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एस्ट्रोलॉजी

क्यों करें श्राद्ध ? इस बार श्राद्ध- 2 सितंबर से 17 सितंबर तक

August 26, 2020 08:34 AM

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्,9815619620

  इस बार चतुर्मास पूरे पांच मास का हो गया। लीप वर्ष के कारण अधिक मास दो मास का हो गया। जहां श्राद्ध समाप्ति के अगले दिन नवरात्र आरंभ हो जाते थे , इस बार लगभग एक मास के अंतराल के बाद होंगे। हालांकि यह 160 साल बाद ऐसा हो रहा है यानी 2020 में सब कुछ बदला बदला।

इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे। इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। वहीं नवरात्रि का पावन पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त होगा। वहीं चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे।

पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। यहां श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रगट करने से है। श्राद्ध पक्ष अपने पूर्वजों को जो इस धरती पर नहीं है एक विशेष समय में 15 दिनों की अवधि तक सम्मान दिया जाता है, इस अवधि को पितृ पक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष कहते हैं। हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में होता है तो, उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान को सर्वोत्तम माना गया है।

क्यों करें श्राद्ध ?

अक्सर आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती हैं प्रशन किया जाता है कि क्या श्राद्धों की अवधि मेंब्राहमणों को खिलाया गया भोजन पित्तरों को मिल जाता है?क्या यह हवाला सिस्टम है कि पृथ्वी लोक में दिया और परलोक में मिल गया ?फिर जीते जी हम माता पिता को नहीं पूछते .........मरणेापरांत पूजते हैं! ऐसे कई प्रशन हैं जिनके उत्तर तर्क से देने कठिन होते हैं फिर भी उनकाऔचित्य अवश्य होता है।

आप अपने सुपुत्र से कभी पूछें कि उसके दादा - दादी जी या नाना -नानी जी का क्या नाम है आज के युग में 90 प्रतिशत बच्चे या तो सिरखुजलाने लग जाते हैं या ऐं.... ऐं ...... करने लग जाते हैं।परदादा का नाम तो रहने ही दें ।

यदि आप चाहते हैं कि आपका नाम आपका पोता भी जाने तो आप श्राद्ध के महत्व को समझें।सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिकएवं सुंदर परंपरा का निर्वाह अवश्य करें हम पश्चिमी सभ्यता की नकल कर के मदर डे,फादर डे, सिस्टर डे,वूमन डे,वेलेंटाइन डे आदि पर परग्रीटिंग कार्ड या गीफट देके डे मना ल्ेाते हैं । उसके पीछे निहित भावना या उदे्श्य को अनदेखा कर देते हैं।परंतु श्राद्धकर्म का एक समुचितउद्ेश्य है जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है।श्राद्ध, आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं।जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकीकुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये 15 दिन होते हैइस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों केबारे बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वाह करें।

ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है, इसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है जिसमेंसामूहिक भोज का आयोजन होता है।इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ने का रिवाज है। बौद्ध धर्म में भी ऐसे कई प्रावधानहै।तिब्बत में इसे तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिमी समाज में मोमबत्ती प्रज्जवलित करने की प्रथा है।

दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति,मुक्ति एवं श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विनमास का कृष्ण पक्ष श्राद्ध के लिए तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिए इसे ‘कनागत’ भी कहतेहैं।जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं। यह एक श्रद्धापर्व है....भावना प्रघान पक्ष है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता। जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनोंआकाश की ओर मुख करके ,दोनों हाथों द्वारा आवाहन करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं जिनका उद्ेश्य परिवारका संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है।

दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे ं चित्रदेवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं। पर वे ईष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं। ऐसा अक्सर फिल्म उद्योेग या राजनीति में होता है जिसे किसी भी प्रकार शास्त्रसम्मतनहीं माना जा सकता।

हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं चलती रहें।श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भागहै जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

धार्मिक मान्यताएं

हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना कियाजाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती ।

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष केअनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विनकृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैंताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाताहै। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धनहानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान.हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसेलोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

श्राद्ध में तिलए चावल जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्यब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पितकरना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्रए भाईए पौत्रए प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

श्राद्ध में कौओं का महत्त्व

कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध

मान्यता है कि यदि ज्योतिषीय दृष्टि से यदि कुंडली में पितृ दोष है तो निम्न परिणाम देखने को मिलते हैं

1.संतान न होना 2.धन हानि 3.गृह क्लेश 4.दरिद्रता 5.मुकदमे 6.कन्या का विवाह न होना 7.घर में हर समय बीमारी 8.नुक्सान पर नुक्सान9.धोखे 10.दुर्घटनाएं11.शुभ कार्यों में विघ्न 

कैसे करें श्राद्ध ?

इसे ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है। आप स्वयं भी कर सकते हैं।

ये सामग्री ले लें -.सर्प-सर्पिनी का जोड़ा,चावल,काले तिल,सफेद वस्त्र,11 सुपारी,दूध,जल, तथा माला.।.पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करकेबैठें.सफेद कपड़े पर सामग्री रखें.108 बार माला से जाप करें या सुख शांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहितपित्तरों से प्रार्थना करें।.जल में तिल डाल के 7 बार अंजलि दें.।.शेष सामग्री को पोटली में बांध के प्रवाहित कर दें. ।हलुवा,खीर,भोजन,ब्राहमण,निर्धन,गाय, कुत्ते,पक्षी को दें। 

श्राद्ध के 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए । 

1.तर्पण-दूध,तिल,कुशा,पुष्प,सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें.

2. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान,करके भूखों को भोजन भेाजन दें

3. वस्त्रदानःनिर्धनों को वस्त्र दें.

4.दक्षिणाः भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता।

5.पूर्वजों के नाम पर , कोई भी सामाजिक कृत्य जैसे -शिक्षा दान,रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण ,चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करनाचाहिए।

किस तिथि को करें श्राद्ध ?

जिस तिथि को जिसका निधन हुआ हो उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। यदि किसी की मृत्यु प्रतिपदा को हुई है तो उसी तिथि के दिन श्रद्धा से यादकिया जाना चाहिए । यदि देहावसान की डेट नहीं मालूम तो फिर भी कुछ सरल नियम बनाए गए हैं। पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का नवमीपर किया जाना चाहिए। जिनकी मृत्यु दुर्घटना, आत्मघात या अचानक हुई हो , उनका चतुदर्शी का दिन नियत है। साधु- सन्यासियों का श्राद्धद्वादशी पर होगा। जिनके बारे कुछ मालूम नहीं , उनका श्राद्ध अंतिम दिन अमावस पर किया जाता है जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।

श्राद्ध सारिणी

2 सितंबर- पितृ पक्ष श्राद्ध आरंभ- पूर्णिमा-बुधवार

3 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध

4 सितंबर- द्वितीया का श्राद्ध

5 सितंबर- तृतीया का श्राद्ध

6 सितंबर- चतुर्थी का श्राद्ध

7 सितंबर- पंचमी का श्राद्ध

8 सितंबर-षष्ठी का श्राद्ध

9 सितंबर- सप्तमी का श्राद्ध

10 सितंबर- अष्टमी का श्राद्ध

11 सितंबर- नवमी का श्राद्ध

12 सितंबर-दशमी का श्राद्ध

13 सितंबर-एकादशी का श्राद्ध

14 सितंबर-द्वादशी का श्राद्ध

15 सितंबर-त्रयोदशी का श्राद्ध

16 सितंबर-चतुर्दशी का श्राद्ध

17 सितंबर-सर्वपितृ श्राद्ध

मदन गुप्ता सपाटू, 458,सैक्टर 10, पंचकूला- 134109, मोः 98156 19620, 0172-2577458

 
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