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बुद्ध पूर्णिमा 18 मई को, गौतम बुद्ध की मनाई जाएगी 2581वीं जयंती

May 09, 2019 08:36 PM

मदन गुप्ता सपाटू,ज्योतिर्विद्, चंडीगढ. 

 वैशाख मास की पूर्णिमा को गौतम बुद्ध की जयंती के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है| इसलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है| इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी| जहां विश्वभर में बौध धर्म के करोड़ों अनुयायी और प्रचारक है वहीँ उत्तर भारत के हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बुद्ध को विष्णुजी का नौवा अवतार माना कहा गया है| बुद्ध जयंती 18 मई को है। इस दिन गौतम बुद्ध की 2581वीं जयंती मनाई जाएगी।

पूरी दुनिया में लगभग 180 करोड़ लोग बुद्ध के अनुयायि हैं। भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान जैसे दुनिया के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है। भारत के बिहार राज्य में स्थित बोद्ध गया बुद्ध के अनुयायियों सहित हिंदुओं के लिये भी पवित्र धार्मिक स्थल है। कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लगभग एक माह तक मेला लगता है। श्रीलंका जैसे कुछ देशों में इस उस्तव को वेसाक उत्सव के रूप में मनाते हैं। बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दिये जलाते हैं, फूलों से घर सजाते हैं। प्रार्थनाएं करते हैं, बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। स्नान-दान का भी वैशाख पूर्णिमा को महत्व माना जाता है।

हिंदुओं में हर महीने की पूर्णिमा विष्णु भगवान को समर्पित होती है. इस दिन तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान का लाभदायक और पाप नाशक माना जाता है. वैशाख पूर्णिमा का अपना-अलग ही ज्योतिषीय  महत्व है. इसका कारण है‍ कि इस माह होने वाली पूर्णिमा को चांद भी अपनी उच्च राशि तुला में होता है.

बुद्ध पूर्णिमा तिथि – 18 मई 2019 

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ –  04:10 बजे, 18 मई 2019 

पूर्णिमा तिथि समाप्ति –  02:41 बजे, 19 मई 2019 

यह सभी लोगों को ज्ञात है कि बुद्ध दुनिया भर में बौद्ध धर्म के प्रबुद्ध प्रचारक थे, लेकिन उन घटनाओं के बारे में जानना भी महत्वपूर्ण है जिनकी वजह से सिद्धार्थ गौतम ने निर्वाण प्राप्त किया। बौद्ध धर्म के विद्वानों के अनुसार, सिद्धार्थ का जन्म भारत के एक श्रेष्ठ परिवार में हुआ था। अपनी युवावस्था के दौरान सिद्धार्थ संसार के कष्टों से बिल्कुल दूर थे और बहुत वैभवशाली जीवन जीते थे। बाहरी संसार के बारे में उत्सुकता बढ़ने पर,सिद्धार्थ ने अपने एक नौकर को उन्हें पास के गरीब कस्बे में ले जाने के लिए कहा।

शांति की खोज में कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ 27 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, राजपाट आदि छोड़कर चले गए थे| भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ काशी के समीप सारनाथ पहुंचे जहाँ उन्होंने धर्म परिवर्तन किया| यहाँ उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचें कठोर तप किया| कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ को बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह महान सन्यासी गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित हुए और अपने ज्ञान से समूचे विश्व को ज्योतिमान किया| 

इस छोटी यात्रा के दौरान, सिद्धार्थ ने बीमारी, दुःख, और लालच सहित कई भयानक दृश्यों का सामना किया। इस घटना से सिद्धार्थ बहुत अधिक दुखी हुए और इसके बाद, उन्हें शराब या स्त्रियों जैसी साधारण चीजों में भी आनंद मिलना बंद हो गया। इस घटना के थोड़े समय के बाद ही सिद्धार्थ सांसारिक कष्टों का कारण खोजने के लिए यात्रा पर निकल पड़े। कई वर्षों के आत्म-चिंतन, कष्ट और ध्यान के बाद सिद्धार्थ को पता चला कि मनुष्य की इच्छा सभी सांसारिक कष्टों का कारण है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद, सिद्धार्थ ने अपनी शिक्षाओं का भारत के लोगों में प्रचार किया। 80 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ गौतम की मृत्यु हुई। सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाएं आज भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।

जयंती और  निर्वाण दिवस दोनों

बुद्ध पूर्णिमा वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है.वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली बुद्ध पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन को भगवान गौतम बुद्ध की जयंती और उनके निर्वाण दिवस दोनों के ही तौर पर मनाया जाता है. इसी दिन भगवान बुद्ध को बौध यानी ज्ञान प्राप्त हुआ था. यह बुद्ध अनुयायियों के लिए काफी बड़ा त्योहार है. बुद्ध भगवान बौद्ध धर्म के संस्थापक थे. बौध धर्म को मानने वाले भगवान बुद्ध के उपदेशों का पालन करते हैं. भगवान बुद्ध का पहला उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन' के नाम से जाना जाता है. यह पहला उपदेश भगवान बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था.

माना जाता है कि वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु का ने अपने नौवें अवतार के रूप में जन्म लिया. यह नौवां अवतार था भगवान बुद्ध का. इसी उनका निर्वाण हुआ.

मान्यताएं

इसी दिन को सत्य विनायक पूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा गरीबी के दिनों में उनसे मिलने पहुंचे. इसी दौरान जब दोनों दोस्त साथ बैठे थे, तो कृष्ण ने सुदामा को सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था. सुदामा ने इस व्रत को विधिवत किया और उनकी गरीबी नष्ट हो गई.

इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है. कहते हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं. माना जाता है कि धर्मराज मृत्यु के देवता हैं इसलिए उनके प्रसन्‍न होने से अकाल मौत का ड़र कम हो जाता है.

भगवान बुद्ध केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये आराध्य नहीं है बल्कि उत्तरी भारत में गौतम बुद्ध को हिंदुओं में भगवान श्री विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है। विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण माने जाते हैं। हालांकि दक्षिण भारत में बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं माना जाता है। दक्षिण भारतीय बलराम को विष्णु का आठवां अवतार तो श्री कृष्ण को 9वां अवतार मानते हैं। हिंदुओं में भी वैष्णवों में बलराम को 8वां अवतार माना गया है। बौद्ध धर्म के अनुयायी भी भगवान बुद्ध के विष्णु के अवतार होने को नहीं मानते। लेकिन इन तमाम पहुओं के बावजूद वैशाख पूर्णिमा का दिन बौद्ध अनुयायियों के साथ-साथ हिंदुओं द्वारा भी पूरी श्रद्धा व भक्ति के लिये भी बुद्ध पूर्णिमा खास पर्व है।

वर्तमान में पूरी दुनिया में लगभग 180 करोड़ लोग बुद्ध के अनुयायि हैं। भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान जैसे दुनिया के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है। भारत के बिहार राज्य में स्थित बोद्ध गया बुद्ध के अनुयायियों सहित हिंदुओं के लिये भी पवित्र धार्मिक स्थल है। कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लगभग एक माह तक मेला लगता है। श्रीलंका जैसे कुछ देशों में इस उस्तव को वेसाक उत्सव के रूप में मनाते हैं। बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दिये जलाते हैं, फूलों से घर सजाते हैं। प्रार्थनाएं करते हैं, बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। स्नान-दान का भी वैशाख पूर्णिमा को महत्व माना जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा को आधिकारिक अवकाश

सिद्धार्थ गौतम की मृत्यु के बाद सैकड़ों वर्षों से बुद्ध पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता था। इसके बावजूद, इस उत्सव को 20वीं सदी के मध्य से पहले तक आधिकारिक बौद्ध अवकाश का दर्ज़ा नहीं दिया गया था। 1950 में,बौद्ध धर्म की चर्चा करने के लिए श्रीलंका में विश्व बौद्ध सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में, उन्होंने बुद्ध पूर्णिमा को आधिकारिक अवकाश बनाने का फैसला किया जो भगवान बुद्ध के जन्म, जीवन और मृत्यु के सम्मान में मनाया जायेगा।

 
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