ग़ज़ल
यारो बातों बातों में बात बनाना छोड़ दिया
हमने ऐरे - गैरों से हाथ मिलाना छोड़ दिया
नाच रहे हैं 'डीजे' पर पी कर सारे धुत्त हुए
गाते थे जो महफिल में वो गीत पुराना छोड़ दिया
आ पहुंचे उस धरती पर जो बेगानों की है यारो
रोज़ी रोटी की खातिर वो घर का दाना छोड़ दिया
तेरी आंखों से पी कर मदहोश हुए कुछ ऐसे
उस दिन ही बोतल तोड़ी, हमने मयखाना छोड़ दिया
उम्र हुई जब जाने की रब को सबने याद किया
हमने भी तो इधर- उधर आंख लड़ाना छोड़ दिया
कविता के कुछ छंद सुने गाए गीत बहारों के
हमने 'मॉडर्न म्यूजिक' से दिल बहलाना छोड़ दिया
तुम भी तो कब आते हो मेरे दिल की महफ़िल में
मैने भी तेरे सपनों में आना- जाना छोड़ दिया
- मनमोहन सिंह 'दानिश'