10 वर्षों से अधिक समय से लंबित 2 मामलों तथा 5 वर्षों से अधिक समय से लंबित 31 मामलों का समाधान किया गया, मध्यस्थता न्याय को इसके सच्चे स्वरूप में सुनिश्चित करके सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करती है : न्यायमूर्ति दीपक सिब्बल
फेस2न्यूज /चंडीगढ़
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) द्वारा मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति (एमसीपीसी) के सहयोग से एक राष्ट्रव्यापी अभियान मध्यस्थता राष्ट्र के लिए-90 दिवसीय अभियान का चलाया गया था। यह महत्त्वाकांक्षी पहल माननीय न्यायमूर्ति बीआर गवई, भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, कार्यपालक अध्यक्ष, एनएएलएसए एवं अध्यक्ष, एमसीपीसी के मार्गदर्शन में प्रारंभ की गई थी। यह अभियान 1 जुलाई से 30 सितम्बर तक आयोजित किया गया था और इसे देश के कोने-कोने में लागू किया गया। इसका उद्देश्य भारत के सभी तालुका न्यायालयों, जिला न्यायालयों तथा उच्च न्यायालयों में लंबित एवं वादपूर्व मामलों का समाधान मध्यस्थता के माध्यम से करना था। इस पहल के अंतर्गत, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, चंडीगढ़ ने यह अभियान पूर्ण उत्साह एवं सक्रियता के साथ संचालित किया।
यह अभियान माननीय न्यायमूर्ति शील नागू, मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय तथा प्रमुख संरक्षक, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, चंडीगढ़ के दूरदर्शी नेतृत्व में तथा माननीय न्यायमूर्ति दीपक सिब्बल, न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय एवं कार्यपालक अध्यक्ष, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, चंडीगढ़ के सक्षम मार्गदर्शन में संचालित किया गया। इस अभियान के दौरान, विशेष मध्यस्थता सत्रों का आयोजन मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र, जिला न्यायालय परिसर, सेक्टर 43, चंडीगढ़, उपभोक्ता न्यायालय, श्रम न्यायालय, तथा ऋण वसूली अधिकरण-2, चंडीगढ़ में किया गया।
इन सत्रों का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के मामलों का आपसी समझौते के माध्यम से निपटारा करना था जिनमें वैवाहिक विवाद, दुर्घटना मुआवजा संबंधी मामले, घरेलू हिंसा के मामले, चेक बाउंस के मामले, व्यावसायिक विवाद, सेवा संबंधी मामले, दंडनीय आपराधिक मामले, उपभोक्ता विवाद, ऋण वसूली संबंधी मामले, बंटवारा, बेदखली के मामले, श्रम विवाद, भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामले, तथा अन्य दीवानी मामले आदि शामिल थे।
इस अभियान के अंतर्गत कुल 2710 मामलों को मध्यस्थता हेतु संदर्भित किया गया। इनमें से 441 मामले सफलतापूर्वक सुलझाए गए, जो लंबित मामलों को कम करने एवं न्याय प्रदान करने के लिए मध्यस्थता की प्रभावशीलता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। विशेष उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मध्यस्थता राष्ट्र के लिए अभियान के दौरान 2 ऐसे मामले, जो 10 वर्षों से अधिक समय से लंबित थे, तथा 31 ऐसे मामले, जो 5 वर्षों से अधिक समय से लंबित थे, का अंततः समाधान किया गया। इस प्रकार के दीर्घकालिक विवादों का समाधान एक प्रशंसनीय उपलब्धि है, जो यह दर्शाता है कि मध्यस्थता प्रक्रिया वास्तव में पक्षकारों को समयबद्ध राहत और न्यायिक समाधान प्रदान करने में सक्षम है।
पहला 10 वर्षों से लंबित मामला, (रमेश आनंद बनाम जमित कौर ढिल्लों, जो वर्ष 2013 में दायर किया गया था, में विवाद एक संपत्ति से संबंधित था, जिसमें बिक्री हेतु एक एग्रीमेंट टू सेल किया गया था। इस एग्रीमेंट के तहत, द्वितीय पक्ष को संपत्ति का 44% हिस्सा बेचने के लिए चंडीगढ़ इस्टेट ऑफिस से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक था। इस पहल के तहत यह मामला मध्यस्थता केंद्र को संदर्भित किया गया, और मध्यस्थ विजय मंगल के प्रयासों से यह विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया गया। पक्षकारों के बीच 52,13,000/- की राशि पर समझौता हुआ, जिसके तहत यह तय किया गया कि द्वितीय पक्ष संपत्ति के 50% हिस्से की बिक्री विलेख (सेल डीड) प्रथम पक्ष के पक्ष में निष्पादित करेगा।
इसके अतिरिक्त, द्वितीय पक्ष ने यह सहमति भी दी कि वह संपत्ति के हस्तांतरण की प्रक्रिया को पूर्ण करने हेतु सभी आवश्यक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगा। दूसरा 10 वर्षों से लंबित मामला (अमरजीत कौर बनाम गुरमैल सिंह), जो वर्ष 2016 में दायर किया गया था, में पक्षकारों के बीच संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद था। यह मामला मध्यस्थता केंद्र को संदर्भित किया गया। मध्यस्थ श्रीमती मंजीत कौर संधू के मध्यस्थता प्रयासों से यह विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया गया।
संपत्ति के विशिष्ट हिस्सों का आपसी समझौते के तहत निर्धारण और आवंटन किया गया, जिससे यह लंबित विवाद समाप्त हुआ। मध्यस्थता अभियान के अंतर्गत इन दशकों से लंबित और पुरानी विवादों का समाधान न्याय प्रणाली में मध्यस्थता की परिवर्तनकारी क्षमता का प्रमाण है। संवाद और समझ के लिए एक मंच प्रदान करके, मध्यस्थता न केवल लंबित संघर्षों को समाप्त करती है बल्कि रिश्तों को भी बहाल करती है, मुकदमों के बोझ को कम करती है और त्वरित न्याय सुनिश्चित करती है। इस अभियान के शानदार परिणाम इस बात को दर्शाते हैं कि विवादों में संलग्न पक्ष मध्यस्थता को विवाद समाधान का एक भरोसेमंद और पसंदीदा तरीका मानने लगे हैं।
माननीय न्यायमूर्ति दीपक सिब्बल, कार्यपालक अध्यक्ष, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ ने संबंधित मध्यस्थों, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और मध्यस्थता केंद्र, चंडीगढ़ के कर्मियों के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने टिप्पणी की कि मध्यस्थता न केवल न्यायालयों में मामलों की लंबित संख्या को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देती है, बल्कि रिश्तों को पुनर्स्थापित करके, सद्भाव को बढ़ावा देकर और न्याय को इसके सच्चे स्वरूप में सुनिश्चित करके सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करती है।
उन्होंने कहा कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, चंडीगढ़ अपनी प्रतिबद्धता दोहराता है कि वह मध्यस्थता को विवाद समाधान का प्राथमिक माध्यम बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेगा, ताकि समाज के सभी वर्गों के लिए सुलभ, किफायती और सौहार्दपूर्ण न्याय सुनिश्चित किया जा सके।