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राष्ट्रीय

सौर ऊर्जा, भारत को नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने में मदद कर सकती है

November 11, 2022 11:50 AM

दुनिया सौर क्रांति की दहलीज़ पर है। सूर्य, न केवल दुनिया का सबसे प्रचुर और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है, बल्कि व्यापक तौर पर इसे स्वीकार किए जाने के साथ, यह अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए सुलभ ऊर्जा के रूप में आवश्यक हो गया है। कई देशों के पास अब अच्छी तरह से स्थापित नीतियां और विनियम हैं, जो इसे वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए आवश्यक पैमाना और सामर्थ्य प्रदान करते हैं। सौर ऊर्जा, न केवल विकासशील देशों में ऊर्जा पहुंच और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, बल्कि विकसित देशों में बैटरी ऊर्जा संचयन, इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग अवसंरचना और हाइड्रोजन उत्पादन के एकीकरण के माध्यम से ऊर्जा के स्रोतों में बदलाव के लिए सुविधा भी प्रदान कर रही है।
लागत, सरल और आसान रख-रखाव, सहज संरचना बदलाव, विभिन्न अनुप्रयोग आदि के सन्दर्भ में अन्य ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर तकनीकी श्रेष्ठता के बावजूद, सौर ऊर्जा उत्पादन एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना कर रहा है, जिसके समाधान की आवश्यकता है। वैश्विक फोटोवोल्टिक (पीवी) विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखला कुछ ही देशों में केंद्रित है, जिसके परिणामस्वरुप मौजूदा सीमित आपूर्ति श्रृंखलाओं में अवरोध होने के बाद, हाल ही में कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है।
इन व्यवधानों ने महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं।
कोविड-19 संकट एवं बहुपक्षीय चुनौतियों के कारण वस्तुओं की कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। ऊर्जा, कच्चे माल और विनिर्मित वस्तुओं के आयात- जो ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं- पर कुछ देशों की उच्च निर्भरता के कारण, इन देशों का ध्यान सौर ऊर्जा पर केन्द्रित हुआ है। अतिरिक्त चुनौती सौर पैनलों की खरीद से जुड़ी है। अनुमान है कि सौर पीवी की वैश्विक मांग, निम्नतम स्तर पर भी, को पूरा करने में 2030 तक 5,000 गीगावाट (जीडब्ल्यू) की संचयी क्षमता की आवश्यकता होगी। हालांकि, सौर पैनलों की कम होती कीमतों और दुनिया भर में की जा रही पहलों को देखते हुए, यह अनुमान लगभग 10,000 गीगावाट तक भी पहुंच सकता है। इसका मतलब है कि हर साल लगभग 800-1,000 गीगावाट तक पीवी की वार्षिक क्षमता में वृद्धि हो सकती है, जो अब तक 200 गीगावाट तक सीमित थी।
भविष्य में वर्तमान क्षमता से पांच गुना अधिक की खरीद की आवश्यकता होगी, इसलिए हमें सहनीय तथा विविधतापूर्ण आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने की आवश्यकता है। देश अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाकर सहनीयता में सुधार किया जा सकता है। सौर पीवी विनिर्माण परियोजनाओं के विकास को समर्थन देने का सबसे अच्छा तरीका उत्पादन-लागत से जुड़े विभिन्न कारकों को वित्तीय प्रोत्साहन के माध्यम से प्रत्यक्ष समर्थन प्रदान करना है, जैसे टैक्स में छूट, कम लागत वाला वित्तपोषण या प्रत्यक्ष सब्सिडी (उदाहरण के लिए, भूमि या अवसंरचना में निवेश)।
इसलिए, मांग में वृद्धि करना और सहायक विनिर्माण कंपनियों को प्रोत्साहित करना भी उद्योग को विकसित करने का एक कुशल तरीका है, लेकिन इसके लिए और निवेश करने की आवश्यकता होगी। भारत ने हाल ही में सौर पीवी विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का संचालन किया है, जो सफल रही है। इसके तहत परियोजनाओं के लिए बोली लगाने वाले ऐसी विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना और संचालन करेंगे, जो पॉलीसिलिकॉन, इनगोट, वेफर्स, सेल और उच्च दक्षता वाले पैनल के निर्माण के साथ पूरे उत्पादन चक्र का भी विस्तार करेंगे।
सौर पीवी विनिर्माण क्षेत्र की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता, तीव्र और लागत प्रभावी स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन स्रोत को अपनाने के लिए महत्वपूर्ण है। तेजी से विकास और परियोजनाओं की शुरुआत से उत्पाद की बिक्री तक में लगने वाले लंबे समय के कारण, आपूर्ति और मांग के असंतुलन का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे लागत में वृद्धि हो सकती है और आपूर्ति में कमी आ सकती है। सौर पीवी क्षेत्र में, सभी आपूर्ति श्रृंखला खंडों के लिए शुद्ध लाभ-प्राप्ति अनिश्चित व अस्थिर रही है। इस प्रकार, इस व्यवसाय के सभी उप-क्षेत्रों की कमजोरियों को सहायक नीतियों द्वारा नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।
देशों के बीच आपसी सहयोग ही ऊर्जा उत्पादन के स्रोतों में बदलाव, निवेश को बढ़ावा देने और लाखों नए हरित रोजगार पैदा करने का आधार होगा। सरकारों और हितधारकों ने सौर पीवी निर्माण पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया है, लेकिन और अधिक सहयोग की आवश्यकता है। तेजी से कार्बन मुक्त हो रही दुनिया में इस क्षेत्र के रणनीतिक महत्व के लिए समान विचारधारा वाले देशों को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। उम्मीद है कि हर जगह मॉड्यूल निर्माण हो रहा होगा। प्रारंभिक वर्षों में समर्थन की आवश्यकता है और एक वैश्विक समुदाय के रूप में, हमें विनिर्माण के लिए वातावरण को सक्षम करने में अन्य देशों को समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है। 110 सदस्य और हस्ताक्षरकर्ता देशों के साथ, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन इस बदलाव के लिए प्रयासरत है।
नई प्रौद्योगिकियां बाजार में आएंगी, जिनमें सौर-प्लस बैटरी का प्रतिस्पर्धी होना शामिल हैं। आपूर्ति श्रृंखला के साथ नई सौर पीवी विनिर्माण सुविधाएं 2030 तक अरबों रुपये के निवेश आकर्षित कर सकती हैं। पूरी आपूर्ति श्रृंखला में वार्षिक निवेश स्तर को दोगुना करने की आवश्यकता है। पॉलीसिलिकॉन, इनगोट और वेफर्स निर्माण महत्वपूर्ण चरण हैं और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इनमें अधिक निवेश की आवश्यकता होगी। सौर ऊर्जा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तथा सौर ऊर्जा के अलावा कोई अन्य उपयुक्त तकनीक नहीं है, जो घरों और समुदायों को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बना सकती है। ग्रिड और मिनी ग्रिड का आपसी जोड़ तथा सामुदायिक रूफटॉप सौर प्रतिष्ठान; इस बदलाव को सक्षम करेंगे। सौर ऊर्जा, नेट जीरो आधरित भारत के उस लक्ष्य को हासिल करने की आधारशिला बन सकती है, जिसे देश ने 2070 के लिए निर्धारित किया है।

आर के सिंह
भारत सरकार के ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के अध्यक्ष हैं। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।

 
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