ग़ज़ल
नज़र को नज़र से मिलाता गया मैं
तराने वो उल्फ़त के गाता गया मैं
तुझे जब भी पाया तसव्वुर में मैने
ख्यालों के गुलशन सजाता गया मैं
लिखे गीत मैंने तेरे गेसुओं पे
अदाओं पे मिसरे बनाता गया मैं
कहानी वो किस्से वो परियों की बातें
सुनी थीं जो मां से सुनाता गया मैं
मुहब्बत का मेरी ये जादू तो देखो
तुम्हीं को तुम्हीं से चुराता गया मैं
लिखे थे कभी जो मुहब्बत में तेरी
तराने वही गुनगुनाता गया मैं
न रोया कभी भी न आंसू बहाए
भले चोट पे चोट खाता गया मैं
-- मनमोहन सिंह 'दानिश'
उल्फ़त: प्यार, मुहब्बत
तसव्वुर: ख्याल, कल्पना
मिसरा: किसी शेर की एक पंक्ति