मनमोहन सिंह
भारत और श्रीलंका में खेली जा रही महिला विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत लगातार अपना तीसरा मैच भी हार गया। जहां तक मुझे याद है 1982 के बाद शायद यह पहला मौका है जब भारत ने विश्वकप में लगातार तीन मैच हरे हों। दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हम अपने स्कोर बचा नहीं पाए और कल इंदौर में इंग्लैंड की 288 रन की चुनौती को पार नहीं कर सके। हमने यह मैच मात्र चार रन से खो दिया।
आज मैं इस मैच की बारीकियों में नहीं जा रहा बस इतना कहना चाहता हूं कि हमारी पूरी टीम ने ग़ज़ब का खेल दिखाया, क्षेत्ररक्षण कमाल का था, गेंदबाजी भी अच्छी रही। यह खिलाड़ियों की :करो या मारो' की भावना ही थी जिसने बल्लेबाजी के लिए पूरी तरह अनुकूल पिच पर इंग्लैंड को 288 पर रोक दिया। मेरे हिसाब से भारतीय खिलाड़ियों ने 30 से 40 रन अपने क्षेत्ररक्षण के कारण बचा लिए। मेरे हिसाब से जिस तरह की वह पिच थी और ऊपर से भारतीय पारी के समय ओस भी आ गई थी, में भारत के लिए इस स्कोर को पार करना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए था। पर ऐसा हुआ नहीं और कप्तान हरमनप्रीत कौर (70) और उप कप्तान स्मृति माधना (88) के बीच 121 रन की शानदार साझेदारी होने के बावजूद हम निर्धारित 50 ओवर में 284 रन ही बना पाए।
इंग्लैंड की कोई गेंदबाज इन्हें परेशान नहीं कर पा रही थी। फिर अचानक कप्तान हरमनप्रीत कौर ने न जाने क्यों अपना वहीं शॉट स्क्वेयर ऑफ द विकेट खेला और प्वाइंट पर आसान सा कैच करवा दिया। ध्यान रहे इस शॉट पर वह कई बार पहले भी आउट हो चुकी हैं। खेल की उस स्थिति में इस शॉट की ज़रूरत नहीं थी।
आज इस मैच के अधिक विश्लेषण की ज़रूरत नहीं। बस टीम के मनोविज्ञान को समझने की ज़रूरत है। यह ठीक है कि 288 के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम ने अपने दो विकेट पॉवर प्ले में गंवा दिए थे पर उसके बाद जिस तरह से हरमनप्रीत और स्मृति ने पारी को संभाला उससे टीम मजबूत स्थिति में आ गई थी। जिस तरह पूरे संयम से ये दोनों खेल रहीं थी उससे लग रहा था कि ये दोनों ही टीम को लक्ष्य तक ले जाएंगी।
इंग्लैंड की कोई गेंदबाज इन्हें परेशान नहीं कर पा रही थी। फिर अचानक कप्तान हरमनप्रीत कौर ने न जाने क्यों अपना वहीं शॉट स्क्वेयर ऑफ द विकेट खेला और प्वाइंट पर आसान सा कैच करवा दिया। ध्यान रहे इस शॉट पर वह कई बार पहले भी आउट हो चुकी हैं। खेल की उस स्थिति में इस शॉट की ज़रूरत नहीं थी।
कमोवेश यही गलती स्मृति ने भी की। पिछले कुछ मैचों पर नज़र डालें तो वे दो तीन बार इसी तरह लॉन्ग ऑन या लॉन्ग ऑफ पर कैच आउट हुई हैं। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी वे 80 के स्कोर पर इसी तरह आउट हुई थी। ये दोनों स्कोर ऐसे थे जिनमें स्मृति को शतकों के लिए जाना चाहिए था, और दोनों ही बार ऐसे स्ट्रोक्स की ज़रूरत नहीं थी।
यह सही है कि रन रेट थोड़ा बढ़ा था पर नियंत्रण में था। एक समय तो भारत को 57 गेंदों पर 57 ही रन चाहिए थे जो आराम से बन जाते। यही गलती दीप्ति शर्मा और ऋचा घोष ने भी की। कप्तान हरमनप्रीत कौर, स्मृति, दीप्ति शर्मा और ऋचा घोष, ये चारों किसी खरनाक गेंदबाजी की वजह से आऊट नहीं हुईं बस गैरजिम्मेदाराना शॉट्स की वजह से हुईं। इन चारों को थोड़ा सब्र रखना चाहिए था।
देखा गया है कि यह टीम कई बार बिना बात ही 'पैनिक बटन' दबा देती है। इतना होने के बावजूद भारत को अंतिम ओवर में जीत के लिए 14 रन दरकार थे। अमानजोत कौर और स्नेह राणा क्रीज़ पर थीं। इन दोनों ने अंतिम गेंद तक लड़ाई लड़ी और मात्र चार रन से चूक गईं। भारत अभी विश्वकप से बाहर नहीं हुआ है।
यह ठीक है कि इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, और ऑस्ट्रेलिया सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं पर अभी चौथी टीम के लिए मुख्यता भारत और न्यूजीलैंड के बीच टक्कर है। इन दोनों टीमों के लिए 23 तारीख का मैच जीवन मरण का सवाल है। मेरे हिसाब से वहां भारत का पलड़ा भारी है पर लापरवाही और ज़रूरत से ज्यादा सतर्कता भारत के लिए खतरनाक हो सकती है। जहां तक भारतीय टीम की बात है तो मुझे नहीं लगता कि टीम प्रबंधन अब इसमें कोई बड़ा बदलाव करेगा। कुछ ऐसा अहसास भी होता है कि जैसे भारत को जीत की आदत नहीं रही है। जब जब भी अपने पे पूरा विश्वास रख का भारत खेलेगा, तब तब वह किसी भी टीम को हराने में सक्षम होगा। मेरी शुभकामनाएं टीम के साथ हैं।