आर के शर्मा/ चंडीगढ़
उत्तरायणी/मकरैणी मेले का उत्तराखंड युवा मंच द्वारा सेक्टर 42 लेक में मकर संक्रांति के उपलक्ष्य में भव्य आयोजन किया गया I उत्तराखंड युवा मंच के प्रधान श्री वासुदेव शर्मा ने बताया की मंच द्वारा चंडीगढ़ में पहली बार मकर सक्रांति के उपलकक्ष्य में मकरैणी उत्तरायणी मेले का आयोजन किया गया क्योंकि चंडीगढ़ में बसा गढ़वाली और कुमाऊँनी समुदाय अपने प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर उत्तराखंड की लोक संस्कृति की झलक दिखाने वाले उत्तरायणी/मकरैणी मेले का आयोजन सेक्टर 42 की झील में आयोजन किया I
इस अवसर पर उत्तराखंड युवा मंच के सचिव श्री जखमोला एवं इस कार्यक्रम के कन्वीनर श्री धर्मपाल रावत ने बताया कि इस मेले में हरियाणा राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय हरियाणा का विशेष योगदान रहा है। इस मौके पर हरियाणा के राज्यपाल महामहिम श्री दत्तात्रेय बंडारू जी मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम में गढ़वाली, कुमाऊनी और जौंलसारी लोकगीतों एवं नृत्यों का भरपूर मिश्रण रहा साथ ही साथ उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध गीत गायक एवं जागर सम्राट पद्मश्री डा.प्रीतम भरतवाण जी के गीत और जागरण गायन ने जनता का भरपूर मनोरंजन किया इस मौके पर श्री कुलदीप सिंह रावत - दीक्षा प्रोपर्टी देहरादून अति विशिष्ट अतिथि थे साथ ही साथ चण्डीगढ़ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर शिरकत की
महामहिम राज्यपाल ने उत्तराखंड युवा मंच के सांस्कृतिक कार्यक्रम को बड़े ही ध्यान से देखा और पहाड़ी संगीत को सुनकर, आनन्दि हुए तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रसंशा करते हुए उत्तराखंड युवा मंच द्वारा किए जा रहे समाज हितैषी प्रयासों की खूब सराहना की और कहा की मंच द्वारा भविष्य में भी इस प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियां एवं समाज कल्याणकारी कार्य,सुचारू रूप से चलाए जाते रहेंगे ताकि यहां के शहरी समाज में जन्मे बच्चे भी ,अपनी संस्कृति से सदैव रूबरू होते रहें।
इस कार्यक्रम में गढ़वाली, कुमाऊनी और जौंलसारी लोकगीतों एवं नृत्यों का भरपूर मिश्रण रहा साथ ही साथ उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध गीत गायक एवं जागर सम्राट पद्मश्री डा.प्रीतम भरतवाण जी के गीत और जागरण गायन ने जनता का भरपूर मनोरंजन किया इस मौके पर श्री कुलदीप सिंह रावत - दीक्षा प्रोपर्टी देहरादून अति विशिष्ट अतिथि थे साथ ही साथ चण्डीगढ़ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर शिरकत की तथा 100000/- रुपए का सहयोग भी दिया। इसी के साथ ट्राइसिटी तथा साथ लगते शहरों के विभिन्न संस्थाओं के प्रधान- मंत्री, उत्तराखंडी जनसमूह, एवं अनेकों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
जिससे नई पीढ़ी के बच्चों को इस तरह के आयोजनों से अपनी परंपराओं और संस्कृति को जानने समझने एवं पहचानने का मौका मिलेगा। वर्षों से उत्तराखंड पृथक राज्य की मांग जोरों पर चलर ही थी।फल स्वरूप 9 नवम्बर सन् २००० को भारत गणराज्य का सत्ताईसवां पृथक राज्य बना दिया गया। राज्य भले ही नया है लेकिन इसकी संस्कृति एवं सभ्यता बहुत ही पुरानी है। हिंदू धर्म के सर्वोच्च महत्ता वाले तीर्थ स्थानों की छाया तले बसे उत्तराखंड के विषम भौगोलिक परिस्थितियां, वन संपदा,वहां का प्राकृतिक सौंदर्य,पहाड़ नदियों, सभ्यता संस्कृति के विषय में बहुत कुछ कहा लिखा जा सकता है ।
उत्तराखंड राज्य जैसे सभी को ज्ञात है कि यहां पर चारों धाम यानी बद्रीनाथ केदारनाथ गंगोत्री और यमुनोत्री के भव्य मंदिर पूजा स्थल हैं जहां पर समस्त भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आकर ,इन पूजास्थलों में भगवान के दर्शन करने आते हैं जैसा कि आप जानते हैं कि हिमालय का क्षेत्र होने के वजह से इन चारों धामों के मंदिरों के कपाट 6 महीने ही खुले रहते हैं और बर्फ गिरने के कारण 6 महीने मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं।
इस दौरान डोली लेजाकर ,पूजा अन्य स्थानों पर की जाती, उत्तरायणी का मतलब है सूर्य देवता का उत्तर दिशा में प्रवेश करके, संसार को प्रभामयकरते हैं। हर वर्ष सूर्य देवता छह माह दक्षिण दिशा से और छह माह उत्तर दिशा से संसार को आलोकित करते हैं।' उत्तरायणी ' महोत्सव उनके उत्तर दिशा में प्रवेश करने का महोत्सव है। धर्मग्रंथों में इसकी बहुत बड़ी महत्ता तथा विस्तृत चर्चा की गई है।
उत्तराखंड में इस महोत्सव को कई प्रकार से मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इसे घुघुतिया त्योहार गढ़वाल क्षेत्र में मकरैणी और जौंलसार में मारोज के नाम से मनाया जाता है। यहां के दूर दराज के क्षेत्रों में रहने वाले कई लोग, इस पर्व को अपने पितरों को याद करके तत्पश्चात शुभ काम शुरू करने के लिए मनाया जाता है।