हास्य व्यंग्य
मदन गुप्ता सपाटू
हमारी सारी जवानी ब्लैक एंड व्हाइट में ही निकल गई। सभी रोमांटिक फिल्में श्वेत- श्याम में ही देख्नी पड़ी। एक आध फिल्मों में , एक आध गाने रंगीन भरे जाते थे। मुगले आज़म में शीश महल वाला गाना। जहां पंजाबी फिल्मों के पोस्टरों पर लिखा जाता था- मार कुटाई से भरपूर, वहीं हिन्दी फिल्मों के बैनरों पर भी लिखा होता था- एक रील रंगीन।
निर्माता बाकायदा बताते थे कि उनकी फिल्म गेवा कलर है या ईस्टमैन कलर, टैक्नीकलर है या डीलक्स कलर या वार्नर कलर या कोलम्बिया कलर। अपन की शादी की एल्बम भी अभी तक काली सफेद होने से गुजरे जमाने की फिल्मों की तरह याद दिलाती है। जब दुनिया रंगीन हुई तो अपन की उम्र संगीन हो गई!ब्लैक वाला फंगस तो हमने दिल से असेप्ट कर लिया जी! क्योंकि अपन के देश में ब्लैक का बोलबाला बचपन से देख रहे हैं। राशन, गैस, फोन हमने ब्लैक में खरीदे हैं। अब ऑक्सीजन, इंजैक्शन, दवाईयां, हस्पतालों के बेड....यहां तक कि दारु भी बाकायदा डंडे खाकर ,चिलचिलाती धूप में लाईन में लगकर ब्लैक में खरीदने की आदत सी पड़ गई है।
अब तो आधों की रंगीन दुनिया दो साल से ब्लैक एंड व्हाइट हुई पड़ी है। बस रंगीन नजर आ रही है तो फंगस। खाने पीने की चीजों या बहुत सी चीजों पर सफेद उल्ली दिख जाती है पर अब तो फंगस के बारे डाक्टर ही बता रहे हैं कि उसका कलर क्या है!
गिरगिट की तरह फंगस भी कई तरह के रंग रोज बदल रही है। फिल्मों की तरह पहले ब्लैक फंगस आया। फिर अकेला व्हाइट चमका। बस फिर क्या था, फंगस का बे मौसम इंद्र धनुष खिल गया। अचानक येलो फंगस जी आ टपके। अब क्या पता कब, बारी बारी और रंग भी फंगस नुमा मोर में दिख जाएं।
ब्लैक वाला फंगस तो हमने दिल से असेप्ट कर लिया जी! क्योंकि अपन के देश में ब्लैक का बोलबाला बचपन से देख रहे हैं। राशन, गैस, फोन हमने ब्लैक में खरीदे हैं। अब ऑक्सीजन, इंजैक्शन, दवाईयां, हस्पतालों के बेड....यहां तक कि दारु भी बाकायदा डंडे खाकर ,चिलचिलाती धूप में लाईन में लगकर ब्लैक में खरीदने की आदत सी पड़ गई है।
सो भइया! ब्लैक फंगस तो इंडिया में सम्मानीय भी है और कल्चर के अनुसार माननीय भी... लेकिन अभी किसी चैनल का पता नहीं कि कह दे - सबसे पहले हमारे चैनल पर देखिए वायलेट फंगस....झुमरी तलैया से हमारे सहयोगी खोज कुमार की विशेष रिपोर्ट....।
खाली हमारे चैनल ही मुस्तैद नहीं, हमारे बाबा लोग कोरोना से भी एक कदम आगे हैं। अभी कोरोना खुद ही कन्फयूज था कि मेरा वेरियेंट क्या है, जब तक वो बेचारा खुद को समझ पाता, जल्दी से पेश्तर , कोरोना वटी ने अपना बाजार चमका लिया। अभी फंगस खुद को नहीं पहचान पाया कि उस का रंग क्या है......लो जी हर रंग के फंगस की दवाई बाजार में तैयार।
मदन गुप्ता सपाटू, मो- 9815619620,458, सैक्टर- 10, पंचकूला