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राष्ट्रीय

केरल; सहिष्णुता, प्रगति और हरियाली का प्रतीक

December 23, 2022 10:14 AM

— पवित्र सिंह
केरल में एक महानगरीय और मिश्रित संस्कृति है। यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। केरल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, भारत के अन्य भागों और विदेशों के प्रभाव से सहस्राब्दियों में विकसित, आर्य और द्रविड़ संस्कृतियों का संगम है। केरल की संस्कृति एक व्यावहारिक उदाहरण है और पूरे राज्य में, लोगों के व्यवहार में दिखाई पड़ने वाली सहिष्णुता का प्रतीक है। केरल भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसके प्रमुख आकर्षण; नारियल पेड़ों की कतार वाले रेतीले समुद्र तट, अनुप्रवाही जल, पहाड़ी स्थल, आयुर्वेदिक पर्यटन और उष्णकटिबंधीय प्राकृतिक सुन्दरता आदि हैं।
सदियों से विभिन्न समुदाय और धार्मिक समूह के लोग पूर्ण सद्भाव और आपसी समझ के साथ रहते हैं। लोग एक दूसरे की अच्छी चीजों को एक उदार दृष्टिकोण के साथ अपनी निरंतर समाजीकरण प्रक्रिया और लगातार विकसित होती समृद्ध संस्कृति के हिस्से के रूप में अपनाते हैं। परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण को एकीकृत करने की यह परंपरा एक दूसरे को सहन करने और सम्मान देने का जीवंत उदाहरण है, जो विविधता में एकता के सर्वोच्च स्तर का प्रमाण देती है।
राज्य में सबसे अधिक यानि आधी से अधिक आबादी हिंदू धर्म का पालन करती है और इसके बाद इस्लाम और ईसाई धर्म के मानने वाले लोग हैं। केरल भारत के उन कुछ राज्यों में से एक है, जहां सभी धर्मों के लोग लगभग एकसमान पाक-कला साझा करते हैं। चावल प्रमुख खाद्य है, जिसे विभिन्न शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजनों के साथ दिन के सभी समय खाया जाता है। माना जाता है कि केरल (केरलम) नाम; केरा (नारियल के पेड़) + आलम (भूमि या स्थान) से बना है।
कई राज्यों के विपरीत, केरल में शहरी-ग्रामीण विभाजन दिखाई नहीं देता है। केरल में लोग न केवल एक-दूसरे के साथ हैं, बल्कि प्रकृति के भी साथ हैं, जो पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। राज्य के लोग, केरल को एक हरित प्रदेश बनाने के लिए "प्रदूषित करें और नष्ट हो जाएं; संरक्षण करें और फलें-फूलें" नारे को लागू करते हुए पर्यावरण संरक्षण में सुधार करने के साथ इसे सशक्त बना रहे हैं। केरल के लोगों में नागरिक बोध बहुत अधिक है। वे अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में स्वच्छता का हमेशा पालन करते हैं। लोग न केवल उच्च शिक्षित व सुसंस्कृत हैं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर बहुत सतर्क भी हैं तथा देश के नागरिकों के रूप में अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं। आम तौर पर लोगों में पढ़ने के प्रति उत्साह और मीडिया, विशेष रूप से समाचार पत्रों को लेकर गहरा लगाव देखने को मिलता है।
जमीनी स्तर पर, जहां तक शक्तियों के हस्तांतरण, सुगठित अवसंरचना और इसकी कार्यप्रणाली का सवाल है, केरल में लोकतंत्र अपने सबसे अच्छे रूप में है। राज्य सरकार द्वारा बजट का 40 प्रतिशत सीधे ग्राम पंचायतों को उनके निर्णय और पसंद की विकास गतिविधियों के लिए दिया जाता है। ग्राम पंचायतों द्वारा स्थानीय रूप से तय की गई विकास गतिविधियों के लिए होने वाले इस प्रत्यक्ष वित्तीय अंतरण में संसद-सदस्यों और विधायकों की कोई भूमिका नहीं होती है। भारत के अन्य राज्य केरल के विकेंद्रीकरण को बहुत सम्मान देते हैं। क्षेत्र के समग्र विकास में, स्थानीय स्वशासन संस्थानों (एलएसजीआई) की एक बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके लिए न केवल पारदर्शी तरीके से प्रत्यक्ष सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, बल्कि इससे जनप्रतिनिधि अधिक जिम्मेदार, जवाबदेह और उद्देश्य के प्रति समर्पित हो जाते हैं तथा अपने सार्वजनिक व्यवहार में अत्यधिक सतर्कता व सावधानी बरतते हैं। स्थानीय प्रशासन के नोडल संस्थान- केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान (केआईएलए), त्रिशूर के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। केरल में पंचायतों की त्रिस्तरीय संरचना है। राज्य में 1200 स्थानीय स्वशासन संस्थान (एलएसजीआई) हैं, जो 14 ज़िलों में फैले हुए हैं और जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 14 जिला पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायतें और 941 ग्राम पंचायतें हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए 87 नगर परिषदें और 06 नगर निगम मौजूद हैं।
केरल में होने वाला काली मिर्च और प्राकृतिक रबर का उत्पादन कुल राष्ट्रीय उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। कृषि क्षेत्र में नारियल, चाय, कॉफी, काजू और मसाले बेहद महत्वपूर्ण हैं। केरल में उगाए जाने वाले मसालों में काली मिर्च, लौंग, इलायची (छोटी), जायफल, जावित्री, दालचीनी, कैसिया और वेनिला शामिल हैं। केरल की तटीयरेखा 595 किलोमीटर लंबी है। यहां की जलवायु आर्द्र भूमध्यरेखीय उष्णकटिबंधीय है और इसे अभी भी ‘मसालों का बगीचा’ या ‘भारत का मसाला उद्यान’ के नाम से जाना जाता है। कोच्चि स्थित नारियल विकास बोर्ड नारियल उत्पादन में और भारतीय मसाला बोर्ड मसाला व्यापार में भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वर्ष 1986 में, केरल सरकार ने पर्यटन को एक महत्वपूर्ण उद्योग घोषित किया और ऐसा करने वाला यह भारत का पहला राज्य था। केरल ई-गवर्नेंस से संबंधित विभिन्न पहल को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। वर्ष 1991 में, केरल देश में पूर्ण साक्षर राज्य की मान्यता हासिल करने वाला पहला राज्य बना, हालांकि उस समय प्रभावी साक्षरता दर सिर्फ 90 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार, 74.04 प्रतिशत की राष्ट्रीय साक्षरता दर की तुलना में केरल में 94 प्रतिशत साक्षरता है।
केरल ने शत-प्रतिशत मोबाइल घनत्व, 75 प्रतिशत ई-साक्षरता, अधिकतम डिजिटल बैंकिंग, ब्रॉडबैंड कनेक्शन, आधार कार्ड और बैंक खातों को जोड़ते हुए सभी 14 जिलों में ई-डिस्ट्रिक्ट परियोजना के साथ डिजिटल केरल की एक मजबूत नींव रखकर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। इन संकेतकों के आधार पर, केरल को पूर्ण डिजिटल राज्य घोषित किया गया है। केरल को भारत के सबसे बड़े सॉफ्टवेयर इंफ्रास्ट्रक्चर पार्कों की भूमि के रूप में जाना जाता है।
सभी पंचायतों में आयुर्वेदिक उपचार केन्द्रों की शुरुआत करके केरल एक संपूर्ण आयुर्वेद राज्य बनने की ओर अग्रसर है। यहां कुल 77 नए स्थायी केन्द्र शुरू किए गए और 68 आयुर्वेद अस्पतालों का जीर्णोद्धार किया गया और 110 होम्योपैथिक औषधालय शुरू किए गए। केरल में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता मानक उच्च है और “अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन बचाओ” परियोजना पूरे देश के लिए एक आदर्श है। केरल में “खाना बचाओ, खाना बांटो” कार्यक्रम शुरू किया गया है।
सूचना एक शक्ति है। केरल में, लोग लगभग हर चीज के बारे में अच्छी तरह से अवगत हैं और उनके पास अद्यतन सूचनाएं हैं। केरल वास्तव में राह दिखाता है, यह विकास का एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है, जहां विकास के मजबूत रास्ते उपलब्ध हैं और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से एक सशक्त समाज मौजूद है।
केरल, जिसे “भगवान का अपना देश” के रूप में जाना जाता है, को प्यार करने वाली बेटियों की भूमि कहा जा सकता है। यहां बेटियों की संख्या बेटों से अधिक है और 2011 की जनगणना के अनुसार देश में यहां लिंगानुपात सबसे अधिक है। यह प्रति 1000 पुरुषों पर 1084 महिलाओं के अनुपात के साथ महिलाओं के पक्ष में अनुपात रखने वाला देश का इकलौता राज्य है। केरल में एक लड़की के जन्म को शुभ और भगवान का उपहार माना जाता है। वास्तव में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के ऐतिहासिक स्थान पानीपत में शुरू किए गए ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (बीबीबीपी) अभियान में निहित सपनों को साकार करने और उसे सफल बनाने का असली उदाहरण केरल ही है।
भारत के एक अग्रणी राज्य के रूप में, केरल ने विशेष रूप से धर्मनिरपेक्षता, लैंगिक समानता और महिलाओं एवं बच्चों के सशक्तिकरण के सिद्धांतों पर आधारित लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव को सुरक्षित रखने तथा उसे मजबूती प्रदान करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। इस राज्य में उच्चतम साक्षरता दर 94 प्रतिशत है और उच्चतम जीवन प्रत्याशा 74 वर्ष है। बाकी देश की तुलना में इस राज्य का मीडिया से सबसे अधिक परिचय भी है। यहां नौ अलग-अलग भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं, मुख्य रूप से अंग्रेजी और मलयालम में।
अतीत की मातृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण, केरल में महिलाओं को एक उच्च सामाजिक स्थिति हासिल है। देश के अन्य हिस्सों में प्रचलित आमतौर पर लड़कों के लिए चाहत की तुलना में केरल में एक लड़की का जन्म बोझ नहीं माना जाता है। लड़कों के लिए इसी चाहत की वजह से पूरे देश में लिंगानुपात कम हो जाता है। केरल में जाति, पंथ, धर्म या क्षेत्र से परे जाकर लगभग सभी समुदायों में जन्म और जीवित रहने की दर के साथ-साथ शिक्षा के मामले में लड़कियों की स्थिति उच्चतम स्तर पर है।
जहां तक “"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान का संबंध है, केरल सबसे अग्रणी राज्य है। केरल ने वास्तव में प्रगति की है और यह सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास के सभी क्षेत्रों में दिखाई देता है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने केरल को दुनिया का पहला ‘बच्चों के लिए अनुकूल राज्य’ नामित किया है, क्योंकि यहां तैयार फॉर्मूला दूध की तुलना में स्तनपान को प्रभावी ढंग से बढ़ावा दिया गया है। कुल 95 प्रतिशत से अधिक बच्चों का जन्म अस्पताल में होता है और इस राज्य में देश में सबसे कम शिशु मृत्यु दर भी है। चिकित्सा सुविधाओं की देख-रेख में शत- प्रतिशत बच्चों के जन्म के साथ ‘संस्थागत प्रसव’ के मामले में केरल को पहला स्थान दिया गया है।
‘केरल परिघटना’ या विकास के केरल मॉडल को भारत में अन्य राज्यों द्वारा अनुकरण करने और दोहराने की जरूरत है। यह बिल्कुल निश्चित है कि जनभागीदारी के साथ केरल जीवन के हर क्षेत्र में देश में सबसे आगे होगा। केरल कई मामलों, विशेष रूप से महिला सशक्तिकरण, उच्च साक्षरता दर और राज्य के बजट के 40 प्रतिशत हिस्से को सीधे हस्तांतरित करने के जरिए जमीनी स्तर पर पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के सुदृढ़ीकरण, में दूसरे राज्यों के लिए देश का एक आदर्श राज्य है जिसका अनुकरण किया जाना चाहिए। केरल के लोग पहले से ही नियमित रूप से हाल में शुरू की गई उन सरकारी विकास योजनाओं का लाभ रहे हैं, जिन्हें पूरे देश के विभिन्न राज्यों के सभी वर्गों और इलाकों के संतुलित एवं समग्र विकास के लिए बड़े स्तर पर प्रयास के साथ प्रचारित किया जा रहा है।

 
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