीमाधारक की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी नॉमिनी पत्नी को पेमेंट कर देती है। अगर मृतक के किसी दूसरे उत्तराधिकारी ने भी दावा पेश किया तो पॉलिसी का पेमेंट रोक दिया जाता है और मामला विवाद में डाल दिया जाता है।
जानकार और सुप्रीम कोर्ट की वकील रेखा अग्रवाल बताती हैं कि चाहे कोई बीमा कंपनी की लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में नॉमिनी हो या बैंक अकाउंट में, नॉमिनी होना अपने आप में मालिकाना हक नहीं देता है। अगर अकाउंट होल्डर ने किसी को नॉमिनी बनाया है या इंश्योरेंस पॉलिसी में बीमाधारक ने किसी को नॉमिनी बनाया तो वह नॉमिनी सिर्फ लेनदेन की सहूलियत के लिए है। नॉमिनी होने का मतलब यह नहीं है कि वह शख्स उस बैंक अकाउंट के पैसे या बीमा रकम का मालिक हो गया। अगर बैंक अकाउंट होल्डर ने कोई वसीयत नहीं की हुई है या बीमाधारक की कोई वसीयत नहीं है तो रकम तमाम कानूनी वारिसों में बराबर बंटेगी।
कानूनी जानकार मुरारी तिवारी कहते हैं कि जहां तक जीवन बीमा पॉलिसी का सवाल है तो बीमाधारक ने जिन्हें नॉमिनी बनाया है, कोई विवाद न होने पर पैसा उन्हीं को दिया जाता है। लेकिन मृतक (बीमाधारक) के दूसरे कानूनी उत्तराधिकारी हों तो वे अदालत के जरिए दावेदारी पेश कर सकते हैं। अगर पॉलिसी धारक ने पत्नी को नॉमिनी बनाया है और बीमाधारक की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी नॉमिनी पत्नी को पेमेंट कर देती है। अगर मृतक के किसी दूसरे उत्तराधिकारी ने भी दावा पेश किया तो पॉलिसी का पेमेंट रोक दिया जाता है और मामला विवाद में डाल दिया जाता है।
एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि अगर सड़क हादसे का मामला है तो मोटर वीकल क्लेम ट्रिब्यूनल में मामला जाता है। वहां मृतक के परिजन मुआवजे का दावा पेश करते हैं। ऐसे केस में नॉमिनी का सवाल नहीं है क्योंकि जिस गाड़ी की वजह से मौत हुई है, उसका इंश्योरेंस कवर करने वाली कंपनी मुआवजा देती है। इसमें मृतक की पत्नी, बच्चे और माता-पिता की पहली दावेदारी होती है। कानूनी वारिस जो मृतक पर निर्भर हैं, उन्हें मुआवजे की रकम दी जाती है। पर फैसला कोर्ट का होता है।
कैसे तय होता है कानूनी वारिस ?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत बेटा, बेटी, विधवा, मां, पहले मर चुके बेटे की संतान, पहले मर चुकी बेटी के संतान और बेटे की विधवा क्लास-1 उत्तराधिकारी में आते हैं। क्लास-2 में पिता, बेटे व बेटी का बेटा, बेटे व बेटी की बेटी, भाई, बहन, भाई की संतान, बहन का बेटा और बेटी क्लास-2 में आते हैं। अगर मृतक मुस्लिम है तो शरीयत कानून 1937 के हिसाब से संपत्ति का वारिस तय होगा।
क्रिस्चन के मामले में वारिस आमतौर पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत तय होता है। इसके तहत पति, पत्नी, बेटे और बेटियां वारिस माने गए हैं।
नॉमिनेशन और उत्तराधिकार / विरासत को लेकर कानून
उत्तराधिकार के मामलों की तरह नॉमिनेशन को लेकर कोई कानून नहीं है. उत्तराधिकार में खास कानून होते हैं, जो मृतक की वसीयत के तहत धार्मिक आत्मीयता और वसीयत के आधार पर होते हैं. इसके अलावा, नॉमिनी के अधिकारों का निर्धारण नामांकन की विषय वस्तु को नियंत्रित करने वाले कानूनों के अनुसार किया जाता है, जबकि उत्तराधिकार के अधिकार मृतक पर लागू व्यक्तिगत कानून के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं. इसलिए नॉमिनेशन केवल एक साधन है, अंत नहीं है इसलिए ऐसा कहा जा सकता है की नॉमिनेशन एक अस्थायी इंतजाम है, ताकि मृतक के शेयर्स उस अवधि में बिना मालिक के न रहें, जबतक उत्तराधिकार से जुड़े मसले सुलझ ना जाय ।
नॉमिनी के अधिकारों पर कोर्ट के आदेश:
बॉम्बे हाई कोर्ट की दो जजों वाली बेंच ने कंपनी एक्ट 1956 के तहत नॉमिनेशन के शेयरों के प्रावधानों पर विचार किया। कोर्ट ने उत्तराधिकारी के मामले में मृतक की संपत्ति को कंट्रोल करने वाले उत्तराधिकार कानून (इच्छा के बिना) या भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 और डिपॉजिटरीज अधिनियम, 1996 के उपबंधों के अनुसार निष्कर्ष निकाला कि नॉमिनेशन से जुड़े प्रावधान विवेकपूर्ण और बेवसीयत उत्तराधिकार के संबंध में कानून को रद्द नहीं करते। 1956 एक्ट की तरह, इसी तरह के प्रावधान कंपनी अधिनियम, 2013 में भी निर्धारित किए गए हैं और इसलिए यह फैसला भविष्य के सभी फैसलों पर लागू होंगे जो 2013 अधिनियम के तहत आएंगे। हाई कोर्ट ने आगे बताया कि इंद्राणी वाही मामले में भी कोर्ट ने कहा कि नामांकित व्यक्ति के पक्ष में शेयरों के ट्रांसफर की जरूरत सिर्फ पश्चिम बंगाल अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड सोसाइटी के लिए तय की गई है और कभी भी सुप्रीम कोर्ट ने फैसला नहीं दिया कि नॉमिनी के अधिकार उत्तराधिकारी से ज्यादा होंगे।
ज्ञात हो की इंद्राणी वाही मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह मृतक के अन्य परिवारवालों के लिए उत्तराधिकार या विरासत के मामले में अपना केस रखने के रास्ते खोलेगा। इसलिए जो लोग विरासत के तहत अपने अधिकारों का दावा कर रहे हैं, वे विरासत के आधार पर सोसाइटी में शेयरों के टाइटल का दावा करने के हकदार होंगे।