ENGLISH HINDI Saturday, April 20, 2024
Follow us on
 
संपादकीय

क्या चुनावों में हर बार होती है जनता के साथ ठग्गी?

May 02, 2019 08:39 PM
जेएस कलेर
हर बार जब चुनाव नज़दीक आते हैं तो राजनीतिक पार्टियों की ओर से लोगों में आकर उनके हमदर्द बनने की कोशिश की जाती है। वह लोगों के सुख -दुख में शामिल होते हैं, परन्तु यह सब होता सिर्फ़ चुनावों तक ही है। वोटों के बाद तो बहुत से जीते हुए नुमायंदे भी नहीं मिलते और ना ही उनको लोगों के साथ किये वायदे ही याद रहते हैं। वह तो वोटों से कुछ समय पहले ही बरसाती मेंढकों की तरह आते हैं। ऐसा एक बार नहीं होता हर बार देखा जाता है।
आम आदमी की नेताओं, पार्टियाँ को वोटों समय पर ही ज़रूरत पड़ती है। इसी तरह ही सत्ता पर काबिज़ पार्टी का हाल देखने को मिलता है। चुनाव से पहले लोगों के साथ बड़े -बड़े वायदे किये जाते हैं। जब सत्ता पर काबिज़ होते हैं तो फिर ज़्यादातर वायदे बातों  तक ही सीमित हो कर रह जाते हैं। अब पंजाब में लोकसभा चुनाव नजदीक हैं जिसके लिए राजनीति का अखाड़ा पूरी तरह गर्म हो चुका है। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस की तरफ से विकास करवाने के दावे किये जा रहे हैं और बाकी पार्टियाँ जो वोटों में अपने उम्मीदवार खड़े कर रहीं है वह भी लोगों को अच्छा राज देने की बातें कर रहे हैं। इस बार ज़्यादातर विरोधी पार्टियाँ एक ही नारा लगा रही हैं कि ‘हमारा राज लाओ ’ और ‘पंजाब बचाओ ’।

आम आदमी की नेताओं, पार्टियाँ को वोटों समय पर ही ज़रूरत पड़ती है। इसी तरह ही सत्ता पर काबिज़ पार्टी का हाल देखने को मिलता है। चुनाव से पहले लोगों के साथ बड़े -बड़े वायदे किये जाते हैं। जब सत्ता पर काबिज़ होते हैं तो फिर ज़्यादातर वायदे बातों  तक ही सीमित हो कर रह जाते हैं। अब पंजाब में लोकसभा चुनाव नजदीक हैं जिसके लिए राजनीति का अखाड़ा पूरी तरह गर्म हो चुका है। सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस की तरफ से विकास करवाने के दावे किये जा रहे हैं और बाकी पार्टियाँ जो वोटों में अपने उम्मीदवार खड़े कर रहीं है वह भी लोगों को अच्छा राज देने की बातें कर रहे हैं। इस बार ज़्यादातर विरोधी पार्टियाँ एक ही नारा लगा रही हैं कि ‘हमारा राज लाओ ’ और ‘पंजाब बचाओ ’।

सवाल यही है कि इस से पहले पंजाब बचाने के लिए कोई आगे क्यों नहीं आया? इसका अर्थ यही हुआ कि सिर्फ़ वोटों तक ही पंजाब बचाने के नारे लगते हैं बाद में नहीं।
यदि सत्ताधारी पक्ष की बात करें तो इन की ओर से भी वोटों के लिए हर हथकण्डे प्रयोग किए जा रहे हैं। फर्क यह है कि विरोधी पार्टियाँ अपने तौर पर लोगों को अपने साथ जोड़ने की ताक में हैं और सत्ताधारी पक्ष सरकारी तौर पर अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। अब देखा जाये तो आम लोगों की सरकारी दरबार में  काफ़ी अहमियत है। किसी भी आदमी ने कहीं अपने काम के लिए जाना हो तो उसे पहले की तरह परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा। किसी किस्म की वस्तुएँ जो सरकारी दफ़्तरों में से मिलती हैं। उनको लेने में ज़्यादा मुश्किल नहीं आ रही। जबकि पिछले सालों दौरान देखा गया कि सरकारी वस्तुएँ लाइनों में लग कर लेनी पड़तीं थीं। वह अब आसानी के साथ बिना किसी सिफ़ारिश के मिल रही हैं।
लोगों को सहूलतें देने के लिए नई -नई स्कीमों शुरू की जा रही हैं। सरकार की ओर से बार -बार यही हिदायतें जारी की जा रही हैं कि लोगों के कामों में देरी नहीं होनी चाहिए। कुल मिला कर मौजूदा समय में लोगों को अपने कामों के लिए सरकारी दफ़्तरों से डर लगना हट गया है। यह सब हुआ इसलिए क्योंकि मौजूदा सरकार के कई दिग्गज चेहरे चुनाव अखाड़ो में हैं जिस कारण लोगों को खुश करने के लिए उन्होंने हर काम आसान किया हुआ है। परन्तु यह सब चुनाव के बाद बंद हो जाऐगा। बाद में फिर से वही हाल होता है।
अपने कामों के लिए धरने, प्रदर्शन करने पड़ते हैं। अब चुनाव नज़दीक होने के कारण मंडियों में गेहूँ की ख़रीद पूरे ज़ोरों -शोरों के साथ की जा रही है। जबकि पहले किसानों को गेहूँ बेचने के लिए कम से -कम एक हफ़्ता मंडी में ही रहना पड़ता था। इस बार यह काम बहुत फुर्ती के साथ किया जा रहा है। यह सब देख कर सवाल यही उठता है कि वोटों से दो -तीन महीने पहले वाला राज भाग पूरे पाँच वर्ष क्यों नहीं? इससे यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सत्ताधारी पक्ष लोगों को ढाई सालों दौरान हुई परेशानियां भुलाना चाहती है। पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में ही विकास की आतिशबाज़ियां छोड़ीं गई थीं। वास्तव में आम आदमी को सिर्फ़ वोटों के लिए ही इस्तेमाल करा जाता रहा है।
जब चुनाव  नज़दीक आते हैं तो वोट प्राप्त करने के लिए आम आदमी को लुभाने की कोशिश की जाती है। जबकि आम लोगों को हर समय राज भाग अच्छा मिलना चाहिए। जो आशाओं से वह वोट डाल कर अपनी पसंद की सरकार और सांसद चुनते हैं उनकी आशाओं पर पार्टी को खरा उतरना चाहिए। जिन समस्याओं के साथ हमारे गाँव /शहर जूझ रहे हैं। उन समस्याओं का पैदा होना भी कहीं न कहीं सरकार की कारजगुज़ारी पर प्रश्न चिह्न है क्योंकि सरकारों का मुख्य काम होता है कि वह लोगों को सुख सहूलतें दे जिससे किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह मुश्किल पेश न आए। इसी मकसद के साथ वह अपने नुमायंदे चुनते हैं। इसलिए आम लोगों को सहूलतें सिर्फ़ वोटों समय ही न दीं जाएँ बल्कि हर समय उन की बात सुनी जाये। उनकी समस्याओं का स्थायी हल किया जाये जिससे आम लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। यदि यहाँ ही अच्छा व्यवस्था मिलेगा तो कोई भी व्यक्ति बाहर के देशों में ग़ुलामियां नहीं करेगा। अपने देश में रह कर अपना कारोबार करेगा जिस के साथ देश और राज्य भी तरक्की करेगा। सरकार को ऐसे काम करने चाहिएं जिनका लोगों को सीधे तौर पर फ़ायदा हो और सरकार को अपनी, प्राप्तियाँ विज्ञापनों के द्वारा गिनाने की ज़रूरत न पड़े, बल्कि लोग ख़ुद ही सरकार के किये कामों को याद कर उनकी पार्टी के सांसद को वोटों डालें और अपने आप को ठगा महसूस न करें। 
 
कुछ कहना है? अपनी टिप्पणी पोस्ट करें
 
और संपादकीय ख़बरें