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संपादकीय

बिहार रेजीमेंट के शूरवीरों ने कैसे चीनियों की पिटाई, बौनों को बौनी क्षमता का करवाया अहसास

June 25, 2020 11:56 AM

संजय मिश्रा
सेना में कमांडिंग ऑफिसर सोल्जर के पिता समान होता है, वह अपने अधीनस्थ जवानों को निर्देश देता है, प्रेरित करता है, दंडित भी करता है, लेकिन अंत में वह अपने लड़कों को राष्ट्र की सेवा करते हुए उत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ सदैव उन्नति करते हुए आगे बढ़ते हुए देखना चाहता है। कमांडिंग ऑफिसर अपने सैनिकों का मार्गदर्शक भी होता है और एक प्रकार से उनका ऑनफील्ड अभिभावक भी।   

बॉर्डर के फॉर्वर्ड पोजीशन पर तैनात एक कमांडिंग ऑफिसर अपनी पलटन को दिये जाने वाले मात्र एक निर्देश से भीषण युद्ध भी आरम्भ करवा सकता है और चाहे तो मजबूत से मजबूत राजनीतिक सरकार को झुकाकर ब्लैकमेल भी कर सकता है। चूंकि भारतीय सेना एक शक्तिशाली और नैतिक आर्मी भी है इसीलिए सेना द्वारा सदैव संयमित और अनुशासित आचरण ही किया जाता रहा है।  

जब इतिहास लिखा जाएगा तो वह भारतीय सेना के बिहार रेजिमेंट और उसके घातक ब्रिगेड के सैनिकों द्वारा 15 जून 2020 की रात गालवान के बर्फीले ठंडे पठार में लिखी गयी शौर्य गाथा से पूरा न्याय करेगा।

अब आप एक पलटन के कमांडिंग ऑफिसर के महत्व से परिचित हो चुके हैं तो अब ये समझिए कि जब बिहार रेजिमेंट व घातक ब्रिगेड के कर्नल व कमांडिंग ऑफिसर संतोष बाबू को धोखे से तब मारा गया, जब वे एक बैठक में गए थे। जिसका उद्देश्य तनाव को कम करना था, तो उस घटना की सूचना मिलने के बाद पलटन के सैनिकों की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी।

बिहार रेजीमेंट व घातक ब्रिगेड के सैनिक अपने कमांडिंग ऑफिसर के धोखे से मारे जाने की बात सुनकर अपना धैर्य खोकर अतिउग्र हो गए। कमांड सेंटर से सख्त आदेश जारी होने के बावजूद, उन्होंने कुछ समूह बनाकर सीमा पर घुसपैठ की और बड़ा युद्ध छिड़ने से रोकने हेतु बिना गोली बंदूक का प्रयोग किये परम्परागत तरीकों द्वारा आधुनिक सैन्य इतिहास के सबसे शौर्यवान, निर्भीक, भयावह और बर्बर हमलों में से एक सैन्य आक्रमण को अंजाम दिया।

भारतीय सैनिकों के इस हमले में कई मरने वाले अभागे चीनी पीएलए सैनिकों को पता तक नहीं चला कि उनके साथ ये अचानक हुआ क्या। कम से कम 40 पीएलए सैनिकों की गर्दन या तो आधी कटी हुई उनके शरीर से लटक रही थी या कुछ मरोड़कर तोड़े जाने के कारण एक ओर ढुलक गई थी, अथवा उनके शरीर पर झूलती हुई पायीं गईं थी। कुछ चीनी सैनिकों के शरीर की रीढ़ की हड्डी ही तोड़ दी गई थी, जो उन चीनी सैनिकों के शरीर पर प्रयोग हुए भारी बल का सूचक था और स्वयं गवाही दे रहा था कि आक्रमण कितना भीषण था, कुछ चीनी सैनिकों के चेहरे भारी पत्थरों से इस प्रकार कुचले गए थे कि उन चीनी सैनिकों के शवों की उनके चेहरे से पहचान करना असंभव था, कई चीनी सैनिकों को लड़ाई में उठाकर पहाड़ी से नीचे ठंडे पानी में फेंक दिया गया था। इस हाथापाई में कुछ भारतीय सैनिक भी नीचे गिर गए थे।

भारतीय सैनिकों ने वापस आकर बताया कि कैसे उन्होंने हमले के बाद चीनी सैनिकों को ऊंची आवाज में रोते, चिल्लाते व दर्द से बिलबिलाते हुए सुना। वापस आते समय भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सीमा के निकट बनाया जा रहा कई अस्थाई कैंप भी नष्ट कर दिया।
जब अपनी टुकड़ी की सहायता हेतु चीनी सैनिकों की संख्या बढ़ने लगी तो कुछ भारतीय सैनिक पास के पहाड़ों पर कूच करने में सफल रहे। लेकिन इस लड़ाई के बाद जिन वीरगति प्राप्त भारतीय सैनिको के शरीरों को बाद में चीन द्वारा वापस किया गया था उनकी स्थिति देखकर कहा जा सकता था कि उस हमले से चीनी खेमे में भारत के सैनिकों के प्रति कितनी खिजियाहट थी, क्योंकि चीनियों द्वारा अपना क्रोध भारतीय योद्धाओं की मृत देह पर निकाला गया था।

भारतीय हमले की सूचना के बाद आयी चीनी पलटन को उस स्थान पर चीनी सैनिको के शवों और घायल रोते कराहते चीनी सैनिकों का एक बड़ा ढेर पड़ा मिला, जिसमे कुछ गम्भीर रूप से घायल भारतीय सैनिक भी थे जिन्हें चीनियों ने उनकी पीड़ा से सदैव के लिए मुक्त कर दिया। रिपोर्ट किए गए 43 मृत चीनी सैनिकों की तुलना में वास्तविक आंकड़ा कहीं बड़ा है जो आसानी से 150 से 100 के बीच हो सकता है। हालात ये है कि चीनी सरकार अपने देशवसियों को इस क्षति के बारे में बताकर अपनी नाकाबलियत उजागर भी नहीं कर सकती, बस इतना ही बताया गया कि गलवान घाटी में भारतीय पक्षों के साथ झड़प में चीन को भी कुछ नुकसान हुआ है।

मृत चीनी सैनिकों के शरीरों की दुर्दशा और घावों पर बड़े बड़े अक्षरों में भारतीय घातक ब्रिगेड की वही ट्रेडमार्क शैली हस्ताक्षरित थी जिसके लिए घातक ब्रिगेड जानी जाती है। घायल होकर पीड़ा से जूझते हुए बिहार रेजिमेंट व घातक ब्रिगेड के सैनिक इस हमले के बाद जब अपने कमांडिंग ऑफिसर का बदला लेकर गगन भेदी युद्धघोष करते हुए लौटे तो उन्हें संतोष था की उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर का बदला चीनियों से ले लिया था।

अब भारतीय शिविर के वातावरण में एक गंभीर शांति थी, लेकिन यदि परिस्थिति बिगड़ती तो लोहा लेने के लिए अगली पंक्ति के सैनिकों को तैयार किया गया। घायलों को उपचार के लिए मिलिट्री हॉस्पिटल ले जाने हेतु एअरलिफ्ट किया गया। भारतीय सैनिकों को अपने कमांडिंग अफसर और कुछ साथियों के जाने का दुख जरूर था परंतु उनका हौसला आसमान छू रहा था, वहीं दूसरी तरफ चीनी सेना खिसियाई हुई आग बबूला होकर बैठी थी, आखिर भारत के मुट्ठी भर सैनिकों ने अपने से कई गुना बड़ी फौज को बिना गोली बारूद इस्तेमाल किये, उन्हें जान माल की गंभीर क्षति पहुंचाई, और उन्हें उनकी बौनी क्षमता का अहसास करवाया था।

दोनों ओर से बटालियन फुल स्केल वॉर के लिए तैयार थी, लेकिन उनके शीर्ष कमांडर क्षति के अनुपात को देखकर युद्ध के लिए तैयार नहीं थे, उन्होंने इस हमले के बाद एक और बैठक की जिसमें हमारे कुछ सैनिक गुप्त रूप से खुखरी, खंजर और अन्य वस्तुओं से लैस होकर गए थे।

पीएलए कर्नल का स्वर सहानुभूतिपूर्ण था और वह यथास्थिति बहाल करने के लिए तैयार था, वैसे तो उस रात भारत-चीन सीमा पर कई स्थानों पर बहुत सी अन्य घटनाएं भी हुईं, किंतु मुझे लगता है कि एक नागरिक के लिए सम्भवतः इतनी जानकारी पर्याप्त है।

कुछ वर्षों के बाद जब इतिहास लिखा जाएगा तो वह भारतीय सेना के बिहार रेजिमेंट और उसके घातक ब्रिगेड के सैनिकों द्वारा 15 जून 2020 की रात गालवान के बर्फीले ठंडे पठार में लिखी गयी शौर्य गाथा से पूरा न्याय करेगा।

(लेखक पत्रकार और आरटीआई के कर्मठ कार्यकर्ता हैं)

 
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