पंचमहाभूत का सिद्धांत केवल आध्यात्मिक चिंतन नहीं, बल्कि पर्यावरण–प्रबंधन का प्राचीनतम वैज्ञानिक ढाँचा है : प्रो. के. सी. शर्मा, भारतीय ज्ञान–परम्परा में निहित पंचमहाभूत का सिद्धांत न केवल दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रतीक है, बल्कि आधुनिक पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान का मार्ग भी प्रस्तुत करता है : डॉ. शैलजा छाबड़ा
चण्डीगढ़ : एनवायरनमेंट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया, चण्डीगढ़ एवं राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पंचकूला के संयुक्त तत्वावधान में पंचमहाभूत : भारतीय ग्रन्थों में पंचतत्व और पर्यावरण संतुलन विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य एवं गरिमामयी आयोजन महाविद्यालय परिसर में किया गया। संगोष्ठी में देश के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से आए प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का शुभारम्भ पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रो. के. सी. शर्मा, विशिष्ट अतिथि आरसी मिश्रा तथा विशिष्ट वक्ता डॉ. अर्चना मिश्रा थे।
महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. शैलजा छाबड़ा ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि भारतीय ज्ञान–परम्परा में निहित पंचमहाभूत का सिद्धांत न केवल दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रतीक है, बल्कि आधुनिक पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान का मार्ग भी प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि हमारी परम्पराएँ हमें प्रकृति के साथ संतुलन एवं समन्वय में जीवन जीने की दिशा दिखाती हैं। इस संगोष्ठी का उद्देश्य इन पारंपरिक अवधारणाओं को आधुनिक संदर्भों से वैज्ञानिक रूप में जोड़कर प्रस्तुत करना है।
विशिष्ट अतिथि आरसी मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा कि पर्यावरण संरक्षण किसी एक संस्था का दायित्व नहीं, बल्कि सामाजिक सहभागिता पर आधारित समष्टिगत संकल्प है। पंचतत्व का सिद्धांत हमें प्रकृति के प्रति अपने दायित्व एवं उत्तरदायित्व की निरंतर स्मृति कराता है। डॉ. अर्चना मिश्रा ने अपने वक्तव्य में भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं की पर्यावरणीय संरचना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय परम्पराओं में पर्यावरणीय संकेत गहराई से अंतर्निहित हैं। इनका वैज्ञानिक पुनर्पाठ आज की वैश्विक पर्यावरणसंकट की स्थितियों में अत्यंत उपयोगी एवं आवश्यक सिद्ध हो सकता है।
मुख्य वक्ता प्रो. केसी शर्मा ने विषय पर विस्तृत एवं शोधपरक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि पंचमहाभूत का सिद्धांत केवल आध्यात्मिक चिंतन नहीं, बल्कि पर्यावरण–प्रबंधन का प्राचीनतम वैज्ञानिक ढाँचा है। यदि इसे आधुनिक तकनीक, नीति–निर्माण तथा सतत विकास के वैश्विक एजेंडे से जोड़ा जाए, तो पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रभावी समाधान संभव हैं।
एनवायरनमेंट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के सचिव एनके झिंगन ने संगोष्ठी की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सोसाइटी का उद्देश्य भारतीय ज्ञान–परम्परा को आधुनिक पर्यावरणीय नीतियों एवं संरक्षण–प्रयासों से जोड़ना है। यह संगोष्ठी इस दिशा में एक प्रभावी एवं दूरदर्शी पहल साबित हुई है।
संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. चित्रा तनवर ने बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य पारंपरिक पर्यावरणीय अवधारणाओं और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बीच सेतु स्थापित करना था। उन्होंने कहा कि प्रतिभागियों का उत्साह यह दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर नए विमर्श और नवाचारी दृष्टि की आज अत्यंत आवश्यकता है।
सह–संयोजक डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय एवं डॉ. नीरज सिंह ने अतिथि समन्वय, विषय–निर्धारण, सत्र–संचालन, पंजीकरण एवं तकनीकी व्यवस्था आदि सभी चरणों को सुव्यवस्थित रूप से संपन्न कराया। उनकी सूक्ष्म योजना एवं प्रभावी प्रबंधन से कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित हुआ।
महाविद्यालय के इको–क्लब के सदस्यों ने परिसर–व्यवस्था, स्वच्छता, हरित पहल एवं अतिथि–आतिथ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके सहयोग से पूरे कार्यक्रम का वातावरण अनुशासित, पर्यावरण–अनुकूल एवं सुसंगठित बना रहा।
विभिन्न सत्रों में विशेषज्ञों द्वारा भारतीय ग्रन्थों में निहित पर्यावरणीय दृष्टि, पंचतत्व सिद्धांत की समकालीन प्रासंगिकता, परम्परागत ज्ञान–प्रणालियों का संरक्षण, तथा सतत विकास के साथ उनके अंतर्संबंधों पर विस्तारपूर्वक प्रस्तुतियाँ दी गईं। प्रतिभागियों ने अपने शोध–पत्रों, विचारों एवं अनुभवों के माध्यम से गंभीर संवाद में योगदान दिया।
कार्यक्रम के समापन पर प्राचार्या डॉ. शैलजा छाबड़ा ने सभी मुख्य अतिथियों, वक्ताओं, आयोजन समिति, इको–क्लब सदस्यों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद व्यक्त किया। संचालन डॉ. नीरज सिंह द्वारा किया गया तथा धन्यवाद–प्रस्ताव डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय ने प्रस्तुत किया।