फेस2न्यूज/चंडीगढ
10 अप्रैल को डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुएल हैनीमेन की जयंती है. ये एक जर्मन चिकित्सक थे. इन्हेें होम्योपैथी का संस्थापक भी कहा जाता है. इसी कारण हर साल इनके योगदान को देखते हुए 10 अप्रैल को वर्ल्ड होम्योपैथी डे मनाया जाता है.
बच्चों से जुड़ी बीमारियां, प्रसूति और स्त्री रोग, जोड़ों का दर्द, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी, लिवर से संबंधित परेशानी, एसिडिटी की समस्या, संक्रामक रोगोें में इलाज होता है. कोविड काल के दौरान केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने आर्सेनिक एलबम का नाम इलाज के लिए सुझाया था. यह होम्योपैथी मेडिसन है.
इस पैथी में यदि एक बीमारी से 6 व्यक्ति संक्रमित हैं तो सभी 6 को एक तरह की दवाएं नहीं दी जाएगीं. सभी की दवाएं अलग अलग होती हैं. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि होम्योपैथी दवा का सेवन खुद से बिल्कुल न करें. डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए. होम्योपैथिक दवाओं को अन्य पारंपरिक उपचारों के साथ लिया जा सकता है।
हमारे पास आने वाले अधिकांश रोगी पहले मधुमेह या उच्च रक्तचाप जैसे रोगों के लिए पारंपरिक या हर्बल उपचार के किसी न किसी रूप में होते हैं। हम उनसे एलोपैथिक दवा को तुरंत बंद करने के लिए नहीं कहते, लेकिन इसे कम करने में मदद करते हैं।
किसी भी उपचार का कोर्स पूरा करना जरूरी है और होम्योपैथी के मामले में भी यही बात लागू होती है। हर दवा एक निश्चित तरीके से काम करती है। दवाओं के कोर्स का टाइम भी बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करता है।
लोगों में यह भ्रम है कि होम्योपैथी उपचार धीमा है। हालांकि यह सच नहीं है क्योंकि होम्योपैथी ने गंभीर बीमारियों के इलाज में वर्षों से उत्कृष्ट परिणाम दिखाए हैं और तथ्य यह है कि होम्योपैथी बीमारी को जड़ से खत्म कर देती है, यही एक कारण है कि लोग इसे पसंद करते हैं।