फेस2न्यूज/ शिमला
हिमाचल प्रदेश को वर्ष 2027 तक आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प को धरातल पर उतारते हुए, मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविन्द्र सिंह सुक्खू ने एक ऐतिहासिक ‘ग्रीन टू गोल्ड’ पहल की शुरुआत की है। यह साहसिक आर्थिक प्रयोग औद्योगिक भांग की खेती को वैध और विनियमित कर अर्थव्यवस्था को वैश्विक बायो-इकॉनोमी में अग्रणी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
दशकों से कुल्लू, मंडी और चंबा जैसी घाटियों में जंगली रूप से उगने वाली भांग को अब तक केवल नशे और अवैध व्यापार से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन सरकार ने औषधीय गुणों से युक्त इस प्राकृतिक संपदा को एक बहुमूल्य औद्योगिक संसाधन के रूप में पहचाना है। इसका उपयोग पर्यावरण के अनुकूल कपड़ा उद्योग, पेपर एवं पैकंजिग, कॉसमैटिक, बॉयो फ्यूल, एनर्जी इंडस्ट्री में करने के साथ इससे बायो-प्लास्टिक जैसे अत्याधुनिक उत्पाद भी तैयार किए जा सकेंगे।
इस नीति का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि औद्योगिक उपयोग के लिए उगाई जाने वाली भांग में टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (टी.एच.सी.) की मात्रा 0.3 प्रतिशत से कम रखी जाएगी। इसके तहत वैज्ञानिक मानक सुनिश्चित करते हुए पौधे में नशे रहित रखा जाएगा ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके। इस पौधे की उच्च गुणवत्ता युक्त फाइबर और बीज उत्पादन क्षमता बनी रहेगी। इस दृष्टिकोण के माध्यम से मुख्यमंत्री ने सामाजिक सरोकारों और आर्थिक प्रगति के बीच एक आदर्श संतुलन स्थापित किया है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, पूरी तरह से लागू होने पर इस विनियमित खेती से राज्य के खजाने में सालाना 500 से 2000 करोड़ रुपये से अधिक का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता है
इस पहल को सफल बनाने के लिए चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, पालमपुर और डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी को उच्च उपज वाले और कम टी.एच.सी. वाले बीजों को विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस संबंध में राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने उत्तराखंड के डोईवाला तथा मध्यप्रदेश में की जा रही भांग की खेती का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है।