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एस्ट्रोलॉजी

117 साल बाद फिर बना शिवरात्रि पर विशिष्ट दुर्लभ संयोग

February 18, 2020 08:45 AM

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़, 9815619620

  ग्रहों की चाल भी अजीब होती है। इक्कीस फरवरी 2020 को पड़ने वाली महाशिवरात्रि पर वही ग्रह होंगे जो 117 वर्ष पूर्व 1903 में थे जब कालका - शिमला रुट पर टवाय ट्रे्न चली थी। इस बार दुर्लभ संयोग इस लिए बन रहे हैं कि शनि अपनी स्वराशि मकर में , शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में , गुरु स्वराशि धनु में और राहु अपनी मूल त्रिकोण राशि मिथुन में विराजमान रहेंगे।

ऐसा कम ही होता है जब अधिकांश ग्रह अपनी उच्चावस्था में हों। इस दिन जन्म लेने वाले शिशुओं का जीवन भी उच्चकोटि का रहेगा। जिन लोगों की कुंडली में शनि, शुक्र, गुरु या राहु खराब हैं या जिनके जन्मांग में पूर्ण या आंशिक कालसर्प दोष हो, वे शिवरात्रि पर विशेष आराधना, पूजा, स्तुति, उपाय आदि करके शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। नवीन कार्य, व्यवसाय आरंभ करने के लिए भी इस बार का यह महापर्व विशेष मुहूर्त लेकर आया है। इस दिन 21 फरवरी को प्रातः 9ः13 बजे से 22 तारीख की सुबह 11 बजकर 19 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। अतः इसदिन आप रुके हुए कार्य बिना किसी अड़चन के पूरे कर सकते हैं।
शिवरात्रि का शुभ मुहू्र्त
21 तारीख को शाम को 5 बजकर 20 मिनट से महाशिवरात्रि के पर्व का मुहूर्त शुरू होकर अगले दिन यानी कि 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम सातबजकर 2 मिनट तक रहेगा।
रात्रि प्रहर की पूजा शाम को 6 बजकर 41 मिनट से रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगी। अगले दिन सुबह मंदिरों मेंभगवान शिव की विधि.विधान से पूजा की जाएगी।
21 फरवरी

निशिथ काल पूजा- 24:08 से 25:00

पारण का समय- 06:57 से 15:23 (22 फरवरी)

चतुर्दशी तिथि आरंभ- 17:20 (21 फरवरी)

चतुर्दशी तिथि समाप्त- 19:02 (22 फरवरी)

ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि केतौर पर मनाया जाता है।

ऐसा कम ही होता है जब अधिकांश ग्रह अपनी उच्चावस्था में हों। इस दिन जन्म लेने वाले शिशुओं का जीवन भी उच्चकोटि का रहेगा। जिन लोगों की कुंडली में शनि, शुक्र, गुरु या राहु खराब हैं या जिनके जन्मांग में पूर्ण या आंशिक कालसर्प दोष हो, वे शिवरात्रि पर विशेष आराधना, पूजा, स्तुति, उपाय आदि करके शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। नवीन कार्य, व्यवसाय आरंभ करने के लिए भी इस बार का यह महापर्व विशेष मुहूर्त लेकर आया है। इस दिन 21 फरवरी को प्रातः 9ः13 बजे से 22 तारीख की सुबह 11 बजकर 19 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। अतः इसदिन आप रुके हुए कार्य बिना किसी अड़चन के पूरे कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रिके समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु.परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है .. अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता हैए जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा.शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रख के रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित ब्राहम्णों तथा शारीरिक रुप से अस्मर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।
इस दिन किए गए अनुष्ठानों , पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है जब ऋद्धि- सिद्धि पा्रप्त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था।
भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर हो नहीं पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों ही समान महत्व रखते हैं। शिव रात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है जो देश के हर कोने में मनाया जाता है।
यह पर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती के मिलन का महापर्व कहलाता है। इस व्रत से साधकों को इच्छित फल,धन, वैभव, सौभाग्य, सुख समृद्धि, आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति होती है।

मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रुप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोश के समय शिव तांडव करते हुए ब्रहाण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसी लिए, इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रुप में भी मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
स्कंद पुराण के अनुसार - चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।
व्रत की परंपरा
प्रातः काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर ,कलश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें । कलश को जल से भर कर रोली, मौली , अक्षत, पान सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध,दही, घी, शहद, कमलगटटा्,, धतूरा, विल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें । रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।
विशेषः चेतावनी
बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। बेल पत्र के तीनों पत्ते पूरे हों ,टूटे न हों । इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुष्प माना गया है। अन्य फूलों मे कनेर,आक, धतूरा, अपराजिता,,चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जा सकते है। जो पुष्प वर्जित हैं वे हैं- कदंब,केवड़ा,केतकी। फूल ताजे हों बासी नहीं ।
इस दिन काले वस्त्र न पहनें। इसमें तिल का तेल प्रयोग न करें। पूजा में अक्षत ही चढाएं। टूटे चावल न चढ़ाएं।

भगवान शिव को सफेद फूल बहुत पसंद होता है, लेकिन केतकी का फूल सफेद होने के बावजूद भोलेनाथ की पूजा में नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते समय शंख से जल अर्पित नहीं करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है। शिव की पूजा में तिल नहीं चढ़ाया जाता है। तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता हैए इसलिए भगवान विष्णु को तिल अर्पित किया जाता है लेकिन शिव जी को नहीं चढ़ता है।

भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी टूटे हुए चावल नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। शिव प्रतिमा पर नारियल चढ़ा सकते हैंए लेकिन नारियल का पानी नहीं। हल्दी और कुमकुम उत्पत्ति के प्रतीक हैंए इसलिए पूजन में इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। बिल्व पत्र के तीनों पत्ते पूरे होने चाहिएंए खंडित पत्र कभी न चढ़ाएं। चावल सफेद रंग के साबुत होने चाहिएंए टूटे हुए चावलों का पूजा में निषेध है। फूल बासी एवं मुरझाए हुए न हों।
विभिन्न सामग्री से बने शिवलिंग का अलग महत्व
फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू- संपत्ति प्राप्त होती है। अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है। गुड़ व अन्न मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृषि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं। चांदी से निर्मित शिवलिंग धन- धान्य बढ़ाता है। स्फटिक के वाले से अभीष्ट फल प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरुप बनाने वाला, समसत पापों का नाश करने वाला माना गया है।
शिवरात्रि पर करें कालसर्प या राहू योग का निवारण
चांदीे के नाग-नागिन का जोड़ा , हलवा,सरसों का तेल, काला सफेद कंबल शिवलिंग पर अर्पित करें । महामृत्युंज्य मंत्र की कम से कम ,एक माला -.108 मंत्र अवश्य पढ़ें।
मुख्य मंत्र
ऽ ओम् नमः शिवाय
ऽ ओम् नमो वासुदेवाय नम
ऽ ओम् राहुवे नमः
ऽ महामृत्युंज्य मंत्र- ओम् त्रयंम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं!
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!
ऽ शिवरात्रि पर अन्य मंत्र आप विभिन्न समस्याओं के लिए कर सकते हैं
आय वृद्धि : शं हृीं शं !!
विवाहः ओम् ऐं हृी शिव गौरी मव हृीं ऐं ओम् !
शत्रुः ओम् मं शिव स्वरुपाय फट् !
रोगः ओम् ह्ौं सदा शिवाय रोग मुक्ताय ह्ौं फट् !
साढ़े सातीः हृीं ओम् नमः शिवाय हृीं !
मुकदमाः ओम् क्रीं नमः शिवाय क्रीं !
परीक्षाः ओम् ऐं गे ऐं ओम् !
बिगड़ी संतानः ओम् गं ऐं ओम् नमः शिवाय ओम् !
विदेश यात्राः ओम् अनंग वल्लभाये विदेश गमनाय कार्यसिद्धयर्थे नमः!
सुख सम्पदाः ओम् हृौं शिवाय शिवपराय फट्!
शत्रु विजयः ओम् जूं सः पालय पालय सः जूं ओम्!
रोजगार प्राप्ति: ओम् शं हृीं शं हृीं शं हृीं शं हृीं ओम्!
प्रेम प्राप्तिः ओम् हृीं ग्लौं अमुकं सम्मोहय सम्मोहय फट्!

 
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