ज्योतिष के अनुसार 11 अगस्त , मंगलवार को ही जन्माष्टमी मनाना रहेगा सार्थक, श्रेष्ठ एवं शास्त्र सम्मत
मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़,9815619620
भारत के दो युग पुरुषों श्री राम एवं श्री कृष्ण , जिन्हंे विश्व ने भगवान का दर्जा दिया, के जन्म क्रमशः नवमी के दिन अभिजित मुहूर्त , अष्टमी की मध्य रात्रि इसी मुहूर्त काल में हुए हैं। दोनों आदिकाल से विश्व का मार्गदर्शन कर रहे हैं। यही कारण था कि 5 अगस्त 2020, को राम मंदिर का शिलान्यास करते हुए, दोपहर 12 बज कर 15 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट का यही अभिजित समय चुना गया। यह समय ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण एवं दीर्घकालिक कार्यों के लिए शुभ माना गया है। भगवान राम, भगवान कृष्ण और अब राम जन्मभूमि का पूजन इस मुहूर्त को साकार करके दिखा भी रहा है
लगभग हर वर्ष जन्माष्टमी के व्रत तथा सरकारी अवकाश में असमंजस की स्थिति बनी रहती है। इसके कई कारण एवं ज्योतिषीय नियम हैं जिन्हें हम यहां सपष्ट कर रहे हैं और आप अपनी सुविधा एवं आस्थानुसार इस पर्व को उल्लास से मना सकते हैं। वास्तव में कृष्णोत्सव एक दिन का नहीं अपितु 3 दिवसीय पर्व है जो 11 अगस्त से लेकर 13 अगस्त तक इस वर्ष मनाया जाएगा।
क्या कहते है पंचांग ?
11 अगस्त ,मंगलवार की प्रातः, 09 बजकर 07 मिनट के बाद, अर्द्धरात्रि - व्यापिनी अष्अमी , भरणी नक्षत्र कालीन , श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत , संकल्प, जन्मानुष्ठान का महातम्य होगा। स्मार्त अर्थात गृहस्थ्ी लोग इसी दिन व्रत का आरंभ करके , अगले दिन 12 अगस्त बुधवार को व्रत का पारण एवं जन्मोत्सव मनाएंगे। यही श्रेष्ठ, उत्तम एवं शास्त्र सम्मत रहेगा।
जबकि वैष्णव अर्थात साधू - सन्यासी, 12 अगस्त , बुधवार को उदयकालिक अष्टमी जो प्रातः 11 बजकर 17 मिनट तक रहेगी, तदुपरांत अर्द्धरात्रि - व्यापिनी नवमी तिथि , कृतिका नक्षत्र , बृष राश्स्थि चंद्रमा में व्रत व अन्य अनुष्ठान तथा जन्मोत्सव मनाएंगे। वास्तव में व्रत और जन्मोत्सव अलग अलग है। आप वर्तमान समय में स्थिति, स्ािान तथा समयानुसार पर्व की भावना को ध्यान में रखते हुए त्योहार मना सकते हैं।
जन्माष्टमी 2020
11 अगस्त
निशिथ पूजा– 00:04 से 00:48
पारण– 11:15 (12 अगस्त) के बाद
रोहिणी समाप्त- रोहिणी नक्षत्र रहित जन्माष्टमी
अष्टमी तिथि आरंभ – 09:06 (11 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 11:15 (12 अगस्त)
इस बार 11 अगस्त , मंगलवार को स्मार्त अर्थात गृहस्थी लोग जन्माष्टमी मनाएंगे । इस लिए, इसी समय, भगवान के निमित्त व्रत, बालरुप पूजा, झूला झुलाना, चंद्र का अर्घ्य, दान, जागरण, कीर्तन आदि का विधान होगा।
अगले दिन 12अगस्त , बुधवार को ,वैष्णव अर्थात सन्यासी आदि यह जन्मोत्सव इसी दिन मनाएंगे । परंपरानुसार एवं स्थानीय परिस्थितिवश मथुरा व गोकुल में हर बार की तरह भगवान कृष्ण के जन्म पर नन्दोत्स्व अगले दिन मनाया जा रहा है। भारत के कई नगरों में मथुरा की परंपरा के अनुसार चला जाता है परंतु शुद्ध ज्योतिष के आधार पर ही व्रत एवं महोत्सव मनाने का अपना ही महत्व एवं सार्थकता रहती है।
क्या है स्मार्त तथा वैष्णव ? क्यों रहता है दो दिनों का संशय ?
वेद, श्रुति-स्मृति, आदि ग्रंथों को मानने वाले धर्मपरायण लोग स्मार्त कहलाते हैं। प्रायः सभी गृहस्थी स्मार्त कहलाते हैं। जबकि वे लोग जिन्होंने किसी प्रतिष्ठित वैष्णव संप्रदाय के गुरु से दीक्षा ग्रहण की हो, दीक्षित हों, कण्ठमाला धारण की हो, किसी प्रकार का तिलक लगाते हों, ऐसे भक्तजन वैष्णव कहलाते हैं।
व्रत कब और कैसे रखा जाए?
शास्त्रकारों ने व्रत -पूजन, जपादि हेतु अर्द्धरात्रि में रहने वाली तिथि को ही मान्यता दी। विशेषकर स्मार्त लोग अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी को यह व्रत करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल,चंडीगढ़ आदि में में स्मार्त धर्मावलम्बी अर्थात गृहस्थ लोग गत हजारों सालों से इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए सप्तमी युक्ता अर्द्धरात्रिकालीन वाली अष्टमी को व्रत, पूजा आदि करते आ रहे हैं। जबकि मथुरा, वृंदावन सहित उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में उदयकालीन अष्टमी के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की परंपरा को आधार मानकर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के दिन ही केन्द्रीय सरकार अवकाश की घोषणा करती है। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युता जन्माष्टमी व्रत हेतु ग्रहण करते हैं।
सुबह स्नान के बाद ,व्रतानुष्ठान करके ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप करें । पूरे दिन व्रत रखें । फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के समय ठीक बारह बजे, लगभग अभिजित मुहूर्त में भगवान की आरती करें। प्रतीक स्वरुप खीरा फोड़ कर , शंख ध्वनि से जन्मोत्सव मनाएं। चंद्रमा को अर्घ्य देकर नमस्कार करें । तत्पश्चात मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करें और बांटें। अगले दिन नवमी पर नन्दोत्सव मनाएं।
भगवान कृष्ण की आराधना के लिए आप यह मंत्र पढ़ सकते हैं-
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिशां पते!
नमस्ते रोहिणी कान्त अर्घ्य मे प्रतिगृह्यताम्!!
स्ंातान प्राप्ति के लिए -
इस की इच्छा रखने वाले दंपत्ति, संतान गोपाल मंत्र का जाप पति -पत्नी दोनों मिल कर करें, अवष्य लाभ होगा।
मंत्र है- देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते!
देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः!!
दूसरा मंत्र-
! क्लीं ग्लौं श्यामल अंगाय नमः !!
विवाह विलंब के लिए मंत्र है-
ओम् क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्ल्भाय स्वाहा।
इन मंत्रों की एक माला अर्थात 108 मंत्र कर सकते हैं।
मथुरा और द्वारिका में जन्माष्टमी
इस वर्ष मथुरा और द्वारिका में जन्माष्टमी 12 अगस्त के दिन ही मनाई जाएगी। वहीं बनारस, उज्जैन और जगन्नाथ पुरी में कृष्ण जन्मोत्सव एक दिन पहले 11 अगस्त को ही मनाई जाएगी।
जन्माष्टमी व्रत
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सभी आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं, हालांकि जिनको स्वास्थ्य समस्याएं हैं, वे न करें तो अच्छा है। व्रत न रखकर वे केवल भगवान की आराधना करें।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजन के साथ-साथ व्रत रखना भी बहुत फलदायी माना जाता है। कहा जाता है, कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने से बहुत लाभ मिलता है। कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है। इस व्रत का विधि-विधान से पालन करने से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है।
जन्माष्टमी का व्रत रात बारह बजे तक किया जाता है। इस व्रत को करने वाले रात बारह बजे तक कृष्ण जन्म का इन्तजार करते हैं। उसके पश्चात् पूजा आरती होती है और फिर प्रसाद मिलता है। प्रसाद के रूप में धनिया और माखन मिश्री दिया जाता है। क्यूंकि ये दोनों ही वस्तुएं श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। उसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण करके व्रत पारण किया जा सकता है। हालाँकि सभी के यहाँ परम्पराएं अलग-अलग होती है। कोई प्रातःकाल सूर्योदय के बाद व्रत पारण करते हैं तो कोई रात में प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं। आप अपने परिवार की परम्परा के अनुसार ही व्रत पारण करें।
जन्माष्टमी के दिन साधक को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। फलाहार किया जा सकता है। व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर को साफ सुथरा करें और जन्माष्टमी की तैयारी शुरू करें। रोज की तरह पूजा करने के बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखे और इसे अच्छे से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं।
दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करें। मध्य रात्रि को एक बार फिर पूजा की तैयारी शुरू करें। रात को 12 बजे भगवान के जन्म के बाद भगवान की पूजा करें और भजन करें। गंगा जल से कृष्ण को स्नान करायें और उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाए और फिर भजन, गीत-संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।
जन्माष्टमी हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। जिसे बाल गोपाल श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पूरी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है।
कृष्ण जन्म कब हुआ था?
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के मध्यरात्रि के रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जी का जन्म कंस के कारागार में बंद वासुदेव-देवकी की आठवीं संतान के रूप में हुआ था।
मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, मो - 98156 19620, 458.सैक्टर 10, पंचकूला।