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गांव मेरा इक शहर सा फल रहा है दोस्तो

September 28, 2025 09:13 AM

गांव मेरा इक शहर सा फल रहा है दोस्तो
आदमी को आदमी ही खल रहा है दोस्तो

अब यहां कोई किसी के घर नहीं जाता कभी
फेसबुक पे दोस्ताना चल रहा है दोस्तो

दौड़ पैसे की हुई है तेज़ इतनी साथियों
एक दूजे को यहां हर छल रहा है दोस्तो

अब जनाजे के लिए कांधे भी कम पड़ने लगे
फोन पर अबसोस अब तो चल रहा है दोस्तो

खून सबका बह रहा दैर- ओ- हरम के नाम पर
आशियाना हर किसी का जल रहा है दोस्तो

राज गद्दी है नहीं जागीर उसके बाप की
देख वो सूरज सुबह का ढल रहा है दोस्तो

-- मनमोहन सिंह 'दानिश'

 
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