मनमोहन सिंह
पंकज धीर के बाद फिल्मी दुनियां का इक और सितारा डूब गया। सारी दुनियां को अपने अभिनय से हंसाने वाले असरानी अब हमारे बीच नहीं हैं। हालांकि असरानी में संपूर्ण कलाकार की प्रतिभा और गुण मौजूद थे पर उनकी पहचान एक हास्य कलाकार के रूप में स्थापित हुई। उनकी कॉमेडी में हास्य के साथ साथ गंभीरता भी थी। उनके अभिनय में कहीं लचरपन नहीं था। 'सिचुएशनल' कॉमेडी में उनकी संवाद अदायगी और टाइमिंग बेजोड़ थी।
1967 में 'हरे कांच की चूड़ियां' से हिंदी सिनेमा में कदम रखने वाले असरानी ने 'गुड्डी' फिल्म में दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी। 'हरे कांच की चूड़ियां' में उन्होंने विश्वजीत के दोस्त का किरदार निभाया था। 'गुड्डी' फिल्म में उन्होंने एक ऐसे नौजवान का किरदार निभाया जो फिल्म नगरी मुंबई की चकाचौंध से प्रभावित हो मुंबई आ जाता है पर उसे सफलता नहीं मिलती। उस फिल्म में असरानी के हास्य में भी दर्द झलकता है जो दर्शकों को भावुक बना देता है।
मेरे अपने में मीना कुमारी, विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे कलाकारों के होते हुए असरानी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। फिर आया 1975 का साल, और आई उस समय की सबसे बड़ी फिल्म शोले, इस फिल्म में असरानी ने जेलर का जो अभिनय किया उसने असरानी और उस किरदार को अमर बना दिया। फिल्म में उनका संवाद, "हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं" आज तक भी याद किया जाता है।
ऐसी ही गंभीर कॉमेडी उन्होंने 'अभिमान' फिल्म में भी की थी। इस फिल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन के सचिव और दोस्त की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म की कहानी दो गायक पति पत्नी के बीच पैदा हुई व्यक्तित्व के टकराव की कहानी है। पति को अपनी पत्नी का गाना तो अच्छा लगता है लेकिन जब पत्नी को लोग और फिल्म निर्माता पति से अधिक महत्व देने लगते हैं तो पति के अहम को ठेस लगती है। फिल्म बहुत गंभीर है लेकिन असरानी की बहुत गहरी कॉमेडी इसमें भी हास्य पैदा कर देती है।
फिल्म 'मेरे अपने' में असरानी एक सड़क छाप गुंडे के रोल में नज़र आए। एक ऐसा गुंडा जो गुंडों की एक गैंग का छोटा सा प्यादा है। मेरे अपने में मीना कुमारी, विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे कलाकारों के होते हुए असरानी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। फिर आया 1975 का साल, और आई उस समय की सबसे बड़ी फिल्म शोले, इस फिल्म में असरानी ने जेलर का जो अभिनय किया उसने असरानी और उस किरदार को अमर बना दिया। फिल्म में उनका संवाद, "हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं" आज तक भी याद किया जाता है।
असरानी जिस फिल्म में भी आए उसमें अपनी अलग छाप छोड़ गए। आज वो हमारे बीच नहीं हैं। जिस तरह का फूहड़ हास्य आज सिनेमा और टीवी पर परोसा जा रहा है उसे देखते हुए असरानी की याद हमें हमेशा आती रहेगी।