पीएम सुरक्षा का ये मुद्दा सुरक्षा चूक के साथ राजनीतिक ज्यादा बन गया है।
यदि अदालतें इन परिस्थितियों में भी उनके मुआवजे में कंजूसी करेंगी तो ये घायल पीड़ित के लिए अपमान के समान परिणामी है।
जैसे ही वसंत आता है, उपकार फिल्म का प्रसिद्ध गीत -‘पीली पीली सरसों फूली, पीली उड़े पतंग, अरे पीली पीली उड़े चुनरिया, पीली पगड़ी के संग’, भी खेतों का दृश्य लेकर मन मस्तिष्क में तैरने लगता है।
यह कैसा लोकतंत्र है? मतदाता 'राजा' होकर भी भिखारी बन गया और प्रतिनिधि नौकर होकर भी राजे बन बैठे। खून-पसीना एक करके जिस बंजर भूमि को अनाज उगाने लायक बनाया, भला उसको पूंजीपतियों के हाथ में कैसे सौंप दें? बस इतनी- सी बात भी हमारे नेताओं की समझ में नहीं आ रही।
सर्द रातों में खेतों को पानी देना आसान काम नहीं है। इस सारी मशक्कत में धरतीपुत्र कब बीमार होता है, कब मर जाता है, इतना सोचने का समय भी उनके पास नहीं होता। अब सवाल उठता है कि मिट्टी के साथ मिट्टी होने वाला यह इंसान क्या सम्मान भरी जिंदगी का हकदार नहीं?