बुधवार को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:29 से 18:48, चंद्रोदय- 20:16 च्ंाद्रोदय का समय- रात्रि 8 बजकर 15 मिनट पंचांगानुसार परंतु वास्तव में कई नगरों में यह पौने 9 से 9 बजे केे मध्य दिखेगा। चतुर्थी तिथि आरंभ- 03:24 (4 नवंबर)चतुर्थी तिथि समाप्त- 05:14 (5 नवंबर)
मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य व वास्तुविद्, 098156-19620
चंडीगढ़.: बुधवार को करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:29 से 18:48, चंद्रोदय- 20:16 च्ंाद्रोदय का समय- रात्रि 8 बजकर 15 मिनट पंचांगानुसार परंतु वास्तव में कई नगरों में यह पौने 9 से 9 बजे केे मध्य दिखेगा। चतुर्थी तिथि आरंभ- 03:24 (4 नवंबर)चतुर्थी तिथि समाप्त- 05:14 (5 नवंबर)
कार्तिक कृष्ण पक्ष में करक चतुर्थी अर्थात करवा चौथ का लोकप्रिय व्रत सुहागिन और अविवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना एवं दीर्घायु के लिए निर्जल रखती हैं। इस दिन न केवल चंद्र देवता की पूजा होती है अपितु शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। इस दिन विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए गौरी पूजन का भी विशेश महात्म्य है।
विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। विवाहित महिलाएँ भगवान शिव माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ.साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।
विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। विवाहित महिलाएँ भगवान शिव माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ.साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।
करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण जो कि अर्घ कहलाता है किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है।
कैसे करें पारंपरिक व्रत?
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके पति,पुत्र,पौत्र,पत्नी तथा सुख सौभाग्य की कामना की इच्छा का संकल्प लेकर निर्जल व्रत रखें। शिव ,पार्वती, गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र का पूजन करें। बाजार में मिलने वाला करवा चौथ का चित्र या कैलेंडर पूजा स्थान पर लगा लें। चंद्रोदय पर अर्घ्य दें। पूजा के बाद तांबे या मिटट्ी के करवे में चावल, उड़द की दाल भरें । सुहाग की सामग्री,- कंघी,सिंदूर ,चूड़ियां,रिबन, रुपये आदि रखकर दान करें। सास के चरण छूकर आर्शीवाद लें और फल, फूल, मेवा, बायन, मिश्ठान,बायना, सुहाग सामग्री,14पूरियां ,खीर आदि उन्हें भेंट करें। विवाह के प्रथम वर्ष तो यह परंपरा सास के लिए अवश्य निभाई जाती है। इससे सास- बहू के रिश्ते और मजबूत होते हैं।