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मनोरंजन

...... बिल दा मामला है

May 29, 2021 04:17 PM

हास्य व्यंग्य

मदन गुप्ता सपाटू

इन दिनों देश में एक बहुत बड़ी बहस चल रही है- तेरी कमीज--- मेरी कमीज से ज्यादा सफेद कैसे ? कोविड के दौरान एलोपैथी से लोग खुदा को प्यारे हुए या आयुर्वेद के कारण ? यह एक यक्ष प्रशन बन गया है। विश्व में पहली शल्य चिकित्सा महर्षि सुश्रुत ने की या किसी अंग्रेज ने ? कांगड़ा नगर का नाम ही ' कान गढ़ ' इसलिए पड़ा कि युद्ध में सैनिकों के नाक कान कट जाने पर यहां ठीक ठाक जोड़ दिए जाते थे। तो प्लास्टिक सर्जरी भारत की देन है या पश्चिमी देशों की। हमारे यहां तो गणेश जी की गर्दन पर हाथी का सिर जोड़ दिया गया था। संजीवनी बूटी का उदाहरण विश्व प्रसिद्ध है और एक देश के प्रधानमंत्री ने वैक्सीन को भारत की संजीवनी बूटी तक कहा।

शुक्र है इस जंग में अभी कोई होम्योपैथी वाला नहीं कूदा वरना यदि यह कर्मयुद्ध कोरोना की तरह ही फैलता रहा तो इस फील्ड के कितने ही माहिर हैं जो तेल मालिश कर रहे हैं और चैनल का इशारा होते ही कूद पडंेगे। नेचुरोपैथी, योगा, युनानी, एक्यूप्रेशर ,एक्युपंक्चर, हीलिंग वीलिंग वाले बस किसी भी चैनल से बुलावे की फ़िराक में हैं।

एक जनाब जब कोरोनाग्रस्त होकर एक फाईव स्टार अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे तो उनके मित्रों, शुभचिंतकों, रिश्तेदारों ,सिफारिशियों ने डाक्टरों की नाक में दम कर रखा था कि उनका बेस्ट इलाज होना चाहिए। और उनके युअर्ज़ सिनसियरली ने उनका मोबाइल - गेट वेल सून ,विश यू स्पीडी रिकवरी... फूलों के गुलदस्तों से पूरा भर डाला। बस डिस्चार्ज वाले दिन जब वे खुशी खुशी डाक्युमेंट्स पर दस्तखत करने लगे तो 95 लाख 5 सौ 55 का बिल देखते ही दिल ऐसा बैठा कि गेट वैल सून की बजाय गो टू गॉड सून हो गया। सब कुछ स्पीडी स्पीडी हो गया।

हमारा देश ऐसा वैेसा नहीं है। हमारे बहुत से बाबे, डेरा स्वामी, स्वंयभू संत महात्मा अपने अपने समागमों में भक्तों को दूर से ही आशीर्वाद देकर या चरण छुआ कर ही केैंसर तो क्या, कोरोना तक को छू मंतर करने की ताकत रखते हैं। कुछ बेचारे अंदर बैठे छटपटा रहे हैं कि यदि आज हम बाहर होते तो कोरोना की क्या मजाल थी जो हमारे देश की ओर आंख उठा कर भी देख पाता। आज अगर बेल मिल जाए तो कोरोना को एक दिन में पेल के ठेल देंगे।

यही नहीं हमारे यहां हर तरह की चिकित्सा पद्धति चलती है। विलायती बाबाओं की भी ब्रांचें हैं जो मरीजों की बीमारियां ‘हाले लुइया’... ‘हाले लुइया’ चिल्ला चिल्ला कर और माथे पर उंगली रख कर लंगड़े़ को मिल्खा सिंह बना सकते हैं, अन्धों को रंगीन फिल्म दिखा सकते हैं, गूंगे सेे गाना गवा सकते हैं, दिल के मरीज को स्टेज पर स्ट्र्ेचर पर लाते हैं और वह दिल विल भूल भुला कर स्टेज पर ही डिस्को करने लग जाता है। इतनी शक्तियां तो विदेशी बाबाओं और उनके हिन्दुस्तानी चेलों में भी है जो अक्सर बाकायदा पेड न्यूज चेनलों पर अपने फन का मुजाहरा करते रहते हैं।

उनका ऐसा लाइव शो मैनें स्वयं अटेंड किया और पादरी के मेरे माथे पर उंगली लगाने से मैं गिरा नहीं जबकि अन्य गिरते पड़ते जा रहे थे। मेस्मेरिज्म का एक उसूल है कि यदि कोई व्यकित समर्पित नहीं होना चाहता और मजबूत इच्छा शक्ति है तो कोई भी उसे प्रभावित नहीं कर सकता।
आजकल जो डिबेट चल रही है वह सर्वथा निरर्थक है। अभी सरकारी आंकड़े आने बाकी हैं कि कितने ऐलोपैथी से शहीद हुए कितने खुद ही खुशी खुशी यह गाते हुए चल दिए.....‘.ए मेरे दिल कहीं और चल तेरी दुनियां से दिल भर गया।‘ सब डाक्टरों की गलती से अकाल चलाना कर गए हों यह जरुरी नहीं। यह तो अगले बजट सेशन में सरकार बताएगी और विपक्ष अपने आंकड़े देकर सरकार से इस्तीफा मांगेगा।

भई! हमारे मित्र प्यारे लाल तो उस वक्त प्रभु को प्यारे हो गए जब उनको किसी ने आकर खबर दी कि दीवाली बम्पर मे उनकी एक करोड़ की लाटरी निकली है।

ऐसे ही बाबू रामलाल जब पूरे डेढ़ साल अमरीका में खर्च कर स्वदेश पधारे तो घर का दरवाजा खोलते ही उन्हें बंद मीटर और बंद मकान का बिजली का बिल 10 लाख का और पानी का तीन लाख का नजर आया। बिल देखते ही बिना किसी डाक्टर की गलती के चुपचाप उपर निकल लिए।

इतना ही नहीं एक जनाब जब कोरोनाग्रस्त होकर एक फाईव स्टार अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे तो उनके मित्रों, शुभचिंतकों, रिश्तेदारों ,सिफारिशियों ने डाक्टरों की नाक में दम कर रखा था कि उनका बेस्ट इलाज होना चाहिए। और उनके युअर्ज़ सिनसियरली ने उनका मोबाइल - गेट वेल सून ,विश यू स्पीडी रिकवरी... फूलों के गुलदस्तों से पूरा भर डाला। बस डिस्चार्ज वाले दिन जब वे खुशी खुशी डाक्युमेंट्स पर दस्तखत करने लगे तो 95 लाख 5 सौ 55 का बिल देखते ही दिल ऐसा बैठा कि गेट वैल सून की बजाय गो टू गॉड सून हो गया। सब कुछ स्पीडी स्पीडी हो गया।

शुभचिंतक भी नौ दो ग्यारह हो गए। एक दूसरे के कान में कह रहा था- भाई साहब! जीता हाथी लाख का ....मरा सवा लाख का। मुहावरा भले ही प्राचीन काल का था परंतु घर वालों को साफ नजर आ रहा था कि अस्पताल के प्रोसीजर और एक दिन की और मेहमानवाजी से बिल सवा लाख से कम नहीं बनेगा।

बंदा जरुरी नहीं कि किसी बीमारी से ही जाए। कई बार इतनी खुशी मिली मुझको कि मन में न समाय भी हो जाता है। पंजाब की एक बेबे हमारे मित्र जसपाल भटटी का उल्टा पुल्टा कार्यक्रम देख कर इतनी उल्टी पुल्टी हुई कि बस हंस हंस के ही शहीद हो गई। आज का वक्त होता तो बुढ़िया के घरवाले भटटी साहब और चैनल वालों को अदालत में खींचते और पब्लिसिटी बटोरते।

अब हालत यह है कि बस उम्रे दराज मांग कर लाए थे चार दिन.....दो बॉडी बनाने में लग गए दो एंटी बॉडी में। बाकी औरों का हाल ये है कि सूत न कपास, जुलाहे लटठम लटठा।

- मदन गुप्ता सपाटू, मो- 98156 19620,458, सैक्टर 10, पंचकूला- हरियाणा

 
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