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खेल

महिला विश्वकप क्रिकेट :'हम में है दम', दिखाया भारत की बेटियों ने

November 03, 2025 08:59 AM

मनमोहन सिंह

 "At the stroke of midnight hours, when the whole world sleeps, India will awake to life and freedom" भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ये शब्द जो उन्होंने15 अगस्त 1947 को रात 12 बजे कहे थे वे सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए।

इसी तरह दो नवंबर 2025 की रात 12 बजे जब दुनियां सो रही थी। भारत की बेटियों ने विश्वविजेता का ताज अपने सर पर सजा लिया। उन्होंने उस शिखर को पा लिया जिस पर चढ़ने की कोशिश वे 1973 से करती आ रही थी। यह जीत एक टीम की जीत रही। इसमें किसी एक खिलाड़ी को चुनना न तो संभव है और न ही उचित।

बारिश से प्रभावित लगभग दो घंटे देरी से शुरू हुए इस मैच में जब दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लौरा वॉल्वार्ड ने टॉस जीत कर जब पहले गेंदबाजी का फैसला किया तो भारत के समर्थकों के चेहरों पर चिंता की रेखाएं खिंच गई क्योंकि इस टूर्नामेंट में भारत पहले भी अपना स्कोर बचा नहीं पाया था।

दक्षिण अफ्रीका की गेंदबाजी सटीक और क्षेत्र रक्षण कमाल का था। उन्होंने अपने क्षेत्ररक्षण से 25-30 रन बचाए। यही कारण था कि जेमिमा, हरमनप्रीत, दीप्ति शर्मा कभी गेंदबाजी पर हावी नहीं हो पाई। हालांकि दीप्ति ने ऋचा घोष के साथ मिलकर खेल का रुख मोड़ा पर भारत अभी भी उस स्कोर तक नहीं पहुंच पाया था। यहां तक कि टीवी कॉमेंटेटर भी कह रहे थे कि भारत का स्कोर 300 से ऊपर चाहिए। पर ओपनर शेफाली वर्मा ने शानदार 87, दीप्ति शर्मा ने 58 और ऋचा घोष ने 24 गेंदों पर 34 रनों का योगदान दे कर भारत का स्कोर सात विकेट पर 298 तक पहुंचा दिया। इनमें स्मृति मंधाना के 45 रन भी शामिल हैं। 

इससे यह धारणा बन गई थी कि हमारी गेंदबाजी कमज़ोर है। यह चिंता उस समय और गहरी हो गई जब स्मृति मंधाना 45 रन बना कर आउट हो गई। हालांकि युवा शेफाली वर्मा के साथ उसने पहली विकेट के लिए शतकीय साझेदारी कर दी थी। उसके बाद भारत की तरफ से कोई बड़ी साझेदारी नहीं हो पाई।

दक्षिण अफ्रीका की गेंदबाजी सटीक और क्षेत्र रक्षण कमाल का था। उन्होंने अपने क्षेत्ररक्षण से 25-30 रन बचाए। यही कारण था कि जेमिमा, हरमनप्रीत, दीप्ति शर्मा कभी गेंदबाजी पर हावी नहीं हो पाई। हालांकि दीप्ति ने ऋचा घोष के साथ मिलकर खेल का रुख मोड़ा पर भारत अभी भी उस स्कोर तक नहीं पहुंच पाया था। यहां तक कि टीवी कॉमेंटेटर भी कह रहे थे कि भारत का स्कोर 300 से ऊपर चाहिए। पर ओपनर शेफाली वर्मा ने शानदार 87, दीप्ति शर्मा ने 58 और ऋचा घोष ने 24 गेंदों पर 34 रनों का योगदान दे कर भारत का स्कोर सात विकेट पर 298 तक पहुंचा दिया। इनमें स्मृति मंधाना के 45 रन भी शामिल हैं। उनके अलावा जमीमा ने 24, हरमनप्रीत ने 20, और अमानजोत कौर ने 12 रनों का योगदान किया। इस तरह भारत ने 'बूंद बूंद से घड़ा' भर लिया।

अब दक्षिण अफ्रीका के सामने जीत के लिए 299 रनों का लक्ष्य था। मैच पूरी तरह से फंस चुका था। उनकी कप्तान लौरा वॉल्वार्ड पूरी फॉर्म में थी ताजमीन ब्रिट्स भी रन बना रही थी। लेकिन रेणुका सिंह ठाकुर ने अपने पहले ओवर में ही दिखा दिया कि भारत के इरादे क्या हैं। उसके पहले ओवर में केवल एक ही रन बन पाया। देखा जाए तो लगभग हर ओवर के साथ दक्षिण अफ्रीका का रन रेट बढ़ता गया। इसमें रेणुका की बड़ी भूमिका रही। उसने 3.50 रन की औसत से नौ ओवर में केवल 28 रन दिए। अगर उसकी गेंदों पर दो कैच न छूटे होते तो वह विकेट भी ले लेती। लेकिन उसका यह काम दीप्ति शर्मा ने कर दिया।

शुरुआती ओवरों में रन लूटाने वाली दीप्ति ने जब लय पकड़ ली तो 9.3 ओवर में 39 रन दे कर पांच विकेट ले लिए। इस तरह दीप्ति को टूर्नामेंट की खिलाड़ी घोषित किया गया। इस जीत में कप्तान हरमनप्रीत कौर की कप्तानी भी अच्छी रही। एक समय जब लूस और लौरा वॉल्वार्ड की साझेदारी बनने लगी तो उसने शेफाली वर्मा को गेंदबाजी पर लगा दिया। शेफाली की ऑफ स्पिन गेंदबाजी जब तक बल्लेबाजों की समझ में आती तबतक वह सुने लूस (25) और कप्प (4) के विकेट ले चुकी थी। इसके बाद जैसे ही रन रेट 12 के पास पहुंचा और कप्तान लौरा वॉल्वार्ड ने कुछ लंबे शॉट लगाने की कोशिश की तो दीप्ति की गेंद पर अमनजोत कौर ने कैच पकड़ कर मैच अपने पक्ष में मोड़ लिया।

हालांकि यह कैच लेते समय गेंद दो बार उसके हाथ से छिटकी पर आखिर उसने कैच पूरा कर लिया। दक्षिण अफ्रीका की कप्तान ने शानदार 101 रन बनाए।

भारत की इस जीत में उनके कोच और स्पोर्ट स्टाफ की भी अहम भूमिका रही। इस जीत को आप 1983 के विश्व कप की जीत से मिला सकते हैं जो भारत को पहली बार मिली थी। इस टीम की तैयारी के हिसाब से इसे 1975 के हॉकी विश्व कप की जीत से मिला कर भी देख सकते हैं। देश के लिए ये गौरव का समय है। उम्मीद है कि भारत की ये बेटियां हमें ऐसे और भी पल जरूर देंगी।

 
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