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राष्ट्रीय

मेडिकल क्लेम: मरीज का 24 घंटे अस्पताल में भर्ती रहना जरूरी नहीं

March 15, 2023 07:39 PM

संजय कुमार मिश्रा:
गुजरात के वडोदरा जिला उपभोक्ता आयोग ने मेडिकल इंश्योरेंस से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि, मेडिकल इंश्योरेंस का क्लेम करने के लिए 24 घंटे अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अब समय बदल चुका है और नई तकनीक में मरीजों को ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहने की जरूरत नहीं है। आयोग ने बीमा कंपनी को आदेशित किया कि वो बीमा की राशि भुगतान शिकायतकर्ता को करे।
मामला विस्तार से:
वड़ोदरा के गोत्री रोड निवासी रमेश चंद्र जोशी ने 2017 में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया कि कंपनी ने उनका बीमा क्लेम देने से इनकार कर दिया है। जोशी की पत्नी 2016 में डर्मेटोमायोसिटिस से पीड़ित थी और उन्हें अहमदाबाद के लाइफकेयर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था। अगले दिन इलाज के बाद उसे छुट्टी दे दी गई। जोशी ने बीमा कंपनी से इस ईलाज के लिए 44,468 रुपये की दावेदारी की। बीमा कंपनी ने उनका क्लेम खारिज करते हुए कहा कि पॉलिसी नियम के क्लॉज 3.15 के मुताबिक उन्हें 24 घंटे तक अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था। जोशी ने उपभोक्ता फोरम में सभी कागजात प्रस्तुत किए और कहा कि उसकी पत्नी को 24 नवंबर 2016 को शाम 5.38 बजे भर्ती कराया गया और 25 नवंबर 2016 को शाम 6.30 बजे छुट्टी दे दी गई जो 24 घंटे से अधिक थी, लेकिन फिर भी कंपनी ने उन्हें क्लेम का भुगतान नहीं किया।
आयोग ने क्या कहा:
उपभोक्ता आयोग ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि मरीज को अस्पताल में 24 घंटे से कम समय के लिए भर्ती किया गया था लेकिन उसे क्लेम का भुगतान किया जाना चाहिए। आधुनिक समय में इलाज की नई तकनीक आने से डॉक्टर उसी के अनुसार इलाज करता है। इसमें समय कम लगता है। पहले मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता था। अब कई बार तो मरीजों को बिना भर्ती किए ही इलाज कर दिया जाता है। फोरम ने कहा कि बीमा कंपनी यह कहकर क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती है कि मरीज को अस्पताल में 24 घंटे के लिए भर्ती नहीं किया गया।
फोरम ने कहा कि बीमा कंपनी यह तय नहीं कर सकती है कि रोगी को अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक है या नहीं। केवल डॉक्टर ही नई तकनीक, दवाओं और मरीज की स्थिति के आधार पर निर्णय ले सकते हैं। फोरम ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि दावा खारिज होने की तारीख से 9% ब्याज के साथ जोशी को 44,468 रुपये का भुगतान किया जाए। इसके साथ ही बीमाकर्ता को मानसिक उत्पीड़न के लिए 3,000 रुपये और जोशी को मुकदमे के खर्च के लिए 2,000 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया गया था।

 
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