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संपादकीय

याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा

December 11, 2020 09:07 AM

 संजय कुमार मिश्रा

याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा। 

कविवर रामधारी सिंह दिनकर की ये कविता आज के किसान आंदोजन पर पूरी फिट बैठ रही है

मंगलवार को किसानों ने देशव्यापी बंद बुलाया था, जिसके बाद रात में किसान नेताओं की गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक हुई. इस बैठक के बाद अगले दिन यानी बुधवार को किसानों और कृषि नेताओं की प्रस्तावित बैठक को भी रद्द कर दी गई। सरकार ने किसानों को 20 पेज का प्रस्ताव भेजा था जिस पर चर्चा के बाद किसान नेताओं ने इसे खारिज कर दिया और अपने प्रदर्शन को जारी रखने की बात कही है ।

किसानों ने इस दौरान साफ कहा है कि - याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन, जय, या की मरण होगा। तीनो कृषि कानून के वापस होने तक ये रण शांतिपूर्ण एवं हिंसारहित होगा। किसानों ने कहा - अब वो दिल्ली के सभी राज्यों के साथ लगने वाले बॉर्डर को सील कर देंगे ।

किसानों ने सरकार की नब्ज पकड़ते हुए कहा कि सरकार ने ये तीन बिल कॉर्पोरेट्स के हितों को मजबूत करने के लिए लागू किया है. किसानों का कहना है कि अब वो जियो सिम से लेकर रिलायंस के सभी सामानों का बहिष्कार करेंगे. उनका कहना है कि इस दौरान अडानी-अंबानी के पेट्रोल पंप का भी बहिष्कार किया जाएगा और वहां से पेट्रोल नहीं खरीदा जाएगा. जब सरकार कॉर्पोरेट्स को सपोर्ट करने की अपनी नीति को छोड़ने को तैयार नहीं है तो ऐसे में किसानों ने उनके बहिष्कार का रास्ता अपनाने का फैसला लिया है। रिलायंस जियो नंबर के उपयोगकर्ता अपने नंबर को अन्य ऑपरेटर में पोर्ट कराएंगे।

किसानों ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि अब देशभर में किसान धरना देंगे और इस दौरान वो बीजेपी के सभी नेताओं एवं सभी मंत्रियों का घेराव भी करेंगे। किसानों का कहना है कि हम सभी किसान जत्थो में कोई टकराव नहीं है, सब बड़ी मजबूती के साथ एक हैं।

समस्या क्या है ?

सबसे बड़ी समस्या जो उभरकर सामने आ रही है वो ये है कि किसान नेता कहते है कि - जो चीज हमे चाहिए ही नहीं वो मुझपर जबरदस्ती क्यों थोपी जा रही है ?

सरकार कह रही है कि ये तीनो कृषि कानून किसानों के हित में ही है, इससे उसकी कमाई बढ़ेगी। जवाब में किसान कहते है कि अगर ये मेरे हित में थी तो कानून बनाने से पहले मेरे से पूछा या मेरे से बातचीत क्यों नहीं की, क्यों फटाफट कानून ही पास करवा दिया ? किसान आगे कहते है कि नोटबंदी के समय, जी एस टी लागू करते समय भी यही कहा था कि ऐसे देश कि अर्थव्यवस्था छलांगें मारने लगेगी, हुआ क्या उल्टे, अर्थव्यवस्था चौपट हो गई, हजारों लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं, इसलिए मुझे मोदी जी के किसी भी बात पर अब भरोसा नहीं है।

सारांश यही है कि सरकार किसानों के बीच अपना भरोसा और विश्वास खो चुकी है क्योंकि जिस तरह से बिना कोई संवाद एवं चर्चा किए इस कृषि कानून को कॉरपोरेट के फायदे के लिए जल्दबाजी में पास किया वो सब किसानों को समझ में आ गया है, इसलिए वो इस तीनो कानूनों के वापसी के अलावा कुछ और सुनने को तैयार नहीं है। आगे देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का डींग हांकने वाली सरकार क्या सचमुच में लोकतन्त्र को जिंदा रखने के लिए जनतंत्र को सुनती है या राजधर्म के हठ पर कायम रहते हुए अपनी जग हंसाई कराती है।

मंगलवार को किसानों के साथ बैठक में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि - कृषि कानून अब वापस या समाप्त नहीं हो सकता, हां इसमें संशोधन किया जा सकता है, तो किसान पूछते हैं कि, जब मोदी जी 200 साल पुराने करीब 1200 कानूनों को समाप्त कर सकते हैं तो इस कानून को क्यों नहीं ?

सरकार कहती है हम आपको लिखित में आश्वासन देते है कि - मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) जारी रहेगी और एसडीएम कोर्ट में या सिविल कोर्ट में जाने का हक मिलेगा। किसान कहते है, लिखित आश्वाशन नहीं, कानून बनाईए, आपने अंबानी अदानी जैसे कॉरपोरेट के लिए तो फटाफट कानून पास करवाया, किसानों को  सिर्फ लिखित आश्वाशन क्यों ?

बीजेपी के कई नेता और मंत्री कह रहे हैं कि किसान आंदोलन भड़काने के पीछे चीन एवं पाकिस्तान का हाथ है, तो किसान नेता कहते है कि - सचमुच अगर ऐसी बात है तो गृहमंत्री अमित शाह को चुनौती है जिनके अधीन काम करने वाली सारी एजेंसी फेल हैं कि वो इन चीनियों और पाकिस्तानियों को अब तक एक्सपोज नहीं कर पाए हैं।

सारांश यही है कि सरकार किसानों के बीच अपना भरोसा और विश्वास खो चुकी है क्योंकि जिस तरह से बिना कोई संवाद एवं चर्चा किए इस कृषि कानून को कॉरपोरेट के फायदे के लिए जल्दबाजी में पास किया वो सब किसानों को समझ में आ गया है, इसलिए वो इस तीनो कानूनों के वापसी के अलावा कुछ और सुनने को तैयार नहीं है। आगे देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का डींग हांकने वाली सरकार क्या सचमुच में लोकतन्त्र को जिंदा रखने के लिए जनतंत्र को सुनती है या राजधर्म के हठ पर कायम रहते हुए अपनी जग हंसाई कराती है। 

(लेखक पत्रकार और सूचना के अधिकार के कर्मठ कार्यकर्ता हैं)

 
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