चंडीगढ़, फेस2न्यूज:
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की महासचिव एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार जनता के बीच अपना भरोसा खो चुकी है, इसलिए शहरी निकाय संस्थाओं के चुनाव करवाने से भाग रही है। प्रदेश में 2 नगर निगमों, 10 नगर परिषद व पालिका का कार्यकाल खत्म हुए 3 महीने से ढाई साल बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक चुनाव नहीं कराए गए हैं। समय पर चुनाव ने होने से इन इलाकों के विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। - दो निगमों समेत 10 नगर निकायों के चुनाव लंबित
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि गठबंधन सरकार जनप्रतिधियों की बजाए अफसरों के मार्फत ही शहरों व गांवों की छोटी सरकार चलाने का कुचक्र चलाए हुए है। इससे पहले पंचायतों के चुनाव 21 माह की देरी से कराए गए। अब चुनाव के बाद भी ई-टेंडरिंग के बहाने ग्राम पंचायतों के अधिकार छीनने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नगर निगम फरीदाबाद व गुड़गांव, नगर परिषद अंबाला, थानेसर, सिरसा, नगर पालिका कालांवाली, सिवान, आदमपुर, बराड़ा, रादौर के चुनाव पेंडिंग पड़े हुए हैं, जबकि नवगठित मानेसर नगर निगम के पहली बार के ही चुनाव अभी तक नहीं कराए गए हैं। फरीदाबाद, गुड़गांव व मानेसर नगर निगम और अंबाला कैंट नगर परिषद की वार्डबंदी का काम अधूरा पड़ा हुआ है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि जनता के चुने हुए नुमाइंदों का हाउस न होने की वजह से इनमें विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। निकायों का बजट तक तैनात नहीं हो पाता। अधिकारी अपने हिसाब से शहर में काम कराते हैं, जबकि पार्षद व्यक्तिगत दिलचस्पी लेकर अपने-अपने इलाके की जरूरत के मुताबिक कार्य करवाते हैं। सही मायनों में पार्षदों के बिना किसी भी शहर के विकास का सही खाका खींचा ही नहीं जा सकता। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हाउस होने पर बाकायदा बजट व अन्य सामान्य बैठकें होती हैं। पार्षदों तक आम लोगों की पहुंच भी आसान होती है, इसलिए वे इनकी डिमांड भी इन बैठक में बखूबी रखते हैं। हास न होने पर अधिकारियों के हाथ में पावर होती है और वे बिना किसी जनभागीदारी के कार्य करते हैं। कुमारी सैलजा ने कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में खुलासा हो चुका है कि जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से वंचित प्रदेश के शहरी निकायों में कई तरह की दिक्कत खड़ी होती रही हैं। यह रिपोर्ट भाजपा शासन के साल 2015-16 से 2019-20 तक की थी। इस दौरान कई शहरों में शहरी निकाय संस्थाओं के चुनाव नहीं करवाए गए थे, जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा। क्योंकि, ये निकाय न तो विकास कार्य ही करवा पाए थे और न ही अलॉट की गई राशि को पूरी तरह से खर्च कर पाए थे। इसलिए लंबित पड़े शहरी निकायों के चुनाव तुरंत कराए जाने चाहिएं।