अमृतसर, फेस2न्यूज:
श्री गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में फिर वही डायर मैकाले के जूठे और गुलामी का प्रतीक काले गाउन छाए रहे।
पूर्व केबिनेट मंत्री रही लक्ष्मीकांता चावला ने सवाल उठाते हुए कहा कि अंग्रेजों के समय के बनाए बेतुके टोप सिर पर पहनकर वरिष्ठ शिक्षाविद् और अधिकारी कैसे सिर उठाकर चलते हैं, यह आश्चर्य और दुख की बात है। अंग्रेजी का प्रभुत्व भी वहां छाया रहा। बहुत से वक्ता केवल अंग्रेजी में बोले और पंजाबियत के नाम पर लोगों को लड़ाने वाले वहां पूरे खामोश रहे। यह ठीक है कि उपकुलपति का भाषण पंजाबी में था, लेकिन जो दूसरे प्रांतों से आए मेहमान थे वे न तो अपने प्रांत की भाषा में बोले, न हिंदी में।
हिंदी का तो पूरा त्याग गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी करती ही है। यह ठीक है कि राज्यपाल महोदय ने हिंदी का थोड़ा साथ दिया।
भारतीय भाषाओं के नाम पर देश को लड़ाने वाले अंग्रेजी को मां के दूध की तरह पचा जाते हैं और समारोह में उपस्थित कोई भी बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी यह सवाल नहीं करता कि स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना चुका देश अभी भी मैकाले और डायर की जूठन का गुलाम क्यों?
देश के बहुत विश्वविद्यालय काला गाउन परंपरा छोड़ चुके हैं, पर पंजाब और हरियाणा अभी तक इसे छोड़ने को आखिर क्यों तैयार नहीं।