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"शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा"

September 28, 2025 09:03 AM

मनमोहन सिंह 'दानिश'

"शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा" जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' के लिखे ये दो मिसरे आज भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव के साथ पूरी तरह जुड़ गए हैं। आज शहीद भगत सिंह के जन्म दिन पर मुझे लगता है कि उनकी कुछ बातों को याद किया जाए।

इस बारे में भगत सिंह के उस पर्चे का जिक्र ज़रूरी है जो उन्हें ने आठ अप्रैल1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ असेंबली हाल में बॉम्ब फेंकते हुए फेंका था। उसमें सबसे ऊपर लिखा था: हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना पर्चे का मजबूंंन था "बहरों को सुनने के लिए बहुत ऊंची आवाज़ की ज़रूरत होती है"

प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद बेलों के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं। 

पिछले दस साल में ब्रिटिश सरकार ने शासन सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं और न ही हिंदुस्तानी पार्लियामेंट पुकारे जाने वाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सर पर पत्थर फेंक कर इसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है।

आज जब लोग 'साइमन कमीशन' से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए बैठे हैं और इन टुकड़ों के लाभ में आपस में झगड़ रहे हैं, विदेशी सरकार "सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक" और "औद्योगिक विवाद विधेयक" के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आने वाले अधिवेशन में ' अखबारों द्वारा "राजद्रोह रोकने के कानून" जनता पर कसने जा रही है। सार्वजनिक काम करने वाले मज़दूर नेताओं की अंधाधुंध गिरफ्तारियां यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैए से चल रही है।

राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता को महसूस कर "हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रयोजन है कि कानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परन्तु उसकी वैधानिकता की नकाब फाड़ देना ज़रूरी है।

जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेंट के पाखंड को छोड़ कर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लौट जाएं और जनता को विदेशी दामन और शोषण के खिलाफ इंकलाब के लिए तैयार करें।

हम अपने इस विश्वास को फिर दोहराना चाहते हैं कि संसार के इतिहास ने कई बार इस ज्वलंत सच्चाई की घोषणा की है कि व्यक्तियों की हत्या करना आसान है पर विचारों की हत्या नहीं की जा सकती। बड़े बड़े साम्राज्य नष्ट हो गए पर विचार आज भी जीवित हैं। रूस के ज़ार तक चले गए। हम मानव के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्ज्वल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें हर आदमी को पूरी शांति और आज़ादी का अवसर मिल सके । हम इंसान का खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं परंतु इंकलाब द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए इंकलाब में कुछ न कुछ रक्तपात अनिवार्य है।
इंकलाब ज़िंदाबाद।

 

 
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