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राष्ट्रीय

मॉल एवं स्टोर उपभोक्ता से कैरी बैग का शुल्क ले सकते या नहीं? अब सुप्रीम कोर्ट बताएँगे

December 25, 2022 05:43 AM

संजय कुमार मिश्रा:
क्या दुकानदारों को अपने ग्राहकों से ख़रीदे हुए सामान को घर ले जाने के लिए दिए जाने वाले कैरी बैग का कीमत अलग से वसूलना सही है या गलत? इसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट में होगा।
जी हाँ, रिलायंस रिटेल लिमिटेड ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा डी एन नंबर 9245/ 2021 के केस में पारित 27 जुलाई 2021 के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और रिलायंस रिटेल लिमिटेड बनाम धरम पाल एवं अन्य टाइटल का यह केस एस एल पी (सिविल) नंबर 18376/ 2021 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और अगली सुनवाई 11 जनवरी 2023 को निर्धारित की गई है।
आजकल एक चलन सा हो गया है कि नमी गिरामी रिटेल चेन स्टोर, जैसे की रिलायंस रिटेल, विशाल मेगा मार्ट, बिग बाजार, डोमिनोज, डी—मार्ट वगैरह वगैरह ने अपने ग्राहकों से खरीददारी के बाद सामान को ले जाने के लिए दिए जा रहे कैरी बैग का भी कीमत वसूलना शुरू कर दिया है। हालांकि देश के कई उपभोक्ता अदालत में इसकी शिकायतें दाखिल हुई और उपभोक्ता अदालत ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए स्टोर पर जुर्माना भी किया लेकिन ये स्टोर है कि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे।  

मार्च 2018 में 2016 वाले नियम को भी बदल दिया गया और कैरी बैग के लिए ग्राहकों से पैसे लेने वाला नियम ही खत्म कर दिया गया। यानी किसी भी रिटेलर को कागज के या कपड़े के कैरी बैग के लिए पैसे लेने की अनुमति तो पहले ही नहीं थी, अब प्लास्टिक के कैरी बैग के लिए भी पैसे नहीं ले सकते थे। लेकिन रिटेलर्स ने अपनी कमाई जारी रखी और वो अपने ग्राहकों से कैरी बैग के पैसे वसूलते रहे।


पहले तो हर दुकानदार कैरी बैग मुफ्त में देता था, लेकिन अब क्यों नहीं देता? दुकान वालों (Retailers) का तर्क होता है कि कपड़े के बैग प्लास्टिक बैग की तुलना में महंगे होते हैं, इसलिए वह ये बैग फ्री नहीं दे सकते। वहीं ग्राहकों का तर्क ये होता है कि जो दुकान सामान बेच रही है, उसे ले जाने के लिए थैला भी दुकान को ही देना चाहिए। बड़ी सीधी से बात है कि जब एक रोड साइड के रेहड़ी फड़ी वाले से आप 40- 50 रूपये की सब्जी खरीदते हैं तो उससे यही माल वाले फ्री कैरी बैग की उम्मीद करते है जिसे वो रेहड़ी फड़ी वाले वखूबी पूरा करते हैं फिर हजारों के कीमत का सामान खरीदने वाले ग्राहक मॉल या ब्रांडेड स्टोर से ऐसी उम्मीद क्यों ना करे? आखिर ये कैरी बैग की कीमत उनके मुनाफे में बखूबी सम्मिलित होती है, यही नहीं ख़रीदे गए सामान को कैरी बैग में डालकर ग्राहक को समर्पित करना ग्राहक के संतुष्टि का ही एक हिस्सा है।
जहाँ तक उपभोक्ता अदालत का सवाल है तो चंडीगढ़ जिला उपभोक्ता आयोग ने बिग बाजार, विशाल मेगा मार्ट, बाटा इंडिया, जोमैटो आदि कई रिटेलर्स को ग्राहकों से कैरी बैग के कीमत अलग से लेने पर जुर्माना भी किया, जिसकी अपील चंडीगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग में की गई लेकिन पंकज चंद गोटिया के मामले में चंडीगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग ने सेल्स ऑफ गुड्स एक्ट 1930 का हवाला देते हुए फैसला दिया कि सामान को डिलीवर करने की स्थिति में कैरी बैग देना दुकान की जिम्मेदारी होती है। वहीं कुछ लोगों का तर्क ये भी है कि जब बैग पर कंपनी अपना विज्ञापन कर रही है तो फिर उसके लिए ग्राहक से पैसे क्यों ले रही है? यहां सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि आखिर सही कौन है? दूसरी तरफ पीएम मोदी ने अपने कई भाषण में कहा था कि दुकान वाले अपने पास बेचने के लिए थैला रखें, तो फिर थैला बेचने पर उपभोक्ता फोरम ने बिग बाजार, बाटा और डोमिनोज जैसे रिटेलर्स पर जुर्माना क्यों लगा दिया?
कैरी बैग को लेकर नियम-कानून क्या कहते हैं?
कैरी बैग के लिए पैसे लेने की शुरुआत तब हुई जब प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स, 2011 अस्तित्व में आया। सरकार का मकसद था कि प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट किया जाए। इसके तहत किसी भी ग्राहक को रिटेलर की तरफ से कैरी बैग मुफ्त में नहीं दिया जायेगा। ऐसा इसलिए किया गया ताकि ग्राहक प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें और अपने घर से कैरी बैग लाएं। जो लोग फिर भी प्लास्टिक का बैग लेते हैं, उनसे पैसे लिए जाएंगे जो प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट में काम आएगा। दिलचस्प ये है कि इस नियम में कैरी बैग को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह प्लास्टिक का कैरी बैग होना चाहिए। लेकिन रिटेलर्स ने इस नियम को ढाल बनाकर कागज और कपड़े के बैग भी मुफ्त में देना बंद कर दिया और ग्राहकों से पैसे लेने शुरू कर दिए।
आगे चलकर ये पाया गया कि उपरोक्त रूल 2011 में कुछ कमियां रह गई है मसलन कैरी बैग की न्यूनतम कीमत कितनी होनी चाहिए, पैसे कैसे म्यूनिसिपल अथॉरिटी को ट्रांसफर होंगे ताकि वो इस पैसे से प्लास्टिक वेस्ट का मैनेजमेंट कर सके, ऐसे में 2011 के इस नियम को 2016 में बदल दिया गया। इसके तहत ये तय हुआ कि प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के लिए रिटेलर से पैसे रजिस्ट्रेशन के समय ही ले लिए जाएंगे। फिर मार्च 2018 में 2016 वाले नियम को भी बदल दिया गया और कैरी बैग के लिए ग्राहकों से पैसे लेने वाला नियम ही खत्म कर दिया गया। यानी किसी भी रिटेलर को कागज के या कपड़े के कैरी बैग के लिए पैसे लेने की अनुमति तो पहले ही नहीं थी, अब प्लास्टिक के कैरी बैग के लिए भी पैसे नहीं ले सकते थे। लेकिन रिटेलर्स ने अपनी कमाई जारी रखी और वो अपने ग्राहकों से कैरी बैग के पैसे वसूलते रहे।
चंडीगढ़ के एक अधिवक्ता पंकज चंद गोटिया ने सेल्स ऑफ गुड्स एक्ट 1930 के सेक्शन 36 के सब सेक्शन (5) के आधार पर अपनी शिकायत उपभोक्ता आयोग को दी और बताया कि इस कानून के अनुसार किसी भी प्रोडक्ट को डिलीवरी देने की स्थिति तक लाने में जितना भी खर्चा होता है, वह दुकानदार को ही वहन करना होता है। अब किसी सामान को कोई व्यक्ति यूं ही तो हाथ में टांग कर ले जा नहीं सकता, तो कैरी बैग भी डिलीवरी की स्थिति तक लाने में ही शामिल है, इसलिए इसका खर्चा कंपनी को ही उठाना होता है, जिसे चंडीगढ़ राज्य उपभोक्ता आयोग ने सही माना और ग्राहकों के पक्ष में फैसला देते हुए रिटेलर्स पर जुर्माना लगा दिया।
कैरी बैग को रिटेलर्स ने अपने रेवेन्यू जनरेशन का एक मॉडल बना लिया।
एक कैरी बैग के 15 से 23 रुपए तक वसूलते है, जिसकी कीमत शायद 5 रुपए भी नहीं होती है और एक दुकान पूरे दिन में ऐसे 100 बैग तो बेच ही देती है। आखिर इससे तगड़ा मुनाफा कौन से धंधे में मिलेगा? तो रिटेलर्स ने इसे ही अपना रेवेन्यू मॉडल बना लिया। अब नियमों को ताक पर रखकर रिटेलर्स कागज और कपड़े के बैग भी बेच रहे हैं। इतना ही नहीं, कई रिटेलर्स इन बैग पर अपना ब्रांड प्रमोशन भी कर रहे हैं। यानी जो पीएम मोदी ने कहा था कि अपनी दुकान पर कपड़े का थैला रखें, उसे बेचें, इससे आपको प्रमोशन होगा, वो हो रहा है। रिटेलर्स धड़ल्ले से कपड़े के बैग बेच रहे हैं, लेकिन कंज्यूमर फोरम की ओर से एक के बाद एक कई रिटेलर्स पर जुर्माना लग चुका है।
भले ही रिटेलर्स ने कैरी बैग बेचने को अपने बिजनेस में रेवेन्यू जनरेशन का एक हिस्सा बना लिया हो, लेकिन सेल ऑफ़ गुड्स एक्ट 1930, और प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2018 के अस्तित्व में होते हुए, ये पूरी तरह से गैर कानूनी है।

 
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