अमृतसर, फेस2न्यूज:
पंजाब सरकार और पंजाब के कुछ पंजाबी, पंजाबी बोली, मां भाषा की बात तो बहुत करते हैं, लेकिन मेरा सरकार से यह सवाल है कि स्मार्ट स्कूल में पंजाबी—हिंदी क्यों नहीं? क्या अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना ही स्मार्ट स्कूल की परिभाषा है? विडंबना यह है कि पंजाब सरकार सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने की छूट तो देती है पर हिंदी माध्यम में नहीं। इसी कारण जो बच्चे दूसरे प्रांतों से यहां आए हैं उन्हें मजबूरी में ज्यादा फीस खर्च करके भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना पड़ता है। ये कहना है पूर्व मंत्री रही श्रीमती लक्ष्मीकांता चावला का।
उन्होंने कहा, सरकार यह उत्तर दे कि अंग्रेजी से इतना प्यार क्यों? और हिंदी का विरोध क्यों? वैसे जो पंजाबी की बहुत बात करते हैं वे जरा अपनी दुकानों के बाहर और घरों के बाहर देखें, उनके नामपट्ट अंग्रेजी में लगे हैं। पंजाब में भी इंग्लैंड, अमेरिका जैसा वातावरण बाजारों में मिलता है। उनके हस्ताक्षर पंजाबी में है, घरों में वे बच्चों के साथ अंग्रेजी बोलते हैं। उनके घरों में भी केला और सेब सुनाई नहीं देता। बनेना और एप्पल चलता है। बच्चे को अंग्रेजी तोते बनाने के लिए मोटी फीसें खर्च करते हैं। जो आइलेट के नाम पर पढ़ाई हो रही है, क्या बच्चे कभी अपनी भाषा पढ़ने को तैयार होंगे। आइलेट का मतलब ही यह है कि विदेशी स्तर पर अंग्रेजी सीखो। अफसोस की बात है कि एक बड़े शिक्षाविद ने कहा कि जब आधा पंजाब विदेश चला गया तो पंजाबी, हिंदी की बात करना ही छोड़।
पंजाब सरकार अपने बच्चों के भविष्य के लिए सोचे। हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने की आज्ञा सभी बच्चों को दे। मेरे ख्याल दुनिया में ऐसा कोई अभागा देश नहीं है जहां उस देश की भाषा को जबरी पढ़ाया जाए जिस देश के हम सदियों तक गुलाम रहे। हमारे लाखों जवान शहीद हुए। सरकार बताए क्या इंग्लैंड में डंडे से हिंदी पंजाबी पढ़ाई जाती है। हम गुलामी क्यों नहीं छोड़ते।