कार्यकर्ता से कहा गया कि "क्या तुम्हारा दिमाग खराब है या तुम्हें कुछ होश नहीं है कि तुम क्या पूछ रहे हो...?
संजय मिश्रा
'नवभारत' अखबार में छपी खबर कि RSS एक पंजीकृत संस्था नहीं है--पढ़कर एक लेथ मशीन ऑपरेटर और RTI कार्यकर्ता ललन सिंह के मन में कुछ सवाल उठे कि एक गैर-पंजीकृत संगठन को पब्लिक फंड से करीब 150 पुलिसकर्मियों की भारी सुरक्षा उपलब्ध कराने पर जनता का पैसा क्यों फूंका जा रहा है!
उन्होंने जून 2021 में महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय के लोक सूचना अधिकारी से सूचना अधिकार कानून के तहत निम्नलिखित 3 जानकारियां मांगी —
(1)—RSS पंजीकृत संस्था नहीं है तो उसे किस नियम के तहत सरकारी खर्च पर सुरक्षा उपलब्ध कराई गई है?
(2)—RSS को दी जा रही सुरक्षा पर प्रति माह कितना खर्च आ रहा है?
(3)—इस सुरक्षा व्यवस्था पर शुरू से लेकर अब तक कितनी धनराशि खर्च हुई है?
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● गृह मंत्रालय ने उन्हें कोई जवाब देने के बजाय, उनका पत्र महाराष्ट्र गोपनीय सूचना आयुक्त को भेज दिया, जहां से कहा गया कि उन्हें सम्बंधित जानकारी नागपुर DCP कार्यालय से उपलब्ध कराई जाएगी.
● नागपुर DCP दफ्तर का कहना था कि यह अति संवेदनशील सूचना है जिसे राज्य का सामान्य प्रशासन मंत्रालय देगा.
● सामान्य प्रशासन मंत्रालय ने कहा कि यह सूचना का अधिकार कानून की धारा 24.3 के प्रावधान के तहत उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है.
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आवेदक ललन सिंह भी कहां मानने वाले थे.
उन्होंने पलटकर जवाब दिया कि कानून की धारा 24.3 केंद्र तथा राज्य की गोपनीय इकाई की सूचना सार्वजनिक करने से रोकती है न कि RSS जैसे गैर-पंजीकृत संगठन की जानकारी देने से.
अंततः अनेक दफ्तरों के चक्कर कटवाने के बाद ललन सिंह पर ही पुलिस जांच बैठा दी गई और उन्हें बार-बार पुलिस अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होने को कहा जा रहा है.
इस बीच आवेदक ने पुलीस जांच के खिलाफ मुंबई हाई कोर्ट में भी याचिका दी, औद्योगिक मजदूर को मिलने वाली मुफ्त कानूनी सहायता देने वाले दो वकीलों ने तो RSS का नाम सुनकर ही हाथ जोड़ लिए, किसी तरह एक वकील तैयार हुआ तो याचिका दायर हुई और पुलिस जांच को रूकवाया गया।
लेकिन सच्चाई यही है की अंततः आज तक उन्हें चाही गई सूचना सामान्य प्रशासन मंत्रालय द्वारा उपलब्ध नहीं कराई गई है।
ये इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था ही है, जिसमें ललन सिंह जैसा जागरूक मजदूर-अपने नागरिक अधिकार का इस्तेमाल कर, सरकार के दबे-ढके रहस्यों और गैर-कानूनी कामों को भी उजागर कर सकता है, लेकिन शर्म की बात है की दुष्चक्र चलाकर लोगों को गुलाम बनाया जा रहा है और जागरूक लोगों को दबाने की कोशिश की जाती है।
आज देश के संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था समाप्त करने के बहुकोणीय प्रयासों को विफल करना उतना ही जरूरी है, जितना कभी देश को आजाद कराने के लिए देश विरोधी ताकतों मुकाबला किया गया था ।