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मनोरंजन

हास्य व्यंग्य: 2021 की पहली सुबह

January 02, 2021 10:42 AM

- मदन गुप्ता सपाटू

    बड़ी सुहानी सुबह थी। मौसम विभाग के आरेंज अलर्ट के विपरीत आसमान साफ था। हम हर रोज की तरह टी शर्ट में लेक की तरफ मार्निंग वॉक के लिए निकल पड़े। ट्रैफिक सिग्नलों पर हरी लाला बत्तियों कर बजाय आरेंज लाइटें ही जल रही थी। लोग बड़े अनुशासन से गाड़ियां चले रहे थे। ट्रैफिक पुलिस नहीं थी । पार्किंग वाला बोर्ड पर लिखी पार्किंग फीस ही वसूल रहा था औेर कमाल की बात पर्ची भी काट रहा था। लोग मास्क लगाए, दो गज की दूरी बनाए सैर कर रहे थे।

घर आकर मोबाइल खोला। उसमें नए साल की बधाई का एक भी संदेश नहीं था जबकि पूरा साल उसमें ज्ञान , फल, फूल, फुलवारियां, बुके केक, केलेंडर, आज मंगलवार है या इतवार है, भूल कर भी आज ये 7 काम न करना, फ्री आफर, ये संदेश 100 जगह फारवर्ड करेंगे तो गुरु जी सपने में दर्शन देंगे.... उनसे कुछ भी मांग लेना। हमने सोचा मोबाइल की चार्जिंग खत्म हो गई है पर यह बावला 100 परसेंट फुल था। हमने बार बार झटका, लगातार झटका परंतु उसमें नववर्ष का एक भी संदेश नहीं टपका। फिर हमें लगा यह टावर उखाड़ अभियान का अंजाम न हो। वह भी नहीं था कयोंकि हम अपने स्वदेशी बी एस एन एल के कायल थे जो भले ही कभी कभी चलता हो पर ऐसा धोखा नहीं देता।

अपना भ्रम दूर करने के लिए टी वी खोला। एंकर आज स्कर्ट पहन कर स्टूडियो में इधर से उधर दौड़ दौड़ कर खबरें नहीं पढ़ रही थीं। आज सभी एंकर दूरदर्शन की सलमा सुल्तान जैसी साड़ी पहने, बालों में गुलाब टांके, माथे पर बिन्दी टिकाए, बड़ी शालीनता से समाचार पढ़ रही थी। कोई न्यूज रीडर उछल उछल कर या चिल्ला चिलला कर टी वी देखने वालों से पूछता है हमारा चैनल नहीं कह रहा था, उल्टे शम्मी नारंग बना हुआ था ओेर सलीके से समाचार सुना रहा था। दर्शको का डरा नहीं रहा था।

हम जानना चाहते थे कि किसान आंदोलन औेर सरकार के बीच क्या चल रहा है? लेकिन चैनल बदलते बदलते थक गए, रिमोट झटकते झटकते हाथ थक गए, न कहीं किसान नजर आया न ट््रैक्टर, न लंगर, न टैंट न झंडे न डंडे। दिल्ली के सारे बार्डर खाली। सारी सड़कें चकाचक और यातायात एकदम टका टक। न प्रधानमंत्री कहीं उद्घाटन करते दिखे न रेल मंत्री। कोई छुटभैयया नेता तक दूर दूर नहीं नजर आया।

उद्घोषिका एनांउस कर रही थी कि कोरोना भारत से लगभग गायब हो गया है, मास्क नहीं है जरुरी, जीरो हो गई है दूरी। हमें अपनी आखों कानों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि न तो कोई किसी अपहरण, हत्या, दुर्घटना, सामूहिक शोषण, की खबर दिखी न किसी विरोधी पार्टी का बयान आया।

हमारे कुछ बोलने से पहले ही बोले - सर! मुबारक हो ....आपकी कार सही सलामत, चारों टायरों ,स्टैपनी और चालू हालत में चलते स्टीरियो तथा पूरे पेट््रोल समेत बरामद कर ली है। इसी खुशी में लडडू खाओ। कुछ रुपये हमारे हाथ में सौंपते हुए बोले- ये कार के डाक्युमेंट के साथ मिले। अपनी पतली होती जा रही हालत होने के बावजूद हमने हिम्मत बटोर के कहा- हजूर ! न्यू इयर पर गीफट लाने, लडडू खिलाने तथा सुविधा शुल्क पेश करने की डयूटी तो परंपरा अनुसार हमारी बनती है। पर वे मनुहार करने लगे और हमें उनके सदव्यवहार के आगे झुकना ही पड़ा।

पैनल डिस्कशन तो थी परंतु उसमें बैठे पैनलिस्ट दाढ़ी वाले, टोपी वाले, भगवा पहने, एक दूसरे पर न चिल्ला रहे थे न गर्दन पकड़ने ही दौड़ रहे थे। बालीवुड से किसी ड्र्ग की खबर नहीं थी। किसी खाने पीने या दैनिक उपभोग पेट्र्ोल आदि की कीमतें बढ़ाने की घोषणा नदारद थी। न कोई बंद था न रेल रोको कार्यक्रम।

किसी नेता या हीरोईन ने टवीट् तक नहीं किया। सोशल मीडिया बड़ा अनसोशल सा दिख रहा था। किसी चैनल ने ये भी नहीं कहा कि यह खबर हम सबसे पहले दे रहें हैं । न कोई ब्रेकिंग न्यूज ही कह रहा था। न योगा वाल,े न मसाले वाले न सरकारी बाबा नजर आ रहे थे।

हम न ही मन सोचने लगे ये रामराज्य रातों रात कहां से टपक पड़ा ? हमारा विश्वास इन बिकाउ, पकाउ चैनलों से तो पहले ही उठ चुका था।

अखबार आ चुके थे। पहला मौका था जब उसमें से 10- 12 पैम्फलेट हमारी गोद में नहीं टपके। इसमें अच्छे अच्छे समाचार ज्यादा नजर आ रहे थे विज्ञापन नाम के ही थे। दिल दहलाने वाली खबरें कम थी सहलाने वाली ज्यादा। नेताओं अभिनेताओं की बजाय आम लोगों के अच्छे कामों की चर्चाएं थी। कोरोना योद्धाओं की मनघड़ंत और फर्जी सर्टीफिकेट या स्मृति चिन्ह पकड़े पेड खबरें या फोटो नहीं थी।

बड़ा अजीब अजीब सा लग रहा था। लगा या तो आपातकाल घोषित हो गया है या देश रातों रात 2020 को भूल गया है। न किसी आतंकवादी के पकड़े जाने का समाचार था न दुश्मन की तरफ से किसी गोलीबारी की घटना। लाल चौक भी शांत था। अजीब अजीब सी खबरें छपी थी । हमने सोचा टी वी अखबार और मोबाइल की दुनिया से बाहर निकल कर ग्राउंड रिपोर्ट पर सचाई का जायजा लिया जाए!

अपने पड़ोसी बाबू रामलाल का हाल पूछा। उनके फेस पर वैैसे भाव नहीं दिखे..... आह ...सबेरे सबेरे कौन टपक पड़ा? आज उन्होंने न तो अपना ब्लड प्रैशर का रोना रोया न बिजली के बिल ज्यादा आ जाने का। बाजार से ब्रैड लाने निकले। देखा लोकल बसें बिना धुआं छोड़े, समय के साथ चलने के अलावा निर्धारित स्टाप पर ही रुक रही थी और सवारियों के पूरी तरह चढ़ने के बाद ही आगे बढ़ती थी। सिग्नल बंद थे। ट्र्ैफिक पुलिस चालान काटने की बजाय यातायात को बड़ी मुस्तैदी से नियंत्रित कर रही थी। बिगड़ैल बापों के बिगड़ी औलादें, पी पी पौं पौं नहीं कर रही थी।

कुछ देर में सोचा मुहूर्त शुभ है, टी वी पर एक पंडित जी कह भी रहे थे कि 2021 में सब शुभ शुभ ही होगा। लगे हाथ सरकारी , बैंक , पंेशन , थाने वाने, खाने खिलाने आदि के एक साल से पेंडिंग काम निपटा कर बहती गंगा में हाथ धो लिए जाएं। पंेशन बाबू ने इस बार यह नहीं पूछा कि आप 2020 में जिंदा थे इसका लाईफ सर्टीफिकेट हमारे रिकार्ड में नहीं है। उल्टा उसने हमारी दीर्घायु की कामना करते हुए नए साल की बधाई दी। हमने खुद को शक की निगाह से देखा। यकीन हो गया हम, हम ही थे और वह दफतर , दफतर ही था।

बैंक में ए टी एम भी चल रहा था और सर्वर डाउन नहीें था। पास बुक प्रिंटर भी चल रहा था। ए टी एम से सड़े नोटों की बजाय बिल्कुल नए नए करारे नोट टपक रहे थे। काउंटर पर महिलाएं, मोबाइल की बजाय ग्राहकों और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान दे रही थी। बैंक का मोटो- ’सर्विस विद् ए स्माईल’ पहली बार साकार होते दिख रहा था।

सोचा..... लगे हाथ, 2019 में चोरी हो गई कार का थाने से जायज़ा लेते चलें । पुलिस स्टेशन को फाइव स्टार होटल की तरह सजाया गया था। अंदर घुसते ही गार्ड ने सैल्यूट मारा। हमें लगा नए साल पर उसे हमारे वी आई पी होने की गलत फहमी हो गई है। आगे गए तो महिला कांस्टेबल ने हमारा मुस्कुरा के अभिवादन किया। बाद में पता चला कि अब नए साल से हर पुलिस थाने में जनता का ऐसे ही स्वागत होगा। सब इंस्पैक्टर ने भी तपाक से हाथ मिलाया और हाथों मंे एक लडडू का डिब्बा थमाया ।

हमारे कुछ बोलने से पहले ही बोले - सर! मुबारक हो ....आपकी कार सही सलामत, चारों टायरों ,स्टैपनी और चालू हालत में चलते स्टीरियो तथा पूरे पेट््रोल समेत बरामद कर ली है। इसी खुशी में लडडू खाओ। कुछ रुपये हमारे हाथ में सौंपते हुए बोले- ये कार के डाक्युमेंट के साथ मिले। अपनी पतली होती जा रही हालत होने के बावजूद हमने हिम्मत बटोर के कहा- हजूर ! न्यू इयर पर गीफट लाने, लडडू खिलाने तथा सुविधा शुल्क पेश करने की डयूटी तो परंपरा अनुसार हमारी बनती है। पर वे मनुहार करने लगे और हमें उनके सदव्यवहार के आगे झुकना ही पड़ा।

घर आए तो पाया कोरियर से आए पार्सल में सामान पूरा निकला। नए मोबाइल की बजाय साबुन की टिक्की नहीं निकली। टी शर्ट की जगह पीले डस्टर नहीं निकले। बिजली जरा सेी भी नहीं गई। पानी पूरा आ रहा था। कल बुक कराई गैस आज आ गई। अस्पतालों में डाक्टर उसी समय आ गए थे जो उनके कमरे के बाहर लिखा था। दूकानदार सामान पर छपी प्रिंटिड प्राईस ही ले रहे थे। शहद में चीन की चाशनी की बजाय फूलों का शहद ही निकला। सब देख कर बड़ा अजीब अजीब सा लग रहा था। कुछ समझ नहीं आ रहा था । या तो 31 दिसंबर का खुमार नहीं उतर रहा था या हमें कुछ ओपरा हो गया था । मेरे भारत महान को चीन की नजर लग गई या बिडेन की , समझ से परे परे लग रहा था । कहीं रातों रात आपातकाल तो घोषित नहीं हो गया? देश में सब उल्टा पुल्टा क्या हो रहा है? कल तक तो सब ठीक था। हम खुद से सवाल पर सवाल किए जा रहे थे।

तभी हमारी अपनी पर्मानेंट एकमात्र पत्नी ने झकझोरा- नए साल पर सोते ही रहोगे तो सारा साल सोते ही रह जाओगे। उठो हैप्पी न्यू इयर। अब सेम टू यू भी ....मैं ही कहूं ? नए साल की आफिस में छुटट्ी नहीं है। न ही इस बार पहली जनवरी को इतवार है। चलो बाजार से दूध ब्रेड लेके आओ। जल्दी से पप्पू को नहलाओ, ब्रेकफास्ट बनाओ, आप भी खाओ मुझे भी खिलाओ। वापसी में सामान लेते आना मोबाइल पर जो मैसेज दूंगी , वही लेके आना। अनाप शनाप न उठा लाना। लोकल बस से जाना । नए साल पर फिजूल खर्ची टोटली बंद। ये हैं नए साल के कुछ संकल्प। पढ़ लेना औेर पूरे साल पालन करना।
अब हमें समझ आया -नए साल पर बस सिर्फ केैलेंडर ही बदलता है बाकी पिछले साल जैसा ही चलता है।

जीवन टी वी के लंबे चल रहे धारावहिकों जैसा अनगिनत कड़ियों की तरह है जहां हर बार लगता है कि अगले एपीसोड में कुछ नया आएगा, पर कथा भी वही, आम आदमी का कथाानक भी वही, चरित्र और चरित्र चित्रण भी वही रहता है औेर जीवन में है तो बस क्रमशः और केवल क्रमशः......
- - मदन गुप्ता सपाटू, मो- 98156 19620, 458, सैक्टर 10, पंचकूला, हरियाणा

 
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