ग़ज़ल
हमारी जिंदगी बस एक उलझी सी कहानी है
हमेशा कुछ नहीं रहता यहां हर चीज़ फ़ानी है
गिरेगी एक दिन लाज़िम टिकेगी और ये कितना
लगी ईंटें सभी हिलने इमारत ये पुरानी है
कभी भी रोक मत लेना बढ़े कदमों को राहों में
अभी तो दूर है मंज़िल सुनो जो तुमको पानी है
किसी को कुछ नहीं लेना हमारी ज़र ज़मीनों से
करेंगे काम हम जो भी वही अपनी निशानी है
नहीं कुछ भी बचा मेरा न कोई आस है 'दानिश'
मुझे तो राख बस अपने ख्वाबों की उठानी है
-- मनमोहन सिंह 'दानिश'
फानी: नश्वर, खत्म हो जाने वाली