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कविताएँ

तेरा इश्क़ झूठा था

February 22, 2018 01:50 PM

-शिखा शर्मा

डूब कर इश्क़ के समन्दर में

गोता खाकर निकल गया
तेरा इश्क़ झूठा था
वादे करके मुकर गया

इश्क़ क्या है
तूने ही मुझे बताया था
दिन में बेचैनी और रातों में जगाया था
मेरा लहू पीकर
तेरा तो रूप-रूप निखर गया
तेरा इश्क़ झूठा था
वादे करके मुकर गया

बेवफाई की फुंहकार से
तूने इतना ज़हर उगल दिया
घूंट पी-पीकर मेरा बदन नीला पड़ गया
इश्क़ के सपनों का
वो हर मीठा लम्हा गुजर गया
तेरा इश्क़ झूठा था
वादे करके मुकर गया

बात किए बगैर तब
नहीं होती थी रात
कसमें खाई कितनी
नहीं छोड़ूगा तेरा साथ
मेरी पाक मोहब्बत से अब तू कितना बिफर गया
तेरा इश्क़ झूठा था
वादे करके मुकर गया

तू अब भी नहीं कहता कि मैं बेवफा हूँ
तेरे साथ हर घड़ी हर दफा हूँ
लौटा सके तो लौटा दे
जो मेरा सब कुछ बिखर गया
तेरा इश्क़ झूठा था
वादे करके मुकर गया

 
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