मनमोहन सिंह
अपने खेल पत्रकारिता जीवन के लगभग 45 साल में मैने न जाने कितने खेल आयोजन देखे और कवर किए, उनमें पंचायत स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल मुकाबले शामिल हैं। हर जगह खिलाड़ी मिलते हैं बिछुड़ते हैं और दोस्तों का एक नया संसार बना कर इक दूजे से विदा हो जाते हैं। लगता है कि यह दुनियां कोई और है और बाहर की दुनियां और। पर कुमारहट्टी में नज़ारा कुछ और ही था।
इतने भावुक लम्हे थे कि जैसे समापन के बाद लोग वापिस ही न जाना चाहते हों। विदाई के समय मुझे जिन खिलाड़ियों से मिलने का मौका मिला सभी ने कहा, "अगले साल फिर मिलेंगे"। उनके ये शब्द कोई औपचारिकता नहीं थी, बल्कि सच्ची भावनाओं से ओतप्रोत थे।
मुरादाबाद के मेजर दीपक हों या आशीष शर्मा, भारतभूषण, प्रदीप कुमार, या हरिंदर राणा या देश के 17 प्रांतों से आए कई और खिलाड़ी सभी इस आयोजन, कुमारहट्टी वेलफेयर सोसाइटी के अतिथि सत्कार और स्थानीय लोगों के प्यार के आगे नतमस्तक दिखे। कुछ खिलाड़ी यहां की आबोहवा से प्रभावित थे तो कुछ यहां की भौगोलिक स्थिति से। सभी ने प्रतियोगिता की आयोजन समिति के अध्यक्ष रमेश चौहान, भूमेश जोशी और कुमारहट्टी वेलफेयर सोसाइटी के सभी सदस्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की।
मेरे विचार से रमेश चौहान, भूमेश जोशी के साथ पर्दे के पीछे हरि दत्त तुंगल, और रवि जी जैसे कई और लोग भी बधाई के पात्र हैं जिनकी महीनों की अनथक मेहनत से यह टूर्नामेंट इतना कामयाब रहा। अगर मैं इस प्रतियोगिता के वाट्स ऐप ग्रुप पर नज़र डालूं तो बाहर से आए खिलाड़ी लगातार आयोजन समिति को बधाई दे रहे हैं। मेजबान राज्य हिमाचल प्रदेश के एक खिलाड़ी मदन कौशल का सुझाव था कि इस तरह और इस स्तर का कोई टूर्नामेंट केवल हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ियों के लिया भी आयोजित किया जाए।
इस तरह के उदगार और लोगों के मन में भी उठ रहे होंगे।
मुझे लगता है कि जिस तरह का टूर्नामेंट यह आयोजित किया गया है केवल कुमारहट्टी में ही नहीं बल्कि इस पूरे इलाके में खेलों के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात कर गया। उम्मीद है कि हम सभी यहां खेलों की एक नई दुनियां बसती देखेंगे। इस आयोजन के लिए रमेश चौहान, भूमेश जोशी, हरि दत्त तुंगल, रवि जी और कुमारहट्टी वेलफेयर सोसाइटी की जितनी तारीफ की जाए कम है। यह प्रतियोगिता मिसाल है उन लोगों के लिए जो अक्सर कहते हैं हमारे पास कोई सुविधा नहीं है क्या करें। या फिर यह बहाना लगते हैं कि लोग साथ नहीं देते। पर छोटे से गांव कुमारहट्टी ने साबित कर दिया कि इंसानी इरादे के आगे हर मुश्किल बैनी है। इस समय मुझे एक शायर के ये दो मिसरे याद आ रहे हैं:
"हम दरिया हैं, अपना हुनर जानते हैं जी तरफ भी चल पड़ेंगे रास्त बन जाएगा"