ENGLISH HINDI Thursday, May 09, 2024
Follow us on
 
ताज़ा ख़बरें
राष्ट्रीय

सत्यापित प्रतिलिपि नहीं देने पर तहसीलदार को 12000 रुपया जुर्माना

May 21, 2023 12:18 PM

संजय कुमार मिश्रा:
जिला उपभोक्ता आयोग भदोही (उत्तर प्रदेश) ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सत्यापित प्रतिलिपि नहीं देने पर तहसीलदार ज्ञानपुर, जनपद भदोही उत्तर प्रदेश को सेवा में कमी का दोषी मानते हुए उसपर 12 हजार रुपया का जुर्माना लगाया है।
आवेदक कमलेश गुप्ता ग्राम वेदपुर जिला भदोही ने 7 सितंबर 2021 को तहसील ज्ञानपुर जनपद भदोही में तहसीलदार के यहां 50 रूपये का शुल्क भेजते हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत कुछ दस्तावेजों की सत्यापित प्रतिलिपि मांगी थी जिसे तहसीलदार कार्यालय द्वारा मुहैया नहीं करवाया गया। आवेदक कमलेश ने लीगल नोटिस भेजते हुए सत्यापित प्रतिलिपि देने की मांग की जिसे अनसुना कर दिया गया।
और कोई उपाय ना देख कर कमलेश ने सेवा में कमी की शिकायत जिला भदोही के उपभोक्ता आयोग को दी। आयोग द्वारा तहसीलदारको नोटिस भेजकर अपना पक्ष रखने को कहा गया लेकिन तहसीलदार उपस्थित नहीं हुआ। उपभोक्ता आयोग ने तहसीलदार को एक्स पार्ट घोषित करते हुए आवेदक कमलेश की याचिका पर विचार किया और पाया कि फ़ीस देकर सत्यापित प्रति प्राप्त करने वाला आवेदक कानून के तहत एक उपभोक्ता है और विपक्षी द्वारा भुगतान लेने के बावजूद भी सत्यापित प्रतिलिपि मुहैया नहीं करना "सेवा में कमी" है। आयोग ने निम्नलिखित केस का हवाला दिया -
ओडिशा राज्य उपभोक्ता आयोग ने चिन्तामणि मिश्रा बनाम तह्सीलदार खन्दापाडा के केस का निपटारा करते हुए 19-04-1991 को कहा कि फीस देकर सत्यापित प्रतिलिपी के लिये आवेदन एक पेड सर्विस है, और इस केस में आवेदक एक उपभोक्ता है जो सेवा में कमी की शिकायत उपभोक्ता मंच को दे सकता है।  

भुगतान लेने के बावजूद भी सत्यापित प्रतिलिपि मुहैया नहीं करना "सेवा में कमी" है। आयोग ने कहा की आदेश प्राप्ति की तिथि से 30 दिन के भीतर अगर इस जुर्माने का भुगतान नहीं किया गया तो 6 प्रतिशत का ब्याज भी आगे भरना पड़ेगा।


राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली ने पुनरीक्षण याचिका संख्या 2135 ऑफ 2000 (प्रभाकर ब्यानकोबा बनाम सिविल कोर्ट अधीक्षक) को निपटाते हुए 08-07-2002 को अपने आदेश के पैरा 11 मे कहा, कोई भी व्यक्ति जो कुछ पाने के लिये पैसे खर्च करता है तो वह उपभोक्ता अधिनियम 1986 के तहत एक उपभोक्ता है। पैरा 15 पर आयोग ने कहा कि कोर्ट के आदेश की सत्यापित प्रतिलिपी को जारी करने की प्रक्रिया कोई न्यायिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक प्रशासनिक प्रक्रिया है। पैरा 16 पर आयोग ने कहा कि उपरोक्त से सहमति जताते हुए हम यह मानते हैं कि, फीस देकर सत्यापित प्रतिलिपि मांगने वाला आवेदक एक उपभोक्ता है एवम फीस लेकर सत्यापित प्रतिलिपी मुहैया कराना एक सेवा।
आयोग ने कमलेश गुप्ता के शिकायत संख्या 02 ऑफ़ 2022 का निपटारा करते हुए प्रतिपक्षी को "सेवा में कमी" का दोषी मानते हुए उसे ₹10000 का जुर्माना लगाया और साथ ही मुकदमा खर्च के रूप में ₹2000 का रकम और भी अलग से देने को कहा। आयोग ने कहा की आदेश प्राप्ति की तिथि से 30 दिन के भीतर अगर इस जुर्माने का भुगतान नहीं किया गया तो 6 प्रतिशत का ब्याज भी आगे भरना पड़ेगा।
इससे यह तो साफ हो जाता है कि अगर आवेदक सूचना अधिकार कानून से निराश है तो वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम का सहारा लेते हुए दस्तावेजों की सत्यापित प्रतिलिपि फीस देकर मांग सकता है और सूचना नहीं मिलने पर इसे सेवा में कमी बताते हुए उपभोक्ता आयोग को शिकायत दे सकता है। इसीलिए अगर आपको सूचना अधिकार कानून के तहत वांछित जानकारी नहीं मिलती है तो आप भारतीय साक्ष्य अधिनियम का उपयोग करें आपको जरुर सफलता मिलेगी।

 
कुछ कहना है? अपनी टिप्पणी पोस्ट करें
 
और राष्ट्रीय ख़बरें
केजरीवाल की गिरफ़्तारी पर जर्मनी एवं अमेरिका के बाद अब यूएनओ भी बोला मेडिकल स्टोर ने 40 रूपये के इंजेक्शन का बिल नहीं दिया, उपभोक्ता आयोग ने 7000 रुपया का जुर्माना ठोका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5515 करोड़ रुपए के निवेश के साथ एसजेवीएन की सात परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित और शिलान्‍यास किया डॉ. मोहित टांटिया को नेपाल में मिला अंतर्राष्ट्रीय कर्णधार सम्मान सीबीआई ने कथित अनियमितताओं संबंधित मामले की जांच में 30 से अधिक स्थानों पर तलाशी ली झूठ व धोखेबाजी के कारण ही कांग्रेस को देश ने नकार दिया: प्रधानमंत्री आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस पार्टी के बैंक खाते सीज, महज एक संयोग या दिल्ली का प्रयोग? महाराजा अग्रसेन पर आधारित धारावाहिक अग्रचरित्रम के पोस्टर का विमोचन सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को अवैध बताते हुए रद्द किया धूमधाम से मनाया गया महर्षि स्वामी दयानन्द का 200वां वर्ष जन्म दिवस