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राम नवमी और राम की आधुनिक युग में सार्थकता

April 11, 2019 09:03 PM

मदन गुप्ता सपाटू, लेखक, विचारक, धर्म मर्मज्ञ एवं ज्योतिर्विद्

 6 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि है। 14 अप्रैल को राम नवमी मनाई जाएगी। इस बार राम नवमी पुष्य नक्षत्र के योग में है। पुष्य नक्षत्र सभी 27 नक्षत्रों में सबसे सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र माना गया है। भगवान राम का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था।
चैत्र नवरात्र के आठवें दिन अष्टमी व नवमी एक साथ मनाई जाएंगी। अष्टमी के दिन ही सुबह 8.19 बजे नवमी तिथि प्रारंभ होगी, जो अगले दिन सुबह 6.04 बजे तक रहेगी। भगवान राम का जन्म पुष्य नक्षत्र में दोपहर 12 बजे हुआ था। इसलिए रामनवमी 14 अप्रैल को दोपहर 12 बजे से पहले मनाना शुभ रहेगा।

महात्मा गांधी ने भी रामराज्य की स्थापना का स्वप्न देखा था। यहां तक कि राजीव गांधी ने भी 1989 में अयोध्या में ही रामराज्य को साकार करने का प्रण लिया था। सत्राहवीं शताब्दी में संत तुकाराम ने छत्रपति शिवाजी महाराज को ऐसे ही समाज का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया था जिसमें राजा और प्रजा दोनों समान हों और जनता रामराज्य की अनुभूति कर सके। गांधी जी ने भी यही कहा था कि एक बार पूर्ण स्वराज्य मिल जाए तो देष में ऐसा वातावरण बनेगा जिसमें समानता, न्याय, आदर्श, समर्पण आदि की भावना होगी।


पुष्य नक्षत्र और राम नवमी के दिन भूमि, भवन, वाहन, ज्वैलरी, इलेक्ट्रिक सामान आदि खरीदने के लिए भी सर्वश्रेष्ठ दिन रहेगा। पुष्य नक्षत्र में खरीदारी शुभदायक होती।
हिन्दू धर्म में भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार राम नवमी के ही दिन त्रेता युग में महाराज दशरथ के घर विष्णु जी के अवतार भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म रावण के अंत के लिए हुआ था।
उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में रामनवमी का त्योहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन उपवास और ब्राह्मणों को भोजन कराना भी बहुत फलदायक है। कहते हैं ऐसा करने से घर में धन-समृद्धि आती है।
यदि किसी बड़ी समस्या से परेशान हो तो वह दिन में 3 बार श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन...,का पाठ भगवान श्रीराम के मंदिर में या उनके चित्र के सामने करें- इससे बड़ी से बड़ी समस्या दूर हो जाती है।
श्रीराम स्तुति: श्री राम चंद्र कृपालु भजमन...
* रामनवमी के दिन कोई भी स्त्री (पत्नी) रात्रि में खीर बना लें और उस खीर को चन्द्रमा की रोशनी में एक घंटे तक रखें। फिर पति-पत्नी दोनों साथ मिलकर खीर खाएं। इस उपाय से दोनों के बीच आ रही दूरियां दूर होकर प्रेम बढ़ता है तथा उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है।
रामनवमी के दिन 1 कटोरी में गंगा जल अथवा पानी लेकर राम रक्षा मंत्र -ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं रामचन्द्राय श्रीं नम: , का 108 बार जाप करके पूरे घर के कोने-कोने में उस जल का छिड़काव करें तो घर का वास्तुदोष तथा भूत-प्रेत , नजर बाधा, तंत्र बाधा आदि समाप्त हो जाते हैं। यह उपाय आप अपने ऑफिस-दुकान या व्यवसाय स्थल में भी कर सकते हैं।
* जो भी गृहस्थ इन कठिन मंत्रों का जप नहीं कर सकते, वे भगवान राम की स्तुति 'श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन...का प्रतिदिन गान करें। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीराम की इस स्तुति का गान करने से जीवन में किसी भी प्रकार के कष्ट नहीं आते।

राम की आधुनिक युग में सार्थकता:
भारतीय संस्कृति में हर त्योहार प्रकृति, लोक कथा, मौसम, इतिहास, विज्ञान, धर्म से कहीं न कहीं बहुत गहरे जुड़ा हुआ है और कई पर्व तो सदियों से संस्कृति, विश्वास व धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं। अच्छाई की बुराई पर विजय के प्रतीकात्मक पर्व दशहरे के ठीक 20 दिन बाद दीवाली का आगमन होता है। धर्म, समाज और इतिहास के साथ राम का नाम जुड़ा है तो रामराज्य की एक कल्पना का साकार होना भी एक भारतीय का सदियों से सपना रहा है। रामायण शब्द दो शब्दों राम और अयन से बना है। अयन का अभिप्राय यहां सात लोकों से है और रामायण इन सात लोकों से और आगे जाकर मोक्ष प्राप्त करना है। आध्यात्मिक दृष्टि से राम रमयते का अर्थ है कि अपने लक्ष्य प्राप्ति में रमे रहो।
भगवान राम और राम राज्य का उद्भव 10 हजार वर्ष पहले हुआ था। विश्व में यह अकेला उदाहरण है कि हम इतने सालों बाद भी ऐसे राजा को उसकी नीतियों और आदर्शों के लिए याद कर रहे हैं जिसके राज्य में शांति, सुख समद्धि के अलावा हर छोटे बड़े नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त थे। अन्य किसी देश में ऐसा सम्राट आज तक नहीं हुआ है जिसका अनुकरण या अनुसरण इतने वर्शों बाद भी किया जा सके और उस काल के वातावरण की कल्पना आज के आधुनिक युग में भी की जाए!
वर्तमान समय में भी आज का नेता, शासक उसी राम राज्य की परिकल्पना को साकार करने में संलग्न है जिसने समूचे विश्व के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया था। रामराज्य का अभिप्राय है कल्याणकारी राज्य की स्थापना जिसमें हम देश की संस्कृति कि विश्व का कल्याण हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, कोई निर्धन न रहे, सब निरोगी हों ,एक सशक्त राष्ट्र् के रुप में भारत विश्व में अपना परचम लहराए और विश्व गुरु कहलाए।
रामायण के ऐतिहासिक तथ्य अत्यंत सपष्ट हैं जिससे पता चलता है कि राम युग में सुख ,शांति, समृद्धि तथा सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक समानता का वर्चस्व रहा है। समाज में एकता थी कोई विघटन नहीं था और न ही किसी अन्य राजा की अयोध्या हथियाने की कुदृष्टि ही थी जिसके कारण युद्ध की आशंका नगण्य थी और अमन चैन रहा। एक धोबी तक को विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार था। लोकतंत्र की नींव रामराज्य में ही रखी गई। विश्व के किस देश में ऐसी मिसाल है? इसीलिए भारत के संविधान में देश के उसी उसूल को कायम रखा गया कि सब को बोलने की आजादी हो।
आज के युग में हम रामराज्य की बातें क्यों कर रहे हैं? क्या आज इस्लामिक देशों मे बच्चे, महिलाएं, वृद्ध, विदेशी नागरिक सुरक्षित हैं? क्या वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? क्या वहां धर्म के विरुद्ध कुछ कहने की आजादी है? इसी लिए उन देशों में न सामाजिक उत्थान हो पाया न नैतिक और न ही आर्थिक। रामायण काल में तभी युद्ध हुआ जब आम नागरिक राक्षसों से पीड़ित था। शांति तथा धर्म की रक्षा के लिए ही युद्ध किया गया किसी की जमीन हथियाने के लिए नहीं।
हमारे समाज में राम का नाम सत्यता को प्रमाणित करने की एक मुहर बन गया है। भारतीय अपनी सच्चाई सिद्ध करने के लिए राम की कसम खाता है। राम शब्द एक तंत्र ,मंत्र और यंत्र की तरह जीवन का अंग हो गया है। यहां तक कि प्राण छूटने पर गांधी जी के अंतिम शब्द भी हे! राम थे और आज एक आम आदमी के दाह संस्कार पर भी राम नाम सत्य ही बोला जाता है। राम एक नाम ही नहीं अपितु भारतीय जीवन की एक विचारधारा बन चुका है।
यदि आधुनिक सरकारी तंत्र में गुड गवर्नेंस की बात करें तो रामायण काल की शासन पद्धति का उदाहरण सामने आ जाता है। आज के संदर्भ में रामराज्य लाने के लिए एकता में अनेकता, भाशाई विवाद, सीमा विवाद,विभिन्न संस्कृतियों को एक सूत्र में पिरोना, पुराने कानूनों का नवीकरण करना, समाज को भय मुक्त करना, सबको शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना, जीने का अधिकार देना... कितने ही बिंदु हैं जिन्हें दृष्टिगत रख कर एक शक्तिशाली भारत का निर्माण करना है।
रामायण अपने आप में तीन विभिन्न संस्कृतियों का समागम है। जहां लंकाई संस्कृति में लड़ने, हथियाने, विलासिता के तत्व शीर्षस्थ थे वहीं किष्किंधा में कबीलों का बोलबाला और पिछड़ापन था और उसके विपरीत अयोघ्याई समाज में कला, शिक्षा, विद्या, नैतिकता और लोकतांत्रिक व्यवस्था का समावेश था। जब तीनों संस्कृतियों के प्रतिनिधियों की शिखर वार्ता हुई जिसमें उत्तर भारत के राम, दक्षिण के हनुमान और लंका के राक्षसी परिवार के विभीषण शामिल थे तो एक ऐसे वातावरण ने जन्म लिया जिसे रामराज्य का प्रादुर्भाव कहा जा सकता है।
विचारधारा की दृष्टि से दशरथ स्वयं छोटे से छोटे व्यक्ति को समान अधिकार देते थे। विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को आदेश दिया कि रथ की बजाय पैदल ही अयोध्या जाओ। राम को हर राजकीय व पारिवारिक मर्यादा के पालन की शिक्षा दी तभी वे मर्यादा पुरुशोत्तम कहलाए। भाईयों में पारिवारिक अनुशासन बनाए रखने की पद्धति अपनाई गई। नारी को कंधे से कंधा मिला कर चलने का उदाहरण सामने है। वचन निभाने की परंपरा का निर्वाह हर कीमत पर करने का त्याग है।
आज रामायण का छोटे से छोटा प्रसंग भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 10000 साल पहले था। यदि शासक कमजोर और निर्धन वर्ग की दुख तकलीफ उनके बीच जाकर नहीं समझेगा तो वह देश को आगे नहीं ले जा सकता। स्वयं शक्तिशाली नहीं होगा तो राष्ट्र् कैसे सशक्त होगा?
महात्मा गांधी ने भी रामराज्य की स्थापना का स्वप्न देखा था। यहां तक कि राजीव गांधी ने भी 1989 में अयोध्या में ही रामराज्य को साकार करने का प्रण लिया था। सत्राहवीं शताब्दी में संत तुकाराम ने छत्रपति शिवाजी महाराज को ऐसे ही समाज का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया था जिसमें राजा और प्रजा दोनों समान हों और जनता रामराज्य की अनुभूति कर सके। गांधी जी ने भी यही कहा था कि एक बार पूर्ण स्वराज्य मिल जाए तो देष में ऐसा वातावरण बनेगा जिसमें समानता, न्याय, आदर्श, समर्पण आदि की भावना होगी।
भारत का सौभाग्य है कि आज रामायण काल के सभी आदर्शों को समाहित कर हम रामराज्य की ओर अग्रसर होने का प्रयास कर रहे हैं। इसी लिए हमारे देवस्थानों पर, घरों व मंदिरों में राम दरबार के चित्र या मूर्तियां सुसज्जित करने की परंपरा है ताकि हमें नियमित राम राज्य की प्रेरणा समाज में मिलती रहे।

सफल होने के लिए जरूरी है भगवान श्रीराम के यह 11 गुण
भगवान श्रीराम के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। खासतौर पर उनके द्वारा अपनाई गई व्यावहारिक नीतियां -यहीं कारण था कि कठिन परिस्थितियों में भी वे सफल रहे। भगवान श्रीराम के स्वभाव के इन 11 गुणों से सीखना चाहिए।
सभी से हंसते-मुस्कुराते मिलना।
लोगों के नामों को याद रखना और उन्हें उन्हीं नाम से संबोधित करना।
दूसरों की बातों को ध्यान और धीरज से सुनना।
लोगों के प्रति सच्ची निष्ठा रखना।
दूसरे व्यक्तियों को सम्मान देना।
किसी को अपने विचार मनवाने के लिए तर्क और विवाद का सहारा नहीं लेना।
उच्च आदर्श व सिद्धांत का पालन करने में हर कठिनाई को सहन करने के लिए तैयार रहना।
दूसरे के विचारों और भावनाओं के प्रति सच्ची सहानुभूति रखना।
दूसरे की दृष्टि से घटनाओं या वस्तुओं को देखने का प्रयास करना।
अपनी त्रुटि(गलती) को शीघ्र स्वीकार कर लेना।
दूसरे व्यक्तियों के विचारों के प्रति आदर की भावना होना।

 
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