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राष्ट्रीय

अजीत अंजुम पर दर्ज एफआईआर का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

July 16, 2025 09:21 AM

संजय कुमार मिश्रा/ पंचकूला /नई दिल्ली

बिहार के बेगूसराय में पूर्व पत्रकार एवं वर्तमान में यूट्यूबर के रूप में काम करने वाले अजीत अंजुम पर दर्ज एफ आई आर का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस के सामने जा पहुंचा है।

सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता फोरम ने अजीत अंजुम पर बिहार के बेगूसराय में दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 15 जुलाई को एक याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता बलराज सिंह मलिक ने बताया कि, बिहार चुनाव में मतदाता सूची में संशोधन की गलत प्रक्रिया एवं खामियों को उजागर करने की सजा के तौर पर अजीत अंजुम पर एफ आई आर दर्ज कराया गया है। उन्होंने बताया कि मेन स्ट्रीम मीडिया तो पहले ही सेट हो चुका है अब सोशल मीडिया के खोजी पत्रकार को निशाना बनाया जा रहा है जो कतई नहीं होने दिया जायेगा।

ज्ञात हो कि अपनी निष्पक्ष और बेबाक पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले अजीत अंजुम पर बिहार के बेगूसराय जिले में एफ आई आर दर्ज की गई है। उन पर सरकारी काम में बाधा डालने और बिना अनुमति सरकारी दफ्तर में घुसने का आरोप है। यह मामला बेगूसराय जिले के बलिया थाना में दर्ज हुआ है। एफआईआर भाग संख्या 16, साहेबपुर कमाल विधानसभा क्षेत्र के बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) मो. अंसारुल हक ने दर्ज करवाई है।

बीएलओ ने बताया कि 12 जुलाई की सुबह करीब 9:30 बजे वे बलिया प्रखंड सभागार में बीएलओ एप से वोटर लिस्ट की जानकारी अपलोड कर रहे थे। उसी दौरान अजीत अंजुम, उनके सहयोगी और कैमरामैन बिना अनुमति अंदर घुस आए और सवाल-जवाब करने लगे।

बेगूसराय जिला प्रशासन ने 13 जुलाई को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें यूट्यूबर अजीत अंजुम पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक जाति विशेष को निशाना बनाकर झूठी बातें फैलाईं और लोगों को भ्रमित करने की कोशिश की। प्रशासन ने बताया कि 12 जुलाई की शाम 4 बजे अजीत अंजुम ने अपने यूट्यूब चैनल पर 45 मिनट 39 सेकंड का एक वीडियो अपलोड किया। इस वीडियो में वे अपने कैमरामैन के साथ बलिया प्रखंड सभागार में चल रहे वोटर लिस्ट सुधार कार्य का वीडियो बना रहे हैं, जो बिना अनुमति के किया गया। 

एफ़आईआर को पत्रकारिता पर हमला : अजीत अंजुम

दूसरी ओर अजीत अंजुम ने इस एफ़आईआर को पत्रकारिता पर हमला करार दिया है और इसे उनकी सच्चाई उजागर करने की कोशिशों को दबाने का प्रयास बताया है। उन्होंने सत्य हिंदी से कहा कि उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में फॉर्म भरने की प्रक्रिया की रिपोर्टिंग की। इसी क्रम में वह बेगूसराय के बलिया प्रखंड में वहाँ गये थे जहाँ बीएलओ एस आई आर (SIR) फॉर्म अपलोड कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वह उस जगह पर पूछकर गए थे।

अजीत अंजुम ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा,

“बेगूसराय के एक बीएलओ पर दबाव बनाकर मुझ पर एफआईआर की गई है. वीडियो को देखिए और तय कीजिए कि मैंने उस मुस्लिम बीएलओ से क्या ऐसी बात की है, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव खराब होता है. और कुछ नहीं मिला तो ये रास्ता निकाला. एक मुस्लिम बीएलओ को मोहरा बनाकर मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया. वीडियो में उठाए गए सवाल देने की बजाय प्रशासन डराने के हथकंडे अपना रहा है. बस इतना कह दे रहा हूं कि बेगूसराय में ही हूं. अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट तक लडूंगा. डरूंगा नहीं.”

कुछ पत्रकारों ने चुनाव आयोग के SIR वाली प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए और अंजुम की रिपोर्टिंग को साहसिक बताया। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा, "SIR की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, और अजीत अंजुम ने इसे बेनकाब किया। इसके बजाय कि चुनाव आयोग उनके सवालों का जवाब दे, उन्होंने FIR का रास्ता चुना।"

नॉकिंग न्यूज के फाउंडर पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ पूछते हैं कि जिस ऑफिस में धांधली चल रही है, वहां जाकर उस धांधली को कैमरे में कैप्चर करना सरकारी काम में बाधा कैसे हो गया ? और इस धांधली के वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड करना समाज में वैमनस्य फैलाना कैसे हो गया ? वो बताते हैं कि कई केंद्रीय मंत्री कई बार हिंदू मुस्लिम के नाम पर खुलकर विवादित बयान देते रहे हैं तब तो कोई एफ आई आर दर्ज नहीं की गई।

हालांकि बिहार में SIR की प्रक्रिया को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है। राजद, कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इसे नागरिकता की जाँच जैसा बताकर इसका विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2025 को इस मामले में सुनवाई की और प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बताते हुए इसे जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन आधार कार्ड, राशन कार्ड एवं वोटर ID को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं करने पर नाराजगी जताई और इसे भी पहचान के दस्तावेजों के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया।

विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग का यह प्रक्रिया गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से हटाने का प्रयास है। अजीत अंजुम की रिपोर्टिंग ने इन सवालों को और गहरा कर दिया, जिसके बाद प्रशासन ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की।

 
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