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कविताएँ

सफ़ीना है जो साहिल पे उसे मझधार होने दो

September 22, 2025 09:17 AM

ग़ज़ल

सफ़ीना है जो साहिल पे उसे मझधार होने दो
उसे तूफान से अब तो यहां दो चार होने दो

उठाओ तुम नया परचम नई तहज़ीब को देखो
बदल कर सब रिवाज़ो को नया संसार होने दो

लगे हैं अब ज़रा चलने अभी तक रेंगते थे जो
कि उनके बढ़ रहे कदमों को अब रफ्तार होने दो

तलातुम से न घबराओ हवाओं से नहीं डरना
चलो तूफान को कश्ती का तुम पतवार होने दो

पखेरू चाहते उड़ना कहीं अब दूर को 'दानिश'
उन्हें तुम आसमां की सरहदों के पार होने दो

                 - मनमोहन सिंह 'दानिश'

*सफ़ीना: कश्ती
*तलातुम: तूफान, उथल पुथल

 
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