मनमोहन सिंह
आज बैठे बैठे न जाने क्यों मुझे वैसे ही एक घटना याद आ गई जो बरसों पहले मेरे गांव धर्मपुर में घाटी थी। एक रात हमारे बाज़ार की एक दुकान में चोरी हो गई। हमारे लिए यह हैरानी की बात थी क्योंकि हिमाचल प्रदेश में वैसे भी चोरी चाकरी के मामले बहुत कम होते हैं। इसलिए गांव के लोग बाज़ार में इकट्ठे हो गए। पुलिस अपना काम कर रही थी। पर हर कोई चोर की तारीफ कर रहा था।
एक साहब कह रहे थे, " कुछ भी हो कमाल का चोर है कितनी सफाई से माल उड़ाया है। चौकीदार तक को खबर नहीं लगने दी "। दूसरा कह रहा था, " देखो जी ताला तोड़ा नहीं पूरी सफाई से खोल दिया। बाहर से तो पता ही नहीं चलता कि अंदर से दुकान खाली हो गई है "। एक और सज्जन बोले, " अजी मैं रात ग्यारह बजे दिल्ली से आया तब भी सब ठीक ही लग रहा था, मतलब चोरी रात ग्यारह बजे के बाद ही हुई"। मैं चुपचाप खड़ा सुन रहा था कि लोग चोर की तारीफ के पुल बांध रहे थे।
कुछ ने तो यह कहते हुए घर की राह ले ली कि इतने शातिर चोर को पकड़ना पुलिस के बस की बात नहीं। सबके मुंह से चोर के लिए वाह ही निकल रही थी। कोई चोर या चोरी की निंदा नहीं कर रहा था। किसी का ध्यान चोरी पर था ही नहीं। मेरे लिए यह एक यक्ष प्रश्न है कि चोर की तारीफ होनी चाहिए थी या उसके कृत्य की निंदा? मैं आज तक इसी उलझन में हूं कि क्या चोरी की निंदा होनी चाहिए या चोर की निपुणता की तारीफ?