जे एस कलेर
अमृतसर रेल दुर्घटना से सबक लेते हुए जीरकपुर में दिवाली पर पटाखों के कारण आग लगने की घटनाओं में जान-माल की हानि कम से कम हाे, इसके लिए प्रशासन काे हर मार्केट, गली-मोहल्लों में लाइसेंस देने की परंपरा काे बंद करना चाहिए। उसकी जगह शहर में खुले एरिया में 2-3 जगह चिन्हित कर किसान मंडी की शैली (जहां एक ही जगह 50-60 दुकान लगे) में लाइसेंस दिए जाएं, जहां भीड़-भाड़ कम रहती है। इसका फायदा यह हाेगा कि दुर्भाग्य से अागजनी की घटना हाेती है ताे खुले एरिया के कारण जान-माल की हानि काे टाला जा सकेगा।
पटाखों की दुकान लगाने के लिए लाइसेंस देने के सिलसिले में गाइड लाइन है, लेकिन साठगांठ के चलते गाइड लाइन काे नजर अंदाज कर भीड़-भाड़ अाैर जाेखिम वाले एरिया में भी लाइसेंस दे दिए जाते हैं। एेसी स्थिति में जान-माल के नुकसान की पल-पल आशंका रहती है। जीरकपुर में अपना कोई फायर सेफ्टी सिस्टम न होने के कारण कर्इ बार आग लगने की वारदातें हा़े चुकी हैं, जिसमें करोड़ो का नुकसान हो चुका है लेकिन गनीमत रही कि काेई जानी नुकसान नहीं हुअा।
जानकारों का मानना है कि प्रशासन शहर में चंडीगढ़ में लगती किसान मंडियों की तर्ज पर कर्इ जगह चिन्हित कर वहां पटाखों की दुकान लगाने के लिए लाइसेंस दे सकता है। इसमें गाजीपुर राेड पर पड़ी नगर काउंसिल की जमीन, पभात नाभा रॉड पर पड़ी काउंसिल की जमीन, बलटाना में पुलिस चौकी के सामने पड़ी जमीन, पिरमुछाला में पड़ी काउंसिल की जमीन, लोहगढ़ रामलीला ग्राउंड में पटाखों की दुकान के लिए लाइसेंस दिए जा सकते हैं।
खुले इलाके में एक से ज्यादा जगह लाइसेंस देने से लाेगाें काे पटाखे खरीदने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा। वहीं एक साथ कर्इ दर्जन दुकान हाेने से लाेगाें काे क्वालिटी/क्वांटिटी दाेनाें में बढ़िया पटाखे मिलेंगे। साथ ही रेट में ठगी नहीं हाेगी। लोगों के पास एरिया वाइस 60-70 दुकानाें से पटाखे खरीदने का विकल्प खुला रहेगा। इससे कंपीटिशन बढ़ेगा अाैर लाेगाें काे किफायती रेट पर पटाखें मिलेंगे।
कई जिलाें में खुले में लगती हैं पटाखों की दुकान
महानगर जयपुर ही नहीं, बल्कि अलवर, कराैली, सवाई माधाेपुर, गंगापुर सिटी अादि जगह भीड़-भाड़ से दूर खुले में पटाखों की दुकान लगार्इ जाती हैं। इसके एक नहीं, अनेक फायदे हैं। पहला दुर्भाग्य से पटाखों के बारूद में अाग लग जाए ताे खुले में दुकान हाेने से जान-माल का कम से कम नुकसान हाेगा। दूसरा-कंपीटिशन हाेने से दुकानदार मनमाने ढंग से दाम नहीं वसूल सकेंगे। तीसरा लाेगाें काे एक ही कैंपस में पटाखों की अलग-अलग वैरायटी का चयन करने का माैका मिलेगा। लाेगाें के साथ रेट के मामले में ठगी नहीं हाेगी। दुकानदार भी साेच समझ कर रेट तय करेंगे, क्योंकि उन्हें भी टेंशन रहेगा कि ज्यादा रेट बतार्इ ताे ग्राहक पास वाली दुकान से खरीदारी कर सकता है। चाैथा फायदा नगर परिषद काे हाेगा, जिसे दुकान अाबंटन करने की एवज में शुल्क मिलेगा।
डीसी/एसडीएम पहल करें ताे संभव है
लाेगाें के जान-माल की सुरक्षा के मद्देनजर शहर में भीड़-भाड़ से दूर 3-4 जगह पटाखों की दुकानें लगार्इ जा सकती हैं। यह सिर्फ लाेगाें के हित में ही नहीं हाेगा, बल्कि प्रशासन के पक्ष में भी हाेगा। क्योंकि आग लगने की घटना नहीं हाेगी ताे प्रशासन भी टेंशन फ्री रहेगा। यह काम डी.सी व एसडीएम के लिए काेर्इ मुश्किल नहीं है।
अमृतसर रेल हादसे में सैकड़ों लोगों की जान जाने के बाद प्रशासन काे जनहित में टेंशन लेकर भी काम करना पड़े ताे करना चाहिए, क्योंकि किसी की जान बचाने से बड़ा काेर्इ काम नहीं हाेता है।
प्रशासन काे सकारात्मक पहल करते हुए पटाखों की दुकान लगाने के सिलसिले में लाइसेंस की मांग करने वाले लाेगाें की मीटिंग बुलाकर उन्हें समझाना चाहिए, इससे शहर में भीड़-भाड़ से दूर खुले में पटाखों की दुकान लगने पर जान-माल की आशंका नहीं रहेगी। वहां कंपीटिशन के कारण दुकानदार लाेगाें के साथ रेट में चीटिंग भी नहीं कर सकेंगे।